नई शिक्षा नीति -2020 –भारत को वैश्विक ज्ञान महाशक्ति बनाने का संकल्प
डा चन्द्रविजय चतुर्वेदी
भारत को वैश्विक ज्ञान महाशक्ति बनाने के संकल्प के साथ नई शिक्षा नीति -2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अधयक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को अपनी सहमति दे दी है। इसरो के पूर्व प्रमुख कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की एक समिति ने इसका मसौदा तैयार किया था। नई शिक्षा नीति में स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक कई बड़े बदलाव किये गए हैं। इस अवसर पर प्रधानमंत्री जी ने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में यह बहु प्रतीक्षित सुधार है जिससे लाखों लोगों का जीवन बदल जाएगा। ‘एक भारत -श्रेष्ठ भारत’ की पहल के तहत इसमें संस्कृत समेत भारतीय भाषाओं को बढ़ावा दिया जायेगा।
निश्चित रूप से नई शिक्षा नीति में व्यापक बदलाव समय की अपेक्षा है। इस शिक्षानीति के घोषित उद्देश्यों में कहा गया है कि एक भारतीय होने की गहरी जड़ें -गर्व पैदा करना है, न केवल विचार में बल्कि आत्मा ,बुद्धिऔर कर्मों में ,तथा साथ-साथ ज्ञान कौशल, मूल्यों और प्रस्तावों को विकसित करना है जो मानवाधिकारों ,स्थायी विकास,जीवन यापन और वैश्विक कल्याण के लिए जिम्मेदार समर्थन करता है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक दीर्घकालीन वैश्विक परामर्श प्रक्रिया –26 जनवरी 19 से 21 अक्टूबर 19 तक गुजरने के बाद अपना स्वरूप ग्रहण कर सकी है। इस नीति द्वारा बदलाव के निम्न प्रमुख बिंदु प्रमुखता से शैक्षिक जगत का ध्यान आकृष्ट करते हैं —
1 ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 को प्रतिस्थापित करते हुए ,नई शिक्षानीति 2020 में तीन साल से अठारह साल के बच्चों को ,शिक्षा का अधिकार कानून 2009 के अंतर्गत रखा गया है। इसका उद्देश्य सभी को उच्च शिक्षा प्रदान करना है। 2030 तक माध्यमिक शिक्षा का ग्रास इनरोलमेंट रेशियो शत-प्रतिशत का लक्ष्य।
2 ‘शीर्ष विदेशी विश्वविद्यालय को भारत में कैम्पस स्थापित करने की अनुमति देना।
3 ‘छात्रों को व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त कराना।
4 ‘पांचवी क्लास तक मातृभाषा ,स्थानीय भाषा या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई का माध्यम रखा जाएगा। इसे कक्षा आठ या उससे भी आगे बढ़ाया जा सकता है। किसी भाषा को थोपा नहीं जाएगा।
5 -स्कूल से दूर रहने वाले दो करोड़ बच्चों को दुबारा मुख्य धारा में लाया जाएगा।
6 – स्कूल पाठ्यक्रम 10 +2 की जगह 5 +3 +3 +4 की नई पाठ्यक्रम संरचना लागू होगी ,जो तीन से अठारह साल के बच्चों को कवर करेगी। इसमें पांच वर्ष की फाउंडेशन स्टेज होगी ,तीन साल का प्री प्राइमरी स्कूल और दो साल का कक्षा एक और दो। तीन साल का प्री प्राइमरी स्कूल कक्षा तीन ,चार और पांच। तीन साल का उच्च प्राथमिक शिक्षा कक्षा छह ,सात और आठ जिसे पहले मिडिल स्कूल कहा जाता था। चार साल की माध्यमिक शिक्षा कक्षा नौ दस ,ग्यारह और बारह। इस स्कूली शिक्षा को मुफ्त और अनिवार्य बनाये जाने का लक्ष्य निश्चय ही क्रन्तिकारी परिवर्तन होगा।
7 -छठी कक्षा से ही वोकेशनल कोर्स शुरू किये जायेंगे। स्कूल स्तर पर वोकेशनल स्टडी पर विशेष फोकस। महत्वपूर्ण व्यावसायिक शिल्प –बढ़ईगिरी ,बिजली का काम ,बागवानी ,मिटटी का बर्तन बनाना आदि इसका लक्ष्य 2025 तक रखा गया है। विज्ञान, गणित और मानविकी ,शारीरिक शिक्षा ,कला और शिल्प जैसे विषय पूरे स्कूल पाठ्यक्रम में शामिल किये जायेंगे। फिजिक्स के साथ फैशन डिजाइनिंग का कोर्स भी पढ़ सकेंगे।
8 -बैग का बोझ कम कर कला ,क्विज ,खेल ,और व्यावसायिक शिल्प से जुड़े विभिन्न प्रकार की संवर्धन गतिविधियों को प्रोत्साहित किया जाएगा। शिक्षण और सीखने का संचालन अधिक संवादात्मक तरीके से होगा। पाठ्यक्रम सामग्री को कम किया जाएगा। बच्चों के लिए नए कौशल कोडिंग कोर्स शुरू किये जाएंगे।
9 -बोर्ड परीक्षा के महत्त्व और तनाव को कम करने के लिए परीक्षा दो भागों में आयोजित की जाएगी -आब्जेक्टिव और वर्णनात्मक परीक्षा वर्ष में दो बार आयोजित की जायेगी।
10 -व्यावसायिक शिक्षा को 26 प्रतिशत से बढाकर 50 प्रतिशत तक किया जायेगा।
11 -सकल घरेलू उत्पाद -जीडीपी का छह प्रतिशत शिक्षा क्षेत्र के लिए होगा जो पहले 1 . 7 प्रतिशत ही था।
12 -दिव्यांग बच्चों के लिए शिक्षा में प्रभावी बदलाव के प्रस्ताव है -विकलांगता प्रशिक्षण संसाधन केंद्र ,आवास ,सहायक उपकरण ,उपयुक्त प्रद्योगिकी आधारभूत उपकरण की व्यवस्था।
13 ,उच्च शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण परिवर्तन करते हुए -यूजीसी ,एआईसीटीई ,एचआरडी समाप्त कर दिया गया। उच्च शिक्षा क्षेत्र में अब एक रेगुलेटर यानी एक रेगुलेटिंग बाडी के जरिए शिक्षा व्यवस्था संचालित होगी -मेडिकल और लीगल एजुकेशन को छोड़कर। एकल अतिव्यापी छतरी के रूप में उच्चतर शिक्षा के लिए उच्चतर शिक्षा आयोग -एचसीआई के पास चार स्वतन्त्र कार्यक्षेत्र होंगे। नियमन के लिए राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामक परिषद् एनएच इ आर सी।
वित्तपोषण के लिए उच्च शिक्षा अनुदान परिषद् एच इ जी सी। मानक सेटिंग के लिए सामान्य शिक्षा परिषद् जी इ सी। मान्यता के लिए राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद् -नैक।
14 -एन टी ए द्वारा उच्च शिक्षा संस्थानों में एडमिशन के लिए कॉमन एंट्रेंस परीक्षा।
15 -विद्यार्थियों के हित में उच्च शिक्षा ने मल्टीपिल एंट्री एवं एग्जिट सिस्टम लागू करना अर्थात एक साल पर शिक्षा छोड़ने पर सर्टिफिकेट ,दो साल बाद डिप्लोमा और तीन -चार साल बाद डिग्री मिल जाएगी। निश्चय ही यह बड़ा बदलाव है।
16 -रिसर्च के क्षेत्र में भी बड़ा बदलाव किया गया है। जो रिसर्च में जाना चाहते हैं उनके लिए चार साल का डिग्री प्रोग्राम होगा। जो लोग नौकरी में जाना चाहते हैं वे लोग तीन साल का डिग्री प्रोग्राम करेंगे। रिसर्च के लिए एक साल का एम ए करके पीएचडी कर सकते हैं। एम फिल समाप्त कर दिया गया।
17 -उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भारी परिवर्तन करते हुए सभी उच्च संस्थानों को 2040 तक बहुविषयक बनाने की ओर बढ़ाया जायेगा। पंद्रह वर्षों में सम्बद्ध कालेजों की प्रणाली को समाप्त किया जाएगा।
18 -नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना , एनसीइआरटी द्वारा फाउंडेशन लिट्रेसी और न्यूमरेसी पर नेशनल मिशन। अर्ली चाइल्ड हुड केयर ,शिक्षा तकनीकी को बढ़ाना ,आठ क्षेत्रीय भाषाओं में ई -कोर्स ,एक्रीडेशन के आधार पर आटोनामी जैसे बहुत से उपयोगी प्रस्ताव नई शिक्षा नीति 2020 के अंग हैं।
नई शिक्षा नीति 2020 के द्वारा मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नामकरण शिक्षा मंत्रालय के रूप में कर दिया यह स्वागत योग्य है। इस सम्बन्ध में उल्लेखनीय है की राष्ट्रीय शिक्षा नीति -1986 की समीक्षा समिति के अध्यक्ष आचार्य राममूर्ति ने सितम्बर 1990 की अपनी रिपोर्ट में लिखा था की शैक्षिक विकास की योजना में इंसान को परिसंपत्ति या राष्ट्रीय संसाधन मात्र मानना उचित नहीं होगा क्योंकि यह दृष्टिकोण उपयोगितावादी होगा। इंसान को परिसंपत्ति मात्र से कहीं अधिक महत्वपूर्ण मानकर विकसित करना होगा जिसके लिए शिक्षा में मानवीय ,उदारवादी,सांस्कृतिक और आध्यात्मिक आयामों को भी जोड़ना होगा। आवश्यक है कि नई शिक्षा नीति का क्रियान्वयन शैक्षिक मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में होगा।
नई शिक्षा नीति के लिए गठित टी एस सुब्रमण्यम पैनल की कई संस्तुतियों को इस रिपोर्ट में सम्मिलित किया गया है परन्तु एक महत्वपूर्ण बिंदु समावेश नहीं किया गया, जिसमें उन्होंने कहा था कि विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्त हेतु इंडियन एजुकेशनल सर्विस स्थापित किया जाये।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के समक्ष विचार का एक महत्वपूर्ण बिंदु –काम का अधिकार भी था। नई शिक्षानीति २०२० में इसका कोई भी उल्लेख नहीं है।
नई शिक्षा नीति 2020 की संस्तुतियों की सारी सफलता इसके क्रियान्वयन में निहित है क्योंकि कई ऐसे प्रस्ताव हैं जो वर्तमान और परम्परागत व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन की अपेक्षा करते हैं।