म्यांमार में सैनिक क्रांति भारत के लिए ख़तरे की घंटी
म्यांमार में सैनिक क्रांति भारत के लिये ख़तरे की घंटी है।भारत के उत्तर पूर्वी छोर पर स्थित तीन राज्यों की सीमाएँ म्यांमार से मिलती हैं। उन राज्यों में आतंकवादी घटनाओं के जिम्मेदार संगठनों के बारे में कहा जाता है कि वे म्यांमार से अपनी कार्रवाई संचालित करते हैं।हाल में यह खबर भी आई थी कि वहां आतंकियों को चीनी और पाकिस्तानी प्रशिक्षित कर रहे है.
दस साल बाद पांच करोड़ चालीस लाख की आबादी वाला देश म्यांमार एक बार फिर सैनिक शासन की गिरफ़्त में आ गया है। वहां की सेना ने सर्वोच्च नेता 75 वर्षीय आंग सान सू ची समेत कई नेताओं को गिरफ़्तार करने के बाद सेना प्रमुख मिन आंग लाइंग ने सत्ता संभाल ली है।
लेकिन जनता ने सैनिक शासन का विरोध करना शुरू कर दिया है। देश के सबसे बडे़ शहर यांगोन में बड़ी संख्या में लोगों ने रसोई के बरतन और कार के होर्न बजाकर सैनिक तानाशाही का विरोध जताया ।डाक्टरों ने भी घोषणा की है कि वे लोग अस्पताल में काम छोड़ देंगे। एनीसथीसिया के एक डॉक्टर ने नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया है।उनका कहना है कि वे तानाशाह के तहत काम नहीं कर सकते।
पहले तो सेना के भूतपूर्व जनरल माइंत स्वे को राष्ट्रपति घोषित कर दिया गया । जिन्होंने फौरन सेना प्रमुख मिन आंग लाइंग को राष्ट्रपति घोषित कर दिया।
64 वर्षीय जनरल लाइंग इस वर्ष जुलाई में सेवा निवृत्त होने वाले हैं। मानवाधिकार उल्लंघन के कारण अमरीका ने सन् 2019 में उनकी अमरीका में संपत्ति जब्त कर ली थी। जनरल लाइंग ने यंगून विश्वविद्यालय से पढ़ाई पूरी करने के बाद तीसरी बार में राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में दाखिला लिया था। वे सन् 2009 में ब्यूरो औफ स्पेशल ओप्रेशन – 2 के कमांडर बने ।
सेना ने 24 मंत्रियों और उनके सहयोगियों को हटा दिया है और उनकी जगह अपने 11 लोगों को नामजद किया है।
सेना ने सोमवार को होने वाली संसद की बैठक को स्थगित कर दिया और सभी सांसदों को उनके घरों में ही नजरबंद कर दिया। और उनके घरों के बाहर फ़ौजी सैनिकों का पहरा लगा दिया।
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पिछले साल हुए चुनाव के बाद म्यामांर के नवनिर्वाचित सांसद राजधानी नेपीता में संसद के पहले सत्र के लिए सोमवार को एकत्रित होने वाले थे।
आंग सान सू ची को म्यांमार में किसी देवी का सम्मान प्राप्त है । वे वहां लोकतंत्र की स्थापना के लिये सतत् संघर्षरत रहीं हैं और15 वर्षों तक घर में नजरबंद रहने के बाद सन् 2000 में छूटीं। इस बीच सन् 1991में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
उनकी रिहाई के बाद सैनिक शासन द्वारा तैयार किये गये संविधान के तहत संसदीय चुनाव हुए जिसमें एक व्यवस्था थी कि वे राष्ट्रपति कदापि नहीं हो सकतीं। लुंज-पुंज लोकतंत्र के बावजूद देश की सर्वोच्च नेता वहीं रहीं।
लेकिन सात लाख रोहिंग्या मुसलमानों के उत्पीड़न और नरसंहार के मामले में उन्होंने अपनी सेना के जुल्मों सितम का समर्थन करके अपनी अंतरराष्ट्रीय सम्मान खो दी।
नेशनल लीग फ़ॉर डेमोक्रेसी पार्टी के प्रवक्ता ने न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स से कहा, सू ची, राष्ट्रपति विन म्यिंट और दूसरे नेताओं को तड़के हिरासत में ले लिया गया ।
म्यांमार की राजधानी नेपीटाव और मुख्य शहर यंगून में सड़कों पर सैनिक मौजूद हैं।टेलीफ़ोन और इंटरनेट सेवाएं काट दी गई हैं।
पिछले वर्ष आठ नवंबर को हुए आम चुनाव में सत्तारूढ़ ‘नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी’ को 476 में से 396 सीटों पर जीत हासिल हुई थी, जिसके बाद ‘स्टेट काउंसलर’ आंग सान सू ची को पांच और वर्षों के लिये सरकार बनाने का मौका मिल गया था।
सेना के समर्थन वाली ‘यूनियन सॉलिडेरिटी एंड डेवलपमेंट’ पार्टी को केवल 33 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। इससे नाराज़ हो कर सेना ने डोनाल्ड ट्रंप की तर्ज पर कई बार सार्वजनिक रूप से चुनाव में धांधली का आरोप लगाया । साथ ही उसने सरकार और केन्द्रीय चुनाव आयोग से नतीजों की समीक्षा करने का भी आग्रह किया ।
ऑनलाइन समाचार पोर्टल ‘म्यामांर नाऊ ‘ के अनुसार सू ची और उनकी पार्टी के अध्यक्ष को सोमवार तड़के गिरफ्तार कर लिया गया। हालांकि पोर्टल पर कोई विस्तृत जानकारी नहीं दी गयी है। राजधानी नेपीता के लिए संचार के सभी माध्यम बंद कर दिये गये हैं और सू ची की नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी पार्टी से किसी का संपर्क नहीं हो पा रहा है।
सेना के हालिया बयानों से सैन्य तख्तापलट की आशंका व्यक्त की जा रही थी। रविवार को वाशिंगटन पोस्ट ने भी एक रिपोर्ट में इस आशय का समाचार प्रकाशित किया था। सू ची की पार्टी ने संसद के निचले और ऊपरी सदन की कुल 476 सीटों में से 396 पर जीत दर्ज की थी जो बहुमत के आंकड़े 322 से कहीं अधिक था।
लेकिन सन् 2008 में सेना द्वारा तैयार किए गए संविधान के तहत कुल सीटों में 25 प्रतिशत सीटें सेना को दी गयी हैं जो संवैधानिक बदलावों को रोकने के लिए काफी है। कई अहम मंत्री पदों को भी सैन्य नियुक्तियों के लिए सुरक्षित रखा गया है।
म्यांमार की राजनीति में सेना का हमेशा से ही दबदबा रहा है। सन् 1962 में तख्तापलट के बाद से सेना ने देश पर करीब 50 सालों तक प्रत्यक्ष रूप से शासन किया है।
लोकतांत्रिक व्यवस्था की मांग तेज होने पर सोनू 2008 में सेना नया संविधान लाई । जिसमें लोकतांत्रिक सरकार और विपक्षी दलों के नेता को जगह दी गई लेकिन सेना की स्वायत्तता और वर्चस्व को बनाए रखा गया।
नए चार्टर के तहत, सेना प्रमुख को अपने लोगों की नियुक्ति करने और सैन्य मामलों में अंतिम फैसला करने का अधिकार दिया गया था। अर्थात सेना प्रमुख को किसी के प्रति जवाबदेह नहीं बनाया गया था।
म्यांमार की लोकतांत्रिक सरकार किसी कानून को ला सकती है लेकिन इसे लागू कराने की शक्ति सेना प्रमुख के पास ही है।पुलिस, सीमा सुरक्षा बल और प्रशासनिक विभाग सबका नियंत्रण सेना प्रमुख के पास ही रखा गया है।सेना के लिए संसद की एक-चौथाई सीटें आरक्षित हैं और सरकार में रक्षा मंत्री, गृह मंत्री और सीमा मामलों के मंत्री की भी नियुक्ति सेना प्रमुख ही करता है।
सेना प्रमुख किसी भी संवैधानिक बदलाव पर वीटो करने का अधिकार रखता है। इसके अलावा, सेना प्रमुख किसी भी चुनी हुई सरकार का तख्तापलट करने की ताकत रखता है।
सेना के पास देश की दो बड़ी कंपनियों का स्वामित्व है। इन कंपनियों का शराब, तंबाकू, ईंधन और लकड़ी समेत कई अहम क्षेत्रों पर एकाधिकार है।
कौन हैं आंग सान सू ची?
सू ची (75) देश की सबसे अधिक प्रभावी नेता हैं और देश में सैन्य शासन के खिलाफ दशकों तक चले अहिंसक संघर्ष के बाद वे देश की नेता बनीं। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से पढ़ाई की है। वे तत्कालीन बर्मा के महान क्रांतिकारी नेता बॉज्ञोटी औंग सान की एकलौती पुत्री हैं जिन्हें आधुनिक म्यांमार का राष्ट्रपिता माना जाता है। उन्होंने बर्मा को ब्रिटिश उपनिवेशवादियों से आज़ाद कराया था। बर्मा की सशस्त्र सेना की भी उन्होंने ही स्थापना की थी
आजादी मिलने से पहले ही सन् 1947में चुनावी जीत के बाद उनकी और उनके मंत्रिमंडल के अधिकतर सदस्यों की हत्या कर दी गयी थी ।
म्यांमार में सेना को टेटमदॉ के नाम से जाना जाता है। सेना ने पिछले साल नवंबर में हुए आम चुनाव में धोखाधड़ी का आरोप लगाया हालांकि वह इसके सबूत देने में नाकाम रही। देश के स्टेट यूनियन इलेक्शन कमीशन ने पिछले सप्ताह सेना के आरोपों को खारिज कर दिया था।
इन आरोपों से पिछले सप्ताह उस वक्त राजनीतिक तनाव पैदा हो गया जब सेना के एक प्रवक्ता ने अपने साप्ताहिक संवाददाता सम्मेलन में एक पत्रकार के सवाल के जवाब में सैन्य तख्तापलट की आशंका से इनकार नहीं किया। मेजर जनरल जॉ मिन तुन ने कहा था कि सेना ”संविधान के मुताबिक कानून का पालन करेगी।”
कमांडर इन चीफ सीनियर जनरल मिन आंग लाइंग ने भी बुधवार को वरिष्ठ अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि अगर कानून को सही तरीके से लागू नहीं किया गया तो संविधान को रद्द कर दिया जाएगा। इसके साथ ही देश के कई बड़े शहरों की सड़कों पर बख्तरबंद वाहनों की तैनाती से सैन्य तख्तापलट की आशंका बढ़ गयी।
हालांकि शनिवार को सेना ने तख्तापलट की धमकी देने की बात से इनकार किया और अज्ञात संगठनों एवं मीडिया पर उसके बारे में भ्रामक बातें फैलाने तथा जनरल की बातों को गलत तरीके से पेश करने का आरोप लगाया। सेना ने रविवार को भी अपनी बात दोहराते हुए तख्तापलट की आशंका को खारिज किया और इस बार उसने विदेशी दूतावासों पर सेना के बारे में भ्रामक बातें फैलाने का आरोप लगाया।
अमेरिका में राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के अधिकारियों और विदेश मंत्रालय ने कहा कि वे म्यामांर में हो रहे घटनाक्रम की खबरों से अवगत हैं ।बाइडेन प्रशासन के लिये यह एक चुनौती है। बाइडेन ने घोषणा की है कि दुनिया में कहीं भी हो रहे मानवाधिकार उल्लंघन को रोकने के लिये वे प्रतिबद्ध हैं। म्यांमार में हुई सैनिक क्रान्ति से वहां चल रही लोकतांत्रिक प्रक्रिया पटरी से उतर गई है।
सैनिक क्रांति से पहले अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने म्यांमार को कोरोना से लड़ने के लिये 35 करोड़ डॉलर नकद दिया था। इसकेे पहले भी उसे 70 करोड़ डॉलर दिये थे।
भारत के लिये भी यह ख़तरे की घंटी है।इसके उत्तर पूर्वी छोर पर स्थित तीन राज्यों की सीमाएं म्यांमार से मिलती हैं। उन राज्यों में आतंकवादी घटनाओं के जिम्मेदार संगठनों के बारे में कहा जाता है कि वे म्यांमार से अपनी कार्रवाई संचालित करते हैं।हाल में यह खबर भी आई थी कि वहां आतंकियों को चीनी और पाकिस्तानी प्रशिक्षित कर रहे हैं। लेकिन भारत का म्यांमार के सैनिक शासन के साथ अच्छा संबंध रहा है।
इसीलिये इस तख्ता पलट पर भारत ने संतुलित भाषा का इस्तेमाल किया है ।
म्यांमार दक्षिण पूर्वी एशिया का एकमात्र ऐसा देश है जिसकी 1,624 किलोमीटर सरहद उत्तर पश्चिम भारत के साथ मिलती है।बंगाल की खाड़ी में 725 किलोमीटर सामुद्रिक सीमा है।
म्यांमार बिमस्टेक का महत्वपूर्ण सदस्य तो है ही भारत ने वहां कई इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं भी चला रखी हैं। सामरिक दृष्टि से भी भारत के लिए म्यांमार एक महत्वपूर्ण देश है। गंगा -मीकौंग सहयोग का एक सदस्य भी है। भारत- म्यांमार- थाईलैंड हाइवे और कालादान मल्टीमोडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट पर भी काम चल रहा है जो कोलकाता बंदरगाह को म्यांमार के राखिनी राज्य स्थित सितवे बंदरगाह से जोड़ देगा।
— पंकज प्रसून , विदेश मामलों के जानकार