राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 और शिक्षा में परिवर्तन का अर्थ
राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती
आदिकालीन मानव समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन तब हुआ जब हमने कृषि संस्कृति को जीवन का अभिन्न अंग बनाया। दूसरी बार क्रांतिकारी परिवर्तन आद्योगिक क्रांति से हुआ। आज मानव समाज में परिवर्तन का बहुआयामी दौर शिक्षा में क्रांति के फलस्वरूप हो रहा है, इसलिए यह आवश्यक है कि शिक्षा की दशा और दिशा के सम्बन्ध में गंभीरतापूर्वक विचार विमर्श हो।
डा चन्द्रविजय चतुर्वेदी ,प्रयागराज
आजादी के बाद शिक्षा को भारतीय प्रकृति और आकांक्षाओं के अनुरूप विक्सित करने के लिए राधाकृष्णन, मुद लियार, कोठारी आयोग बैठाये गए। शिक्षा की राष्ट्रीय शिक्षा नीति निर्धारित करने के लिए भी आयोगों के गठन किये जाते रहे। बिना इसकी समीक्षा किये हुए कि पूर्व के आयोगों की संस्तुतियों का कितना क्रियान्वयन हो पाया और कितना नहीं हुआ, यदि कुछ भी क्रियान्वयन हुआ तो क्या परिणाम प्राप्त हुआ और जितना क्रियान्वयन न हो पाया, उसके मूल में क्या कठिनाइयां थी। कुल मिला कर आधे अधूरे प्रयोग ही होते रहे –भारतीय प्रकृति और शिक्षा का सार्थक संवाद नहीं बन पाया।
भारतीय मानस की व्यग्रता इसका सूचक है कि देश को शिक्षा के जिस स्वरूप की तलाश है, वह अभी तक उपलब्ध नहीं हो सकी। समाज की कल्याण कामना से दूर होती जा रही आज की शिक्षा केवल संकीर्ण व्यक्तिगत स्वार्थों की सिद्धि मात्र बन के रह गई –शिक्षा आयोग की संस्तुतियों पर बस प्रयोग होते रहे। बीसवीं शताब्दी में मानवीय सभ्यता को सबसे बड़ा वरदान विज्ञानं और लोकतंत्र के रूप में मिला परन्तु यह क्रूर सत्य है कि शिक्षा की सही दशा और दिशा के अभाव में आज का समाज विज्ञानं और लोकतंत्र द्वारा ही ठगा जा रहा है।
पूरी दुनिया की बात न भी करें तो भी आज यह देश शिक्षा की सही दिशा के अभाव में दो देशों में विभक्त होता जा रहा है। एक इंडिया और दूसरा भारत। देदीप्यमान इंडिया की सारी जगमगाहट ,तथाकथित सभ्य समाज की विकास और प्रगति भारत के मूल्य पर है जो अनपढ़ है मूक है वधिर है , अन्धकार के गुफा में लोकतंत्र की रोशनी तलाश रहा है।
यह कटु सत्य है की आज देश के विभिन्न क्षेत्रों में जो दयनीय स्थिति है उससे उबारने का कार्य शिक्षा ही कर सकती है। आज नई– शिक्षा नीति-२० क्रांतिकारी मुद्रा में परिवर्तन की धारणा को समेटे क्रियान्वयन के पटल पर उतर चुका है। उसके समक्ष चुनौती है की क्या भारत और इण्डिया को मिला कर एक देश कर सकता है।
भारतीय प्रकृति –भूत वर्त्तमान और भविष्य एक साथ जीता है। भारत के पास अतीत की समृध्दि का विरासत है वहीँ उसे वर्तमान के वरदान –लोकतंत्र और विज्ञान भी उपलब्ध हुए। लोकतंत्र मात्र एक शासन पध्दति भर नहीं है वल्कि यह जीवनशैली भी निर्मित करता है। सार्थक शिक्षा पध्दति के आभाव में वह जनमानस नहीं बन पाया जहाँ इस शैली का सम्यक और सार्थक क्रियान्वयन हो सके। विज्ञान एक दृष्टिकोण है। पूर्वाग्रह से बचाना ही वैज्ञानिकता है। विज्ञान से प्रद्योगिकी और प्रद्योगिकी से पूंजीवादी निजीकरण की स्पर्धा में वृध्दि के कारण शिक्षा के परिवर्तन को सही अर्थ नहीं मिल सका।
शिक्षा आयोगों ने अपने प्रतिवेदनों मेंइस मूलतत्व को इंगित कियाहै की आधुनिकीकरण के साथ साथ अपने समृध्द विरासत का समन्वय करते हुए देश की संभावनाओं को विक्सित करने की शिक्षापध्दति ही देश के लिए अर्थपूर्ण है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति -20 के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है कि वह किस रूप में आधुनिकीकरण ,वैज्ञानिक परिदृष्टि ,लोकतान्त्रिक मूल्य और समृद्ध विरासत को नए पाठ्यक्रमों में परिभाषित कर पाती है ,वही सफलता का मापदंड हो सकेगा।