दंगाइयों से बचने के लिए हर गॉंव और मोहल्ले में निगरानी समिति ज़रूरी
राम दत्त त्रिपाठी
आज देश में जो माहौल है उसमें दंगाइयों से बचने के लिए हर गॉंव और मोहल्ले में निगरानी समिति का गठन ज़रूरी हो गया है।सुख और शांति हर व्यक्ति, परिवार और समाज की बुनियादी ज़रूरत होती है. अनुभवी लोग कामना करते है कि समाज में सभी लोग सुखी हों . अकेले अपने के सुख से काम नहीं चलता , अगर आपके आसपास समाज के लोग सुखी न हों .सुख के लिए शांति सबसे ज़रूरी है . अगर समाज में शांति नहीं है तो चाहे जितने भौतिक सुख सम्पदा धन दौलत हों, आप सुखी नहीं हो सकते .
क़ानून का राज
अतीत में राज्य नाम की संस्था इसीलिए बनायी गयी थी कि समाज में शांति व्यवस्था क़ायम रहे . क़ानून का राज हो। राज्य एक ईमानदार रेफ़री तरह की बिना पक्षपात सभी समुदायों, धर्मों के लोगों को न्याय दे . ग़लत करने वाले को दंड दे और पीड़ित को संरक्षण. राज्य की ज़िम्मेदारी है कि समाज में सब नागरिकों को बराबरी का दर्जा हो और उन्नति के समान अवसर मिलें . कमजोर को विशेष अवसर मिले।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को कमजोर करने के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने भारतीय समाज को जाति और धर्म के आधार पर विभाजित करने के लिए कुछ व्यक्तियों और संगठनों को प्रोत्साहित किया।इन्हीं संगठनों की उन्मादी और हिंसक गतिविधियों के चलते भारत का बँटवारा हुआ। लेकिन धर्म आधारित पाकिस्तान का क्या हाल हुआ हम सब जानते हैं।अगर धर्म ही राष्ट्र का आधार होता तो बांग्लादेश अलग न होता। अगर धर्म राष्ट्र की एकता का आधार होता, तो आज के पाकिस्तान में मस्जिदों में बम धमाके न होते, लोगों की जानें न जातीं।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायकों ने, धर्म आधारित पाकिस्तान बन जाने के बावजूद , संविधान सभा में लम्बी बहस के बाद सोच समझकर एक ऐसे लोकतंत्रात्मक गणराज्य की स्थापना की जिसमें न्याय, स्वतंत्रता , समानता, और बंधुत्व की आधारशिला है । संविधान में सभी धर्मों और समुदायों को बराबरी का दर्जा दिया गया।
जो लोग स्वतंत्रता आंदोलन का विरोध और हिंदू राष्ट्र की बात कर रहे थे, वे महात्मा गांधी की हत्या के अपराध बोध से दब गए, और बहुत दिनों तक ख़ामोश रहे। लेकिन नए भारत में सबको समानता के बजाय हिंदुओं के वर्चस्व का ज़हरीला बीज जीवित रहा। स्वतंत्रता आंदोलन की पीढ़ी और विचारधारा जैसे – जैसे कमजोर पड़ी इनका दायरा और उन्माद बढ़ता गया।
विडम्बना यह कि यह सारा उन्माद मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम पर और राज्य की मशीनरी के संरक्षण में हो रहा है।एक तरह से इसे राज्य प्रायोजित धार्मिक उन्माद कह सकते हैं। अपने धर्म का पालन करने के लिए हथियार लेकर दूसरे धर्म के लोगों की आबादी में और उनके पूजा घरों के सामने भड़काऊ नारे लगाना हिंदुओं के किस धर्म ग्रंथ में लिखा है। दुर्भाग्य की बात है कि पढ़े लिखे मिडिल क्लास की मौन सहमति भी इस उन्माद को मिल रही है।
ऐसे में रास्ता क्या है?
पिछले दिनों अहिंसा और शांति के प्रतीक महात्मा गांधी आश्रम जौरा से आह्वान हुआ है कि इस उन्माद का मुक़ाबला करने के लिए, “हर घर गांधी और हर घर संविधान” पहुँचाया जाए।
गांधी इसलिए कि वह आम आदमी की ताक़त हैं। पूरी दुनिया में गांधी ही एक मिसाल हैं, जो आम आदमी को अन्याय से अहिंसक ढंग से प्रतिकार करने की ताक़त देते है। एक गांधी ही हैं जो सत्याग्रह के लिए स्वयं कष्ट सहकर अन्यायी के हृदय परिवर्तन की कला सिखाते हैं।एक गांधी ही हैं जिन्होंने रामायण, गीता, क़ुरान और बाइबिल सब धर्म ग्रंथों का अध्ययन करके कहा कि ईश्वर एक है, उस तक पहुँचने के रास्ते अनेक हो सकते हैं। एक गांधी ही हैं जो बुढ़ापे में भी साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए एकला चले और अपनी जान की क़ुर्बानी दी।
हर घर संविधान इसलिए कि लोगों को हर समय याद रहे कि भारत में क़ानून का राज है और सरकार के लिए हर नागरिक और हर धर्म समान होने चाहिए । सरकार किसी हालत में न तो एक धर्म को बढ़ावा दे सकती है और न ही एक धर्म की हमलावर और उन्मादी भीड़ को संरक्षण।
सिविल सर्विस की ज़िम्मेदारी
आज जो हालात हैं उसमें भारत की सिविल सर्विस और पुलिस बल की बड़ी ज़िम्मेदारी है। हमारे दंड विधान आईपीसी, सीआरपीसी में शांति व्यवस्था क़ायम करने की पूरी शक्ति इनके पास है, ये अगर राजनीतिक आकाओं के इशारे पर पक्षपात करते हैं तो पूर्णतया गैर- क़ानूनी है।
आम आदमी क्या कर सकता है?
पर इसका मतलब यह नहीं कि आम आदमी हाथ पर हाथ धर कर बैठा रहे और मुट्ठी भर उन्मादी समाज की शांति भंग करते रहें। हमें समझना होगा कि यह रास्ता अराजकता की ओर जा रहा है , जिसमें किसी का भला नहीं होगा. देश का कोई विकास नहीं होगा। वैसे ही अस्सी करोड़ लोग दो जून की रोटी के लिए सरकारी सहायता पर आश्रित हैं। हालत और ख़राब होंगे तो क्या होगा?
समझदार देश और समाज विज्ञान और तकनीकी के रास्ते आर्थिक प्रगति और ख़ुशहाली की तरफ़ बढ़ रहे हैं और हम क़बीलाई जंगलराज की ओर लौट रहे हैं.
दूर जाकर मंच से संविधान, गांधी सामाजिक सद्भाव के लिए भाषण देना और लेख लिखना आसान है, लेकिन हम जहां रहते हैं अपने मोहल्ले पड़ोस में हम लोगों से बात नहीं करते।
ज़रूरी है कि हम अपने पड़ोस – गॉंव और मोहल्ले में विभिन्न धर्मों और समुदायों के बीच शांतिपूर्ण सह अस्तित्व का महत्व समझायें और इसके अनुकूल माहौल बनायें , निगरानी समितियों बनायें और जो लोग भारत को पाकिस्तान की राह पर ले जाना चाहते हैं उनके इरादों को जड़मूल से नष्ट करें .
हमें अयोध्या का उदाहरण याद है छह दिसंबर की काली रात जब बाहर से आये उन्मादी कारसेवक मुस्लिम समुदाय के लोगों के घर जला रहे थे , स्थानीय अयोध्यावासी हिन्दुओं ने उन्हें अपने घरों में संरक्षण देकर बचाया.
इसलिए हर घर गॉंधी और हर घर संविधान के साथ साथ हमें हर गॉंव और मोहल्ले में अपनी शांति और सुरक्षा समितियों का भी गठन करना होगा .