संसद का मानसून सत्र 2025: हंगामा, पीएम मोदी का संसद बाइपास और विपक्ष की तीखे तर्क

मीडिया स्वराज डेस्क 

21 जुलाई 2025 को संसद का मानसून सत्र शुरू होते ही राजनीतिक उबाल देखने को मिला। लोकसभा घोषणा करते ही स्थगित हो गई, राज्यसभा में भी वाद-विवाद इतना चरम पर था कि चेयर ने कई मुद्दों पर चर्चा की अनुमति नहीं दी. 

लोकसभा और राज्यसभा में हंगामा: मुद्दों की अनदेखी कैसे हुई?

विपक्ष ने पहलगाम आतंकी हमला और ऑपरेशन सिंदूर पर तत्काल चर्चा की मांग की, लेकिन समय नहीं मिला।

लोकसभा स्पीकर ने कार्यवाही को कल तक स्थगित कर दिया।

राज्यसभा चेयर ने स्पष्ट कहा – अब इस पर चर्चा संभव नहीं

प्रश्न: क्या गंभीर राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकी घटनाओं पर चर्चा से बचा जा रहा है?

टीवी पर क्यों संबोधन? संसद के भीतर क्यों नहीं?

प्रधानमंत्री मोदी ने संसद में बोलने की जगह रोजमर्रा की प्रेस कॉन्फ्रेंस और टीवी पर बातचीत पसंद की।

विपक्ष ने इसे संसद और लोकतांत्रिक परंपरा का उल्लंघन बताया।

क्या कार्यपालिका संसद को बाइपास कर रही है?

विदेश यात्रा का मुद्दा: क्या समय उपयुक्त है?

• बुधवार से प्रधानमंत्री चार दिन के अंतरराष्ट्रीय दौरे पर रवाना होंगे।

• विपक्ष ने सवाल उठाया:

“जब देश आतंकी हमलों और सुरक्षा से परेशान है, तब विदेश जाना क्या ज़िम्मेदारी से बचना नहीं?”

• बड़ी जनता भी यह सवाल उठा रही है कि क्या यह रणनीति कर्तव्य की कमी है या कूटनीतिक मजबूरी?

राहुल गांधी बोले:

“मैं नेता प्रतिपक्ष हूं, लेकिन मुझे बोलने नहीं दिया जा रहा।”

राहुल गांधी ने स्पष्ट कहा कि उन्हें संसद में बोलने की अनुमति नहीं दी जा रही, जबकि सरकारी मंत्री खुले तौर पर बोलने का हक पाते हैं  ।

• उन्होंने आरोप लगाया:

“मैं तुरंत ही सदन से बाहर भाग गया…”   

• प्रियंका गांधी ने भी चिल्लाकर कहा:

“यदि चर्चा के लिए तैयार हैं, तो नेता प्रतिपक्ष को बोलने क्यों नहीं दिया जाता।” 

इतिहास का संदर्भ: पहले परंपरा कहाँ खो रही है?

• पहले प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी आदि संसद में विपक्ष के सवालों का सामना करते थे।

• अब इस परंपरा टूट रही है – क्या यह सत्ता की अति आत्मनिर्भरता का प्रदर्शक है?

विपक्ष की एकजुटता: रणनीति या अवसर?

• विपक्षी दल इंडिया ब्लॉक की एकता स्पष्ट नजर आ रही है।

• राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे ने पहले ही राज्यसभा की शुरुआत से पहले जम्मूकश्मीर को राज्य का दर्जा दिलाने की मांग पीएम मोदी से की थी  ।

• इस्तीफा देने जैसी प्रदर्शनकारी रणनीतियों के बीच, विपक्ष सवाल करता है:

“क्या यह 2029 चुनाव के लिए तैयारियाँ हैं, या फिर एक और मौका भूल जाएंगे?”

जनता की सोच:

• क्या आम जनता इसे विपक्ष का सिर्फ हंगामा मानेगी, या सच में यह देश के महत्वपूर्ण मुद्दों पर संसद में चर्चा की अपील है?

निष्कर्ष

संसद लोकतंत्र का मंदिर है, लेकिन यदि बड़े राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा नहीं होती, तो लोकतंत्र की आत्मा कैसे महकेगी?

क्या प्रधानमंत्री को संसद में आकर जनता से सीधे जवाब देना चाहिए?

क्या विपक्ष इस बार जनता का भरोसा जीतने में कामयाब होगा?

आपका क्या सोचते हैं 

• क्या आपको लगता है कि संसद में इन मुद्दों पर खुली चर्चा होनी चाहिए थी?

• क्या यूपीए बाजी मार पाएगी, या सत्ता एकबिंदु अनाकार से बच निकलेगी?

💬 नीचे कमेंट करें और इस विश्लेषण को जरुर शेयर करें, ताकि हर कोई इस पर सवाल उठाए – लोकतंत्र कहां जा रहा है?

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