कोरोना से मौतों के गवाह बने पीपल के पेड़

पीपल का पेड़ भी अब इन घटों का बोझ नहीं उठा पा रहा

हाल ही में सरकार ने कोरोना से मृत्यु के आँकड़े छिपने शुरू किए तो पत्रकारों को श्मसान घाट जाकर पता लगाना पड़ा. मगर सरकार ने वहाँ भी पर्दा लगाकर दंड की चेतावनी लगा दी .

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अब बड़ी संख्या में मौतों का सबूत कहाँ से लाएँ. दैनिक हिंदुस्तान लाइव ने मुरादाबाद में एक पीपल के पेड़ पर बंधे मिट्टी के घड़ों या घंट की फ़ोटो प्रकाशित की है.

सनातन हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के बाद दाह संस्कार करके मृतक की स्मृति में पीपल के पेड़ में एक घट बांधा जाता है। यहाँ शुद्ध संस्कार तक प्रतिदिन मृतक की आत्मा को तिलांजलि और जल दिया जाता है।

हिंदुस्तान के अनुसार मुरादाबाद के लोकोशेड मोक्ष धाम के पास स्थित पीपल का पेड़ भी अब इन घटों का बोझ नहीं उठा पा रहा। पेड़ भी रो रहा है। यहां पीपल के पेड में शुक्रवार को 70 से अधिक घंटे बंधे मिले। वहां मौजूद देखरेख करने वाले सोनू ने बताया कि प्रतिदिन 20 से 25 घंटे फोड़े जाते हैं। कुछ लोग दस दिन पूर्ण होने पर और कुछ लोग तीन दिन में ये घंट फोड़ देते हैं। बीते करीब बीस दिन से आलम यह है कि पीपल के पेड़ में घंट लटकाने के लिए जगह नहीं बची है।

याद दिला दें कि लखनऊ में जब प्रशासन मृत्यु के आँकड़े काम करके बता रहा था तो मीडिया ने बैकुंठ धाम श्मसान घाट जाकर बड़ी संख्या में चिताएँ जलने के चित्र और विडियो प्रकाशित किए थे.

सरकार ने दूसरे ही दिन बैकुंठ धान के चारों ओर टिन की चारदीवारी बनाकर चिताओं को ढकने की कोशिश की थी ताकि कोई तस्वीर न ले सके.

मगर सरकार को समझना चाहिए कि यह समय सचाई को नकारने का नहीं बल्कि उसे स्वीकार कर कोरोना वायरस से बचाव और राहत देने के लिए हर सम्भव उपाय करने का है.

राम दत्त त्रिपाठी

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