प्रकृति के रहस्यों से अनजान मानव
एक बालक की प्रार्थना - मानव सभ्यता बनाएँ रखें
निखिल त्रिपाठी, छात्र, प्रयागराज
अभी थोड़ी देर पहले से वर्षा शुरू हुई . साथ में सुहावनी हवा . तभी अचानक तेज गड़गड़ाहट के साथ बिजली चमक उठती है. इस बिजली की तेज चमक के साथ तेज गड़गड़ाहट . “अंतरिक्ष में हमारी पृथ्वी” यह डरावनी कल्पना अक्सर मुझे झकझोर देती है | काश मैं कभी अपने इस डर को दूसरों के सामने एक्सप्रेस कर पाऊं! आज यही डर अचानक तब तरो ताजा हो गया जब सुहावनी वर्षा के बीच में अचानक तेज गड़गड़ाहट के साथ बिजली चमक उठी l
मुझे कभी-कभी ऐसा एहसास होता है कि इस अनंत आकाश के सामने हम असहाय हैं! हमें कुछ नहीं पता कि हमारे साथ अगले क्षण कौन सी घटना घटने वाली है हमारी पृथ्वी पर क्या संकट आने वाला हैl कभी-कभी ऐसा प्रतीत होता है कि प्रकृति हमारे साथ खेल खेल रही है! प्रकृति एक जटिल निकाय है जिसे समझ पाना मानव के वश में नहीं है , मुझे लगता है और हम कर भी क्या सकते है?
जब तक यह प्रकृति हमें विकास के पथ पर गतिशील देखना चाहेगी तब तक हम खुशहाल गतिशील जिंदगी जिएंगे और जब यह प्रकृति हमसे रूठ रूठ जाएगी तो न जाने किस क्षण हमारी इस मानव सभ्यता को जड़ से उखाड़ फेंक देगी !
कभी-कभी रात के सपने में अंतरिक्ष की सैर में पृथ्वी का अंतरिक्ष में इतनी स्पीड से परिभ्रमण करना , अनगिनत तारों ग्रहों ग्रहों का इस अंतरिक्ष में व्याप्त होना इत्यादि की कल्पना करना इतना भयावह होता है . कभी-कभी लगता है कि बस कभी भी तुरंत हमारी इस पृथ्वी का सर्वनाश हो सकता है !
परंतु इसी बीच प्रकृति की इस ममतामई भ्रम जाल में मानव समाज का इतना खुशहाल निर्द्वन्द्व होकर जीवन का व्यतीत करना कुछ अटपटा सा लगता है . काश यह हमारा आम जन इन खतरों से हमेशा के लिए सुरक्षित होता . मैं हमेशा प्रकृति से प्रार्थना करता हूं कि हमारे इस मानव सभ्यता को अस्तित्व में बनाए रखें!
लेखक निखिल त्रिपाठी , ज्वाला देवी सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कॉलेज सिविल लाइंस प्रयागराज में पढ़ रहे हैं।
Dhanyawad