नेपाल की राजनीति: योगी का प्रभाव और चीन की रणनीतिक चालें

नेपाल की राजनीति में योगी का खौफ और चीन की दबदबा मजबूत करने की कोशिश
नेपाल की राजनीति इन दिनों एक जटिल मोड़ पर है, जहां उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का बढ़ता प्रभाव और चीन की अपने दबदबे को मजबूत करने की रणनीति एक साथ उभर रही है। यह स्थिति न केवल नेपाल के आंतरिक政治िक हालात को प्रभावित कर रही है, बल्कि भारत और चीन जैसे पड़ोसी देशों के साथ इसके भू-राजनीतिक संबंधों को भी जटिल बना रही है। आइए, इस परिदृश्य को विस्तार से समझते हैं।
योगी आदित्यनाथ का नेपाल में प्रभाव
योगी आदित्यनाथ, जो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और गोरखनाथ मठ के पीठाधीश्वर हैं, का नेपाल में प्रभाव धार्मिक और सांस्कृतिक संबंधों से गहराई तक जुड़ा है। नेपाल के पूर्व शाही परिवार और गोरखनाथ मठ के बीच ऐतिहासिक रिश्ते रहे हैं, और इस वजह से योगी की छवि नेपाल में हिंदू राष्ट्र और राजशाही की बहाली की मांगों को बल देती है। हाल ही में काठमांडू में पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह के स्वागत में जुटी भीड़ में योगी आदित्यनाथ के पोस्टर लहराए गए, जिसने नेपाल के राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी।
नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के लिए यह चिंता का विषय है, क्योंकि उनकी सरकार को समर्थन देने वाली नेपाली कांग्रेस के कई सदस्य न केवल हिंदू राष्ट्र के हिमायती हैं, बल्कि योगी के प्रशंसक भी हैं। खासकर तराई बेल्ट में नेपाली कांग्रेस के नेता योगी के प्रति समर्पण दिखाते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री और नेपाली कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शेर बहादुर देउबा ने पिछले आम चुनाव में कहा था कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आई, तो हिंदू राष्ट्र पर विचार किया जाएगा। हालांकि, उनकी पार्टी सत्ता में नहीं लौट पाई, लेकिन उनके योगी और मोदी से मधुर संबंधों की चर्चा नेपाल में जोरों पर है।
हिंदू राष्ट्रवाद और राजशाही की मांग
नेपाल में राजशाही के जमाने में नेपाली कांग्रेस सत्ता में थी, जिससे उसका राजा के प्रति झुकाव स्वाभाविक था। भले ही राजशाही की वापसी संभव न हो, लेकिन लोकतांत्रिक रास्ते से हिंदुत्ववादी पार्टी का उभरना असंभव भी नहीं है। राष्ट्रिय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) एक ऐसी हिंदुत्ववादी पार्टी है, जिसे राजावादी पार्टी के रूप में भी जाना जाता है। हाल के प्रदर्शनों में ज्ञानेंद्र के समर्थन में उमड़ा जनसैलाब इस बात का संकेत है कि जनता में राजशाही के प्रति झुकाव बढ़ रहा है।
हालांकि, लोकतंत्र की मजबूती बनी हुई है। संविधान सभा चुनाव से लेकर आम चुनाव तक किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला, जिसके चलते गठबंधन सरकारें बनती रही हैं। लेकिन यह भी सच है कि 2008 में राजशाही खत्म होने के बाद जनता को कोई बड़ा परिवर्तन महसूस नहीं हुआ, जिससे लोकतांत्रिक सरकारों के प्रति नाराजगी बढ़ी है। यही कारण है कि राजशाही और हिंदू राष्ट्र की मांग फिर से जोर पकड़ रही है।
चीन की चिंताएं और रणनीति
चीन के लिए नेपाल में योगी का बढ़ता प्रभाव और हिंदू राष्ट्रवाद का उभार चिंता का कारण है। चीन लंबे समय से नेपाल में कम्युनिस्ट सरकारों को समर्थन देकर अपने प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश करता रहा है, ताकि भारत का असर कम हो सके। नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) और इसकी शाखाओं, जैसे ओली की एमाले और प्रचंड की माओवादी केंद्र, को चीन का समर्थन हासिल है।
हाल के प्रदर्शनों में योगी की तस्वीरों को भारत का समर्थन माना गया, जिसके जवाब में चीन ने तुरंत कदम उठाया। एमाले नेताओं ने एक एनजीओ के कार्यक्रम में चीन की तारीफ करते हुए उसे अपना “माई-बाप” बताया। चीन की मंशा साफ है कि वह नेपाल में कम्युनिस्ट सरकार को बनाए रखना चाहता है। इसके लिए वह आर्थिक सहायता, बुनियादी ढांचा परियोजनाएं (जैसे सड़क और रेल), और राजनीतिक हस्तक्षेप के जरिए अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है।
प्रचंड और ओली की राजनीतिक चालें
नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टियों में योगी के प्रभाव और राजशाही समर्थकों के उभार से घबराहट साफ दिखती है। प्रचंड ने ढाई दशक पुराने दरबार नरसंहार की जांच की मांग उठाई, जिसमें राजा वीरेंद्र विक्रम शाह और उनके परिवार की हत्या हुई थी। उनका इरादा ज्ञानेंद्र पर कानूनी शिकंजा कसना है, क्योंकि वह उन्हें इसके लिए जिम्मेदार मानते हैं। दूसरी ओर, ओली ने लिपुलेख, कालापानी, और लिंपियाधुरा के सीमा विवाद को फिर से उठाकर खुद को राष्ट्रभक्त साबित करने की कोशिश की। ये दोनों नेता अपनी-अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए राष्ट्रवादी भावनाओं का सहारा ले रहे हैं।
सीमा विवाद: लिपुलेख, कालापानी, और लिंपियाधुरा
नेपाल और भारत के बीच लिपुलेख, कालापानी, और लिंपियाधुरा का विवाद लंबे समय से चला आ रहा है। नेपाल का दावा है कि 1815 की सुगौली संधि के अनुसार, महाकाली नदी इन दोनों देशों के बीच सीमा है, और ये क्षेत्र उसके हिस्से में आते हैं। वहीं, भारत इन क्षेत्रों को अपने भू-भाग का हिस्सा मानता है और यहां तिब्बत सीमा पुलिस बल तैनात है। पिछले साल भारत ने मानसरोवर मार्ग को सुगम बनाने के लिए इस क्षेत्र में सड़क बनाई, जिसका उद्घाटन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने किया था। इसके जवाब में ओली ने नेपाल का नया नक्शा जारी किया, जिसमें इन क्षेत्रों को शामिल किया गया।
यह विवाद नेपाल में राष्ट्रवाद को भड़काने का एक औजार बन गया है। ओली इसे बार-बार उठाकर भारत पर आरोप लगाते हैं और खुद को देशभक्त साबित करने की कोशिश करते हैं। लेकिन यह भी सच है कि भारत और नेपाल के बीच हमेशा सौहार्दपूर्ण संबंध रहे हैं, और दोनों देशों को “रोटी-बेटी का रिश्ता” जोड़ता है।
निष्कर्ष
नेपाल की राजनीति में योगी आदित्यनाथ का खौफ और चीन की दबदबा मजबूत करने की कोशिश एक जटिल भू-राजनीतिक खेल का हिस्सा है। योगी का प्रभाव हिंदू राष्ट्रवाद और राजशाही की मांगों को बढ़ावा दे रहा है, जिसे नेपाल के कम्युनिस्ट नेता और चीन, भारत के हस्तक्षेप के रूप में देखते हैं। दूसरी ओर, चीन नेपाल में कम्युनिस्ट सरकार को बनाए रखने और अपने सामरिक हितों को सुरक्षित करने के लिए सक्रिय है। इस परिदृश्य में नेपाल का भविष्य अनिश्चित है—क्या हिंदू राष्ट्रवाद मजबूत होगा, या चीन अपना प्रभाव कायम रखेगा, यह आने वाला समय ही बताएगा।