पहलगाम हमला: सरकार का ग़ुस्सा और कूटनीतिक नतीजे
श्रवण गर्ग . वरिष्ठ पत्रकार
पहलगाम में आतंकवादी हमले से सरकार ग़ुस्से में नज़र आ रही है। हुकूमतें जब ग़ुस्से में होती हैं कुछ भी कर सकतीं हैं ! किसी भी सीमा तक जाने के दावे कर सकती हैं.

रक्षा मंत्री ने कहा है कि हरकत का जवाब आने वाले कुछ ही समय में ज़ोरदार तरीक़े से दिया जाएगा !
बैसरन में मंगलवार को जो हुआ उसने देश की आत्मा को हिला दिया है।
घने जंगलों की कोख से सैन्य वर्दियाँ पहने अचानक प्रकट हुए आतंकियों ने घाटी की गोद में ख़ुशियाँ बटोरते भोले-भाले पर्यटकों से पहले उनके नाम और धर्म पूछे और फिर AK-47 से गोलियों की बौछार कर 26 की जानें ले लीं।
चार-छह आतंकी बीस मिनिट से कम वक्त में 140 करोड़ के मुल्क की सत्ता को चुनौती देकर पहाड़ों की देह में फिर से गुम हो गए !
दर्दनाक हादसे के तत्काल बाद से सरकार में बैठे ज़िम्मेदार लोग बयान देते नहीं थक रहे हैं कि कोई बड़ी कार्रवाई की जा सकती है !
सरकार की पहली कार्रवाई पाकिस्तान सरकार के ख़िलाफ़ की गई है ! आतंकवादियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई होना बाक़ी है।
जो फ़ैसले लिए गए हैं उनका ज़्यादातर ख़ामियाज़ा पाकिस्तान के (या दोनों ओर के) नागरिकों को ही भुगतना पड़ेगा।(सिंधु जल समझौता रोकना, वीसा बंद करना, अटारी-वाघा बॉर्डर का बंद किया जाना या पाक नागरिकों को 48 घंटे में भारत छोड़ने का आदेश )।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। सीमा पार से होने वाली हरेक बड़ी घटना वह चाहे युद्ध हो या आतंकवादी हमला इसी तरह के या इससे मिलते-जुलते फ़ैसले पहले भी लिए जाते रहे हैं।
चूँकि हम वहाँ की सरकार को ही आतंक का प्रतीक और सीमा पार के आतंक के लिये ज़िम्मेदार मानते हैं फ़ैसले भी उसी के ख़िलाफ़ लेते रहते हैं।
घटनाओं को लेकर उत्पन्न होने वाले रोष के ठंडा पड़ते ही शॉल और आमों की डिप्लोमेसी फिर प्रारंभ हो जाती है।नागरिकों को केवल उस क्षण की प्रतीक्षा करना पड़ती है।
तात्कालिक रूप से कूटनीतिक/ राजनयिक स्तरों पर लिये गए ताज़ा फ़ैसलों से ज़्यादा शायद कुछ और किया भी नहीं जा सकता था। अख़बारों की खबरों पर यक़ीन किया जाए तो घटना पर मोदी सरकार की तीव्र प्रतिक्रिया के बाद से इस्लामाबाद में तैयारियाँ हरेक स्तर पर की जा रहीं थीं।
हाल के सालों की घटनाओं को याद करें तो पहलगाम के पहले 2019 में हुई पुलवामा की घटना ने भी सरकार को इसी तरह झकझोरा था।
तब देश लोकसभा चुनावों की तैयारियों में जुटा था। उस समय जानें 40 सुरक्षाकर्मियों की गईं थीं। नागरिकों ने तब श्रद्धांजलि शहीद हुए सैनिकों को दी थी। इस मर्तबा शिकार सामान्य नागरिक हुए हैं ।
घटना के बाद नागरिक ही शहीद हुए नागरिकों को श्रद्धांजलि दे रहे हैं।
पुलवामा हादसे के लिए ज़िम्मेदार कई कारणों में ख़ुफ़िया तंत्र की विफलता को भी एक कारण बताया गया था।
पहलगाम के बारे में आरोप-प्रत्यारोप की अभी शुरुआत ही हुई है। इसकी एक झलक इन खबरों में तलाशी जा सकती है कि सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा के लिए गृह मंत्री अमित शाह द्वारा श्रीनगर में बुलाई गई बैठक में जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को कथित तौर पर आमंत्रित नहीं किया गया।अवश्य ही कोई बड़ा कारण रहा होगा।
बैसरन घाटी में योजनाबद्ध तरीक़े से जो हुआ उसमें बिना युद्ध लड़े कश्मीर घाटी को भारत से अलग करने की आतंकवादी साज़िश तलाशी जा सकती है ! नाम और धर्म पूछकर जानें लेने के पीछे रणनीति यही हो सकती है कि घाटी को पूरी तरह से नागरिक-विहीन कर दिया जाये।
(कश्मीर की लगभग 70-75 लाख की आबादी के मुक़ाबले दो करोड़ से ज़्यादा पर्यटकों ने पिछले साल घाटी की यात्रा की थी ! ) इतनी दहशत फैला दी जाए कि पर्यटकों के लिए घाटी के दरवाज़े बंद हो जाएँ ! चुनी हुई सरकार की राज्य में उपस्थिति बेमायने हो जाए।
जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्ज़ा फिर से प्राप्त करवाने की संभावनाएँ स्थगित हो जाएँ। शायद यही भय रहा हो कि घाटी के मुस्लिम नागरिक भी आतंकवाद के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतर आए।
बैसरन घाटी के हत्याकांड के विरोध में जिस तरह का बंद बुधवार को पूरे कश्मीर में हुआ वैसा पिछले पैंतीस सालों में नहीं देखा गया।
सरकार के ग़ुस्से वाली मुद्रा को देखते हुए नागरिकों को आगे के कुछ दिन साँसें रोककर अगले घटनाक्रम की प्रतीक्षा करना पड़ेगी।
जिस तरह की चर्चाओं या अफ़वाहों के ज़रिए नागरिकों को आने वाले दिनों के बारे में तैयार किया जा रहा है उनमें सीमित या टार्गेटेड युद्ध के विकल्प भी शामिल हैं। पाक-अधिकृत कश्मीर को लेकर रक्षा मंत्री सहित ज़िम्मेदार पदों पर बैठे लोग कई बार बयान दे चुके हैं।
अंत में सवाल यह है कि 2019 के लोकसभा चुनावों के ठीक पहले हुए पुलवामा को लेकर उठे सवालों के जवाब आज छह साल बाद भी अनुत्तरित हैं।
बैसरन घाटी से उत्पन्न हुए सवालों के जवाब मिलेंगे क्या ? कब मिलेंगे ? कौन देगा ? बैसरन हादसे के बाद बिहार के मधुबनी में गुरुवार को हुई अपनी पहली चुनावी सभा में मोदी के इस कहे पर कि :’….जिन्होंने हमला किया उन आतंकियों और साज़िश रचने वालों को उनकी कल्पना से भी बड़ी सज़ा मिलेगी ‘ देश की जनता कितना यक़ीन करना चाहेगी ?
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