आधुनिक शिक्षा : दिमाग तो बहुत बड़ा हो गया है लेकिन दिल संकुचित हो गए हैं
विनोबा विचार प्रवाह अंतर्राष्ट्रीय संगीति
डाॅ.पुष्पेंद्र दुबे
शाहजहांपुर 24 अगस्त।विनोबा जी के अनुसार शिक्षा की सबसे छोटी व्याख्या सत्संगति और बड़ी व्याख्या है आत्मसाक्षात्कार। वर्तमान में सूचना और जानकारी का विस्फोट हुआ है। इसके अनेक स्तर पर नकारात्मक परिणाम परिलक्षित हो रहे हैं। आधुनिक शिक्षा से आज जानकारियों का प्रवाह इतना तीव्र है कि उसमें शिक्षा का असली उद्देश्य तिरोहित हो गया है। दिमाग तो बहुत बड़ा हो गया है लेकिन दिल संकुचित हो गए हैं।
विचार गांधी विचार परिषद वर्धा के निदेशक श्री भरत महोदय ने विनोबा विचार प्रवाह द्वारा विनोबा जी की 125जयंती पर फेसबुक माध्यम पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय संगीति में यह विचार वक्त किए।
श्री महोदय ने कहा कि केवल जानकारी देना ही शिक्षा का उद्देश्य नहीं है। विनोबा जी ने शिक्षा क्षेत्र में माना है कि गुरु विद्यार्थी निष्ठा हो, विद्यार्थी गुरु निष्ठ हो, गुरु और विद्यार्थी ज्ञान निष्ठ हो और इसका परिणाम समाज निष्ठा के रूप में सामने आए।
श्री महोदय ने कहा कि बालक की प्रथम गुरु उसकी मां होती है। उसके द्वारा दिए गए संस्कार जीवनभर साथ रहते हैं। उसके बाद आचार्य का स्थान आता है। विनोबा जी के अनुसार एक आचार्य में शील, करुणा और प्रज्ञा होना चाहिए। एक शिक्षक को माली की भूमिका में होना चाहिए जिसे यह भलीभांति पता हो कि किस विद्यार्थी में कौन-सा गुण मौजूद है।
श्री महोदय ने कहा कि हमारी दृष्टि भ्रांत होती है। चीजों को स्पष्ट देखने में असमर्थ होते हैं। महापुरुषों के सान्निध्य से हम अपनी दृष्टि को निभ्रांत बना सकते है। इससे हम अपनी आदतों की श्रृखंलाओं से मुक्ति हासिल कर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि ज्ञान की प्राप्ति कष्ट सहन किए बिना नहीं होती। इसलिए विद्यार्थी जीवन में ही हमें संयम को अपना लेना चाहिए। एक बंद कमरे में शिक्षा हासिल करने से समाज व्यवहार की जानकारी नहीं मिलती।
उन्होंने गांधीजी का उदाहरण देते हुए कहा कि उनके आचरण के कारण उनकी वाणी का प्रभाव लोगों के मानस पर होता था। इसलिए सिद्धांत और व्यवहार के अंतर को कम करना शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए।
प्रेम सत्र के वक्ता श्री अजय कुमार पाण्डे ने विनोबा जी के जीवन को गढ़ने में परिवार की भूमिका पर विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि विनोबा जी पर उनके दादा श्री शंभुराव जी का बहुत प्रभाव था। उनके व्रतपूर्ण, संयमी और भक्तिपूर्ण जीवन ने विनोबा को बालपन में व्रत का महत्व समझाया।विनोबा की मां रुक्मिणी देवी की करुणा ने उनमें दूसरों के प्रति सद्व्यवहार का बीजारोपण किया। साथ में ब्रह्मचर्य की प्रेरणा देने काम भी उनकी माता ने किया। विनोबा जी का चरित्र बाल्यकाल में ही प्रज्ज्वलित अग्नि के समान प्रदीप्त था। सामाजिक समरसता और धार्मिक सहिष्णुता का पहला पाठा उन्हें अपने घर में ही मिला।व्यक्ति के चित्त को निर्मल बना देने का रसायन विनोबा के पास था, जिसे हम उनके भूदान आंदोलन, बागी समर्पण और अनेक करुणामूलक कार्यों में देखते हैं।
करुणा सत्र के वक्ता स्वस्थ भारत मिशन के श्री आशुतोष कुमार सिंह ने कहा कि करुणा एक भाव है। आज हम बहुत सारी समस्याओं का समाधान पुस्तकालय में ढूंढते हैं। लेकिन उनका समाधान समाज के बीच जाने से मिलेगा। भारत के चरित्र में विश्व भाव मौजूद है। वह उससे कम विचार नहीं करता।
भारत की तासीर प्रारंभ से ही जयजगत की है, जिसे विनोबा जी ने उद्घोषित किया। इसलिए उनके विचार सभी के हृदय का स्पर्श करते हैं। ब्रह्मविद्या मंदिर की बहनों की करुणा और स्नेह से ऐसा कोई विरला ही होगा जो प्रभावित न हो।
प्रारंभ में श्री रमेश भैया ने वक्ताओं का परिचय दिया। श्री संजय राय ने संचाल किया। आभार डाॅ.पुष्पेंद्र दुबे ने माना।