“पहलगाम: अमरनाथ यात्रा का आधार और भारत की सांस्कृतिक सुरक्षा का प्रहरी”
( मीडिया स्वराज डेस्क )
जम्मू-कश्मीर की लिद्दर घाटी में बसा पहलगाम, केवल एक सुंदर पर्यटन स्थल नहीं है, बल्कि यह भारत के लिए धार्मिक, सांस्कृतिक और रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण केंद्र है। विशेषकर अमरनाथ यात्रा के संदर्भ में इसकी भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण बन जाती है।
अमरनाथ यात्रा का प्रमुख आधार केंद्र
हर वर्ष लाखों श्रद्धालु पहलगाम से होकर अमरनाथ गुफा तक की कठिन यात्रा करते हैं। यह मार्ग न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि हिन्दू संस्कृति में भगवान शिव की अद्वितीय उपस्थिति—बर्फ़ से बनी ‘स्वयंभू शिवलिंग’—की झलक भी देता है। पहलगाम से चंदनवाड़ी, शेषनाग, पंचतरणी होते हुए गुफा तक की यात्रा, केवल शारीरिक परीक्षा नहीं, बल्कि आध्यात्मिक साधना भी है।
सांप्रदायिक सौहार्द और आतंकवाद की चुनौती
इतिहास बताता है कि जब-जब अमरनाथ यात्रा के दौरान आतंकी घटनाएं हुईं, उनका उद्देश्य केवल मानव जीवन को हानि पहुँचाना नहीं, बल्कि भारत की सांप्रदायिक एकता और सांस्कृतिक विरासत को निशाना बनाना रहा है। हालिया पहल्गाम हमला भी इसी श्रंखला की एक कड़ी प्रतीत होता है।
रणनीतिक दृष्टिकोण से पहलगाम का महत्व
• भौगोलिक स्थिति: यह इलाका नियंत्रण रेखा (LoC) से बहुत दूर नहीं है। इसलिए सुरक्षा एजेंसियों के लिए यह क्षेत्र संवेदनशील बना रहता है।
• यात्रा मार्ग की सुरक्षा: अमरनाथ यात्रा के दोनों मार्गों—पहलगाम और बालटाल—की सुरक्षा में सेना, अर्धसैनिक बल और राज्य पुलिस को व्यापक इंतज़ाम करने पड़ते हैं।
• स्थानीय समर्थन: स्थानीय मुस्लिम आबादी की भूमिका भी इस यात्रा की सफलता में अहम रही है। वे यात्रा मार्गों पर टेंट, घोड़े और कांवड़ियों के लिए अन्य सेवाएँ प्रदान करते हैं।
आस्था और अखंडता का प्रतीक
अमरनाथ यात्रा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, यह भारत की विविधता में एकता, सहिष्णुता और सांप्रदायिक सौहार्द का भी प्रतीक है। पहलगाम इसी यात्रा का प्रवेश द्वार है—एक ऐसा द्वार जिसे सुरक्षित रखना न केवल सरकार, बल्कि पूरे समाज की ज़िम्मेदारी है।