माओ की कविता नये साल पर
चीन के महान कम्युनिस्ट नेता माओ ज़तुंग की 127 वीं सालगिरह हाल ही में मनायी गयी थी।माओ एक विलक्षण व्यक्तित्व के धनी थे। चीनी लोग उन्हें किसी देवता की तरह देखते हैं। तंग श्याओ-फिंग ने माओ की मृत्यु के बाद अपनी अलग नीति चलानी शुरू की और थ्येन आन मन से माओ के समय के कम्युनिस्ट नेताओं की तस्वीरें हटा दीं। लेकिन जब माओ की समाधि को हटाने की बात चलने लगी तो उसका पूरे देश में विरोध होने लगा।पूरा चीन दो भागों में बंट गया – माओ समर्थक और माओ विरोधी। नतीजतन माओ की तस्वीर वहां बरकरार रही।
चीन के लोग कवियों की बहुत इज्जत करते हैं।माओ एक क्रांतिकारी नेता होने के साथ ही उच्च स्तर के क्रांतिकारी कवि भी थे।इसलिये चीन के जनमानस पर उनकी अमिट छाप है।
कृपया देखें
https://www.globaltimes.cn/page/202012/1211052.shtml
माओ की ष्वेइत्याओ कथोउ (यानी तैरना) शीर्षक कविता को यांग्ज़ नदी के किनारे बसे वुहान शहर में बने बाढ़ स्मारक पर भी लगाया गया है।
माओ ज़तुंग चीन की सांस्कृतिक विरासत के प्रति संवेदनशील कवि और क्रांतिकारी थे।इसलिये उनकी कविताओं में चीन के पौराणिक मिथकों का नये क्रांतिकारी संदर्भ में इस्तेमाल करने को देखा जा सकता है।
खुद माओ ने चीन के तीन मशहूर महाकवियों से प्रेरणा ली थी। जिनके नाम हैं– ली पाई,ली षांगयिन, और ली ह ।
माओ का जन्म छिंग साम्राज्य में हूनान के षाओषान में 26 दिसंबर 1893 को हुआ था। और 82 साल की उम्र में हृदयाघात से 9 सितंबर 1 976 को मृत्यु हुई।
माओ एक धनी किसान के पुत्र थे। बचपन से ही उनका चीनी राष्ट्रवाद और साम्राज्यवाद विरोधी दृष्टिकोण था और वे 1911 की शिनहाई क्रांति और 1919 की चार मई आंदोलन की घटनाओं से प्रभावित थे।
बाद में पेइचिंग विश्वविद्यालय में काम करने के दौरान मार्क्सवाद और लेनिनवाद के संपर्क में आये और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के सक्रिय सदस्य तो हुए ही सन् 1927 की पतझड़ में फ़सल कटाई विद्रोह का नेतृत्व भी किया। छन तूश्यू नेवूयी ,षांगहाई में सन्1921के आसपास चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की थी।27 साल के माओ भी उसी दौरान कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हुए थे।दो वर्षों के बाद पार्टी के तीसरे कांग्रेस में उन्हें केंद्रीय समिति का सदस्य चुना लिया गया।
1931 से 1934 के बीच माओ ने दक्षिण पूर्व चीन में चीनी सोवियत रिपब्लिक की स्थापना की और उसके चेयरमैन चुन लिये गये।
माओ का मशहूर लौंग मार्च शुरू हुआ सन् 1934 में। दरअसल वह पीछे हटते जाने का फैसला था। दक्षिण पूर्व से 10,000 किलोमीटर दूर उत्तर पश्चिम की ओर। उसमें करीब 70,000 लोग मारे गये और लाल सेना के सैनिकों की संख्या 40,000 से घटकर 10,000 रह गयी।.
सन् 1937 में जापान ने चीन पर भयानक रूप से हमला किया।तब कम्युनिस्ट पार्टी ने राष्ट्रवादी क्वोमिनतांग के साथ मिलकर जापानियों का मुकाबला किया। लेकिन जापान को पराजित करने के बाद चीन में गृहयुद्ध छिड़ गया।
र्रुइचिन में हुई हार के बाद सोवियत कम्युनिस्ट वहां से भाग निकले। जो कई महत्वपूर्ण नेता वहां पर बचे रह गये उन्हें क्वोमिनतांग ने मार डाला।मारे गये लोगों में माओ के सबसे छोटे भाई माओ ज़थान भी थे।
लौंग मार्च शुरू होने से पहले कम्युनिस्ट पार्टी के नेता चोउ अन्लाई थे। लेकिन उन्होंने माओ के नेतृत्व को स्वीकार कर लिया जिसका परिणाम यह हुआ कि माओ का पार्टी पर निर्विवाद अधिकार स्थापित हो गया। और माओ सन् 1934 से जो पार्टी के अध्यक्ष बने तो 1976 में मरते दम तक अध्यक्ष बने रहे।
माओ को चीन के किसानों का पूरा समर्थन प्राप्त था। क्योंकि वे किसानों का दर्द समझते थे और उनकी समस्याओं का समाधान भी करते थे। क्रांति के दिनों में जब माओ महीनों तक बाहर रहते थे तो कृतज्ञ किसान उपज का एक हिस्सा अलग से उनके लिये रखते थे।
1 अक्टूबर 1949 को माओ ने आधिकारिक रूप से चीनी गणराज्य की स्थापना की। च्यांग काई शेक अपने 600,000 वफादार सैनिकों और बीस लाख समर्थकों के साथ ताईवान नामक टापू की ओर भाग गया।
सन् 2016 तक लौंग मार्च का एक ही जीवित व्यक्ति बचा हुआ था जिसका नाम था थू थुंगचिन जो फ़ूच्येन का निवासी एक न्यूरोसर्जन था और जिसकी उम्र 102 वर्ष की थी।
सन् 1959 में माओ ने आगे की ओर महान उछाल नामक कार्यक्रम शुरू किया जो असफल रहा।तब मई 1966 में माओ ने सांस्कृतिक क्रांति नामक अभियान चलाया ताकि ख्रुश्चौफ जैसे संशोधनवादियों को ढूंढ कर निकाल बाहर किया जाये।माओ ने एक बड़ा सा पोस्टर भी तैयार किया था जिसका शीर्षक था ” मुख्यालय को बम से उड़ा दो।”
चीन सरकार ने सन् 2006 में लौंग मार्च पर एक फिल्म भी बनवायी थी। जिसमें एक काल्पनिक चरित्र लौंग मार्च के दौरान हुए अपने अनुभवों को बताता है।
माओ की एक प्रसिद्ध कविता है खुनलुन जो मध्य एशिया की महान पर्वतमाला पर आधारित है।जो चीन के उत्तर पश्चिम स्थित शिनच्यांग प्रांत में खोतान नदी के ऊपरी भाग में मौजूद है। चीनी मिथकों के अनुसार वहां कभी देवताओं का निवास था।
गर्मियों में अगर कोई व्यक्ति मिन पर्वत पर चढ़ कर देखे तो उसे दूर खड़े पहाड़ चमकती सफेदी में नृत्य करते नजर आयेंगे।
उधर बसे लोगों का कहना है कि सदियों पहले उन पहाड़ों पर आग लगी हुई थी। एक बार बन्दर राजा सुन शिंग-छ उधर से गुजर रहा था तो उसने ताड़ के पत्तों से पंखा बना कर आग को बुझा दिया। लपटें बुझ गयीं और वहां बर्फ़ जम गयी।
इस कविता के बारे में खुद माओ का कहना था कि किसी पुराने कवि ने उड़ती हुई बर्फ़ का कुछ इस प्रकार वर्णन किया था कि ” तीस लाख सफेद अजदहे लड़ रहे हैं जिनके शल्क आसमान में उड़ रहे हैं।लेकिन मैंने इसे बर्फ़ ढके पहाड़ का विवरण करने में इस्तेमाल किया है।”
पाठकों के लिये उस कविता को पेश करने के साथ ही हम उनकी दूसरी कविता “तीन गीत” भी पेश कर रहे हैं। जिसे माओ ने 1934-35 में लौंग मार्च के दौरान लिखा था।मूल कृति में हर कविता में सोलह अक्षर हैं । वैसे माओ ने लौंग मार्च पर भी एक गीत लिखा था।नया साल आ रहा है, तो उसकी शुरुआत नये साल पर लिखे माओ के एक गीत से करते हैं।माओ ने साल के पहले दिन की खुशी मनाती यह कविता सन् 1930 में लिखी थी।
नये साल का पहला दिन
(चुइ मंग लिंग की धुन पर)
यह कविता सन् 1930 में लिखी गयी थी
- निंगह्वा,छिंगल्यू,ख्वेइ ह्वा-
कितने तंग रास्ते,घने जंगल और फिसलाती काई !
हम आज कहां बंधे हैं ?
सीधे वूयी पहाड़ियों के नीचे
पहाड़ी पर, पहाड़ी के नीचे
लाल झंडा लहराता है शान से
खुनलुन
( खुनलुन मध्य एशिया की महान पर्वतमाला है)
धरती के ऊपर, बहुत दूर
नीलेपन में
जंगली खुनलुन
तुमने देखा है
वह सब कुछ जो था
सबसे अच्छे होते हैं
तुम्हारे तीस लाख सफेद मरियल परदार सांप
लड़ते
हाड़ कंपाती सर्दी से
आसमान भी जम जाता जब!
गर्मियों में तुम्हारा
पिघलता प्रवाह
नदियों की धाराओं में
लाता सैलाब!!
बदलते हुए इंसान को
मछली और कछुओं में…
किसने यह फैसला किया है
अच्छे और बुरे का
तुम हो बेचैन वहां
हजारों पतझड़ों से
कहता हूं अब मैं खुनलुन से
नहीं तेरी जरूरत
तेरी तमाम ऊंचाई की
तेरी सारी बर्फ़ की
गर अपनी तलवार निकाल उसे
ले जा सकता
आसमान से भी ऊंचा
तो फाड़ देता तुम्हें तीन टुकड़ों में
एक योरूप के लिये
एक अमरीका के लिये
एक रखूंगा पूरब के लिये
फिर रहेगी शांति से धरती
साथ बांटती
वहीं गरमाई और ठंड
सारी धरती पर…
तीन गीत
ऐ पहाड़ों!
खुद के तेज़ गति से चलने वाले घोड़े को
चाबुक से मारता हूं
अपनी जीन से चिपका कर
चौंक कर मैं सिर घुमाता हूं
आसमान है मुझसे
केवल तीन फीट ऊंचा!
**
पहाड़ों!
जैसे विशाल लहराती तरंग
जैसे हजार सांड
सरपट दौड़ते
युद्ध की गर्मी से व्याकुल !!
**
पहाड़ों!
नीले आसमान को फाड़ते
तुम्हारे कांटे
भोथरे नहीं
आसमान गिर जायेगा
ताकत तुम्हारी
का सहारा चाहिए केवल!!!
कविताओं का अनुवाद और आलेख – —– पंकज प्रसून