स्वतंत्र भारत का घोषणा पत्र

नेहरू ने रखा संविधान के लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव 

भारत का संविधान कैसे बना : किश्त:-05

पंडित जवाहर लाल नेहरू ने आज की बैठक में लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव पेश किया , जिसे भारत की स्वतंत्रता का घोषणा पत्र भी कहा जाता है .

सभापति: डॉ राजेन्द्र प्रसाद 

शुक्रवार , 13 दिसम्बर सन् 1946 ई.

सभापति: पं जवाहरलाल नेहरु अब प्रस्ताव पेश करेंगे जो उनके नाम से है। 

(प्रस्ताव प्रस्तुत करते हुए पं नेहरु ने वैचारिकी को रखा, जो प्रस्ताव सहित करोबन 12-14पृष्ठों में है , जिसे यहां ज्यों का त्यों यहां देना कठिन है। अतएव जिन्हें पूरा भाषण तथा इस दिन हुई चर्चा की कार्यवाही चाहिए, वे अपना ईमेल मुझे भेज दें) 

पंडित जवाहरलाल नेहरु: 

आपके पास हिन्दुस्तानी में इस रिज़ोल्यूशन की नक़लें मौजूद हैं । मैं ज़्यादा वक़्त नहीं लेना चाहता – चुनांचे मैं उनको नहीं पढ़ूँगा। लेकिन अंग्रेज़ी में उसको पढ़कर सुनाये देता हूँ और कुछ और भी उसकी निस्बत अंग्रेज़ी जबान में कहूँगा। 

“भारतीय स्वतंत्रता का घोषणा-पत्र “

(1) “ यह विधान-परिषद भारतवर्ष को एक पूर्ण स्वतंत्र जनतंत्र घोषित करने का दृढ़ संकल्प प्रकट करती है और निश्चय करती है कि उसके भावी भाषण के लिए एक विधान बनाया जाये। 

(2) जिसमें उन सभी प्रदेशों का एक संघ रहेगा जो आज ब्रिटिश भारत तथा देशी रियासतों के अन्तर्गत तथा इनके बाहर भी हैं और जो आगे स्वतंत्र भारत में सम्मिलित होना चाहते हों। 

(3) और जिसमें उपर्युक्त सभी प्रदेशों को, जिनकी वर्तमान सीमा (चौहद्दी) चाहे क़ायम रहे या विधान-सभा और बाद में विधान के नियमानुसार बने या बदले, एक स्वाधीन इकाई या प्रदेश का दर्जा मिलेगा व रहेगा। उन्हें वे सब शेषाधिकार प्राप्त होंगे व रहेंगे जो संघ को नहीं सौंपे जायेंगे और वे शासन तथा प्रबंध संबंधी सभी अधिकारों को बरतेंगे सिवाय उन अधिकारों और कामों के जो संघ को सौंपे जायेंगे अथवा जो संघ में स्वभावत: निहित या समाविष्ट होंगे या जो उससे फलित होंगे; और 

(4) जिसमें स्वतंत्र स्वतंत्र भारत तथा उसके अंगभूत प्रदेशों और शासन के सभी अंगों की सारी शक्ति और सत्ता (अधिकार) जनता द्वारा प्राप्त होगी; तथा 

(5) जिसमें भारत के सभी लोगों (जनता) को राजकीय नियमों और साधारण सदाचार के अनुकूल, निश्चित नियमों के आधार पर सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक न्याय के अधिकार, वैयक्तिक स्थिति व सुविधा की तथा मानवी समानता के अधिकार और विचारों की, विचारों को करने की, विश्वास व धर्म की, ईश्वरोपासना की, काम -धंधे की, संघ बनाने व काम करने की स्वतंत्रता के अधिकार रहेंगे और माने जायेंगे; और 

(6) जिसमें सभी अल्पसंख्यकों के लिए, पिछड़े हुए व कबाइली प्रदेशों के लिए तथा दलित और पिछड़ी हुई जातियों के लिए काफ़ी संरक्षण-विधि रहेगी; और 

(7) जिसके द्वारा इस जनतंत्र के क्षेत्र की अक्षुण्णता (आंतरिक एकता) रक्षित रहेगी और जल, थल और हवा पर उसके सब अधिकार, न्याय और सभ्य राष्ट्रों के नियमों के अनुसार रक्षित होंगे; और 

(8) यह प्राचीन देश संसार में अपना योग्य व सम्मानित स्थान प्राप्त करने और संसार की शांति तथा मानव जाति का हित-साधन करने में अपनी इच्छा से पूर्ण योग देगा ।“

यह बहुत वांछनीय है कि हम खुद को, उन लोगों को जिनकी निगाहें परिषद की ओर हैं, इस देश की करोड़ों जनता को, जो हमारी ओर देख रही है तथा सारी दुनियां को यह आभास दे दें कि हम क्या करेंगे, हमारा ध्येय क्या है और हम किस दिशा में जा रहे हैं । इसी उद्देश्य से मैंने यह प्रस्ताव इस सभा के सामने रखा है। 

प्रस्ताव होते हुए भी यह प्रस्ताव से बहुत कुछ ज्यादा है। 

यह एक घोषणा है, यह एक दृढ़ निश्चय है यह एक प्रतिज्ञा और दायित्व है और हम सबों के लिए तो, हमें विश्वास है कि यह एक व्रत है! 

जब प्रस्ताव को मंजूर करने का समय आवे तो हम सिर्फ़ रस्म के रूप में हाथ उठाकर ही उसे न स्वीकार करें बल्कि भक्ति भाव से खड़े होकर उसे स्वीकार करें और इसे अपना नवीन व्रत समझें। 

Chauri Chaura and the BJP
millions participated in Quit India Movement launched by Mahatma Gandhi

महात्मा गांधी का उल्लेख करते हुए पंडित नेहरु ने अपने वक्तव्य में कहा कि “ एक और भी व्यक्ति यहां आज अनुपस्थित है जो अवश्य ही हममें से बहुतों के दिल में मौजूद है । हमारा इशारा उस व्यक्ति की ओर है, जो सारे देश का नेता है, जो समस्त राष्ट्र का जनक है, (हर्षध्वनि) जो इस सभा का निर्माता रहा है, जो हमारे कितने ही अतीत-कार्यों का कर्ता रहा है और हमारी भविष्य की बहुतेरी कार्रवाईयों का कर्ता-धर्ता रहेगा । आज वह यहां उपस्थित नहीं है। वह अपने महान उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भारत के एक सुदुर कोने में निरंतर कार्यरत हैं । परन्तु मुझे इस बात में जरा भी शक नहीं है कि उसकी आत्मा इस भवन में वर्तमान है और इस महान् कार्य के संपादन में हमें सतत आशीर्वाद दे रही है। 

जब भारत को हम सर्वाधिकारपूर्ण राष्ट्र बनाने जा रहे हैं तो किसी बाहरी शक्ति को हम राजा न मानेंगे और न किसी स्थानीय राजतंत्र की तलाश करेंगे। यह तो निश्चय ही प्रजातंत्रीय (Republic) होगा। 

आज भी जब हम आजादी के किनारे खड़े हैं, भारत ने संसार के मामलों में ज़बरदस्त हाथ बंटाना शुरू कर दिया है । इसलिए विधान-निर्माताओं के लिए यह उचित है कि इस अंतरराष्ट्रीय पहलू को हमेशा ध्यान में रखें। 

हम संसार के साथ दोस्ताना बरताव चाहते हैं। हम सब देशों से मित्रता चाहते हैं ।

सभापति महोदय, इन शब्दों के साथ मैं यह प्रस्ताव पेश करता हूँ। 

सभापति: श्री पुरुषोत्तमदास टंडन इस प्रस्ताव का समर्थन करेंगे। 

(श्री टंडन का प्रस्ताव के समर्थन में भाषण हुआ। यह भाषण भी करीबन 8 पृष्ठों का है) 

सभापति: मैं समझता हूँ कि चालीस से भी ज़्यादा संशोधन मेरे पास आ चुके हैं। 

तदनन्तर सभा सोमवार, 16 दिसंबर 1946 को 3 बजे तक के लिए स्थगित की गई। 

(पंडित जवाहरलाल नेहरु द्वारा “लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव “ प्रस्तुत करने तथा इस पर श्री टंडन का समर्थन भाषण हो जाने के बाद इस बारे में पेश संशोधनों पर 16 दिसंबर 1946 से सदन की कार्यवाही हुई। इसका उल्लेख इस लेखमाला की अगली किश्त में होगा)

प्रस्तुति : कुमार कलानंद मणि 

kumarkalanandmani@gmail.com

स्त्रोत: विधान-परिषद (संविधान सभा) में वाद-विवाद का सरकारी रिपोर्ट ।

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