इक शख़्स सारे शहर को वीरान कर गया
श्रद्धाजंलि:- पंकज कुलश्रेष्ठ
विवेक जैन, वरिष्ठ पत्रकार, आगरा
बिछड़ा कुछ इस अदा से कि
रुत ही बदल गई
इक शख़्स सारे शहर को
वीरान कर गया
जो इस दुनिया में आया है, वह जाएगा अवश्य। यह सृष्टि का अटल सिद्धान्त है। जो भी मित्र, परिचित या निकट सम्बन्धी सदा के लिए जाता है, उसके जाने से दुख होता ही है, पर कुछ लोगों का जाना हृदय पर अमिट घाव छोड़ जाता है। पंकज के संबंध में यह अक्षरशः सत्य है।
पत्रकार जैसे पेशे में होने के वावजूद भी आज तक किसी से कोई वैमनस्य नही,कोई द्वेष नही केवल अपने कार्य के प्रति जनून और समर्पण का भाव।यही कारण था कि जिस संस्थान से अपने पत्रकारिता जीवन का प्रारंभ किया उसी संस्थान की सेवा करते हुए हम सबके बीच से चले गए।
अभी उम्र ही क्या थी उनकी,केवल 52 वर्ष, मुझे याद है जब उन्होंने दैनिक जागरण से अपनी पत्रकार यात्रा शुरू की थी और आज इसी संस्थान में उप समाचार संपादक के पद पर कार्यरत थे।मानो कल की बात हो मेरे सहपाठी आनन्द शर्मा जो अशोक नगर में रहते थे और उस समय दैनिक जागरण में अपराध संवाददाता के रूप में कार्य कर रहे थे की अनुशंसा पर ही पंकज ने अपनी पत्रकारिता जीवन की शुरुआत की थी।अपनी इस यात्रा में उन्होंने पत्रकारिता के सभी विभागों एवम विषयों पर अपनी सारगर्भित लेखनी के माध्यम से जन जन पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है।
आनंद शर्मा से जब पंकज के विषय मे बात की तो उन्होंने बड़े भारी मन से बताया कि उनकी पंकज से बात हुई थी उसे बात करने में दिक्कत हो रही थी लेकिन उसके जज्बे में कोई कमी नही थी।उन्होंने बताया कि वर्षों का साथ रहा है पंकज के साथ,बहुत ही व्यवहारिक लड़का था।उसने क्राइम रिपोर्टिंग बहुत अच्छे और ईमानदारी से की थी।पत्रकार होने का अभिमान और घमंड तो उसके आसपास कही आ नही पाते थे।वरिष्ठ पत्रकार अमी आधार निडर ने अपनी वेदना को व्यक्त करते हुए कहा है कि अत्यंत दुःखद समाचार ।
लगभग डेढ़ दशक साथ साथ पत्रकारिता की और आज प्रिय पंकज का अचानक यूँ जाना …..ईश्वर से प्रार्थना है कि उन्हें शान्ति और परिवार को धैर्य और सम्बल प्रदान करें ।वरिष्ठ पत्रकार अनिल दीक्षित ने अपनी भावना व्यक्त करते हुए कहा है कि उंगलियां जैसे, दुनिया का सबसे अप्रिय लेकिन शाश्वत सत्य लिखने के लिए तैयार नहीं। मन मान नहीं रहा।
जिसके साथ करीब 8 बरस काम किया, वो जाए तो मन भारी होता है। लगता है जैसे मन के किसी भाग से बिछोह हो रहा है।.. पंकज जी का जाना बेहद व्यथित कर रहा है।वरिष्ठ पत्रकार भानुप्रताप सिंह ने लिखा है कि पंकज के साथ मुझे रिपोर्टिंग का सौभाग्य प्राप्त हुआ। एएसआई और पर्यटन बीट पर साथ-साथ काम किया। मैं अमर उजाला में था और वे जागरण में। ईश्वर उन्हें सद्गति प्रदान करे।हिंदुस्तान समाचार पत्र के संपादक मनोज पमार ने अपनी भावना व्यक्त करते हुए लिखा है कि पंकज का जाना मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति है। निःशब्द हूं। कुछ कहने की स्थिति में नहीं हूं। विश्वास ही नहीं हो रहा कि इतनी जल्दी वह हमारा साथ छोड़ जाएगा।
इसके अतिरिक्त आगरा के पत्रकार जगत के विनोद भारद्वाज,अशोक अग्निहोत्री, सुनीत कुलश्रेष्ठ, प्रदीप रावत,विनोद चौधरी,अनुपम पांडेय, विनीत दुबे, राहुल पालीवाल, विमल मिश्र,मनोज मिश्रा,प्रतीक गुप्ता,मनीष गुप्ता, गौरव अग्रवाल, सहित अनेक लोगों ने दिवंगत पत्रकार पंकज जी के असामयिक निधन पर अपनी शोक संवेन्दना व्यक्त की है।
एक अनुत्तरित प्रश्न छोड़ गया है पंकज का यूं असमय चले जाना….
जीवन का आना जाना मनुष्य के बस में नहीं है लेकिन जब बस में ही कोई हमारे बीच से चला जाता है तो हम यह सोचने को अवश्य मजबूर होते हैं.ऐसे क्या कारण है कि हमारा प्रिय हम से बिछड़ गया।कुछ ऐसा ही हुआ दैनिक जागरण में काम कर रहे वरिष्ठ पत्रकार पंकज कुलश्रेष्ठ के साथ। कोविड-19 जैसी महामारी जिससे पूरा विश्व पीड़ित है उसी की चपेट में आकर प्रिय पंकज हम सब को छोड़कर चले गए। लेकिन अभी उसकी उम्र ही कितनी थी, अगर समय रहते उनका इलाज हो गया होता ,उनकी रिपोर्ट जल्दी आ गई होती तो शायद पंकज के जीवन को बचाया जा सकता था ।उनको दिल्ली और लखनऊ ले जाने की भी बातें चल रही थी वेंटीलेटर वाली एंबुलेंस की भी व्यवस्था कर ली गई थी , लेकिन आगरा के स्वास्थ्य विभाग और सरोजनी नायडू मेडिकल कॉलेज की लापरवाही के चलते यह संभव न हो सका और हम सबको अपने प्रिय साथी को खोना पड़ा।
पत्रकारों की भूमिका भी इस वैश्विक महामारी में एक करोना योद्धा की तरह है लेकिन इन योद्धाओं के साथ प्रशासनिक स्तर पर व स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा जो व्यवहार किया जा रहा है वह अक्षम्य नहीं है। यह एक ऐसा अनुत्तरित प्रश्न है जिसका जवाब हम सबको मिलकर सोचना होगा कि सबके लिए लड़ने वाले अगर अपने जीवन को इस तरह हार जाएंगे तो हम इस वैश्विक महामारी से कैसे लड़ पाएंगे।