सरकार में आंकड़ों का तिलिस्म

महेश चन्द्र द्विवेदी

चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य को शासन चलाने में सफलता के लिये ‘आंकड़ों का खेल’ नामक सूत्र बताया था या नहीं पर आज के युग में शासकीय-प्रशासकीय कार्यों में इसका प्रयोग धड़ल्ले से और कमोबेश समस्त देशों में हो रहा है. आंकड़ों की बाजीगरी क्यों और कैसे की जाती है, इसे बता रहे हैं महेश चन्द्र द्विवेदी, जो खुद उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक रह चुके हैं.

हाल में चीन ने कोरोनावायरस से हुई मौतों का आंकड़ा लगभग तीन हज़ार बताया था .डब्लू. एच. ओ. की टीम के वहां पहुंचने वाले दिन यह आंकड़ा चार हज़ार पार कर गया था . चीनी शासन के जानकारों का कहना है कि वास्तविकता इससे तीन-चार गुनी अधिक भी हो सकती है .

जनतांत्रिक देश भी आंकड़ों का खेल खेलने से गुरेज नहीं करते हैं .ब्रिटेन के प्रधान मंत्री सर विंस्टन चर्चिल का आंकड़ों से खेल सम्बन्धित एक किस्सा बहुत मशहूर है .

एक दिन चर्चिल के पास उनका सेक्रेटरी आया. उसके चेहरे पर घोर निराशा का भाव था .वह बोला, “आफ़्टर सिक्स डेज़ दिस स्टार्ड क्वेश्चन हैज़ टु बी आंसर्ड बाइ यू इन दी पार्लियामेंट  बट दि इंफ़ौर्मेशन रिक्वायर्ड विल टेक ऐट लीस्ट सिक्स मंथ्स टु कलेक्ट इट (इस तारांकित प्रश्न का उत्तर आप को छह दिन बाद संसद में देना है .परंतु इसमें मांगे गये आंकड़े की सूचना को इकट्ठा करने में कम से कम छह माह लगेंगे)”.

चर्चिल ने कहा पत्रावली दिखाओ और फिर उसमें वांछित आंकड़े के स्थान पर एक संख्या लिख दी . सेक्रेटरी आश्चर्य से उनकी ओर देखते हुए बोला, “यदि विपक्ष ने इस संख्या को झूठ साबित कर दिया, तो आप की स्थिति बड़ी नाज़ुक हो जायेगी .”

चर्चिल ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया, “डोंट वरी इफ़ हिज़ मैजेस्टी’ज़ गवर्नमेंट विल नीड सिक्स मंथ्स टु कलेक्ट दिस इन्फ़ौर्मेशन, हिज़ मैजेस्टी’ज़ अपोज़ीशन विल टेक ऐट लीस्ट सिक्स इयर्स टु प्रूव दैट इट इज़ फ़ाल्स (चिंता न करें. यदि शासन को यह सूचना एकत्र करने में छह माह लगेंगे, तो विपक्ष को यह साबित करने में कि यह संख्या ग़लत है, कम से कम छः वर्ष लग जायेंगे)”.

हम भारतीयों ने शासन एवं प्रशासन ब्रिटिश से सीखा है और किसी ख़ुराफ़ात को अपना लेने की क्षमता में हम उनसे बहुत आगे हैं . इस कारण आंकड़ों के खेल में हम चर्चिल से कम माहिर नहीं हैं .अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने की बात हो अथवा विकास की योजनाओं को बनाने एवं कार्यान्वन की बात हो, दोनो में हम आंकड़ों का ऐसा मकड़जाल बुन देते हैं कि आंकड़ों का यथार्थ से दूर-दूर का सम्बन्ध न रह जाये.इस क्षेत्र में कतिपय विशेष योग्यता से विभूषित विभागों के कार्यों का वर्णन समीचीन होगा .

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1. पुलिस विभाग
अ. अपराध नियंत्रण

पुलिस की दक्षता का मुख्य मापक अपराधों में कमी होता है .समयाभाव के कारण थाने का निरीक्षण करने वाले अधिकारी को अपराधों में वास्तविक कमी या बढ़ोत्तरी का ज्ञान हो पाना अत्यधिक दुरूह होता है . तो वह वर्तमान वर्ष के अपराध के आंकड़ों की पिछले वर्ष के आंकड़ों से तुलना कर समीक्षा करता है .अतः अधिकतर थानेदारों का ध्यान अपराधों को कम रखने पर उतना नहीं रहता है, जितना अपराध के आंकड़ों को कम रखने पर रहता है .

पुलिस के उच्चाधिकारी एवं शासक तो एफ़. आई. आर. अविलम्ब दर्ज़ किये जाने की बात कहते हैं, परंतु उनमें बहुत से मन ही मन आंकड़ा-नियंत्रण के खेल के पक्षधर होते हैं. आंकड़े कम रहने पर वे प्रेस एवं विपक्ष की आलोचना का डटकर सामना कर लेते हैं .

वास्तविक स्थिति यह है कि बढ़ती आबादी, नये आपराधिक कानून एवं समाज की बदलती सोच के कारण अपराधों का बढ़ना स्वाभाविक है, परंतु बहुत कम शासक साहसपूर्वक यह बात कह पाते हैं .

जनमानस भी इस तथ्य को अंगीकार नहीं करता है.उत्तर प्रदेश पुलिस के वर्ष 1970 के आई. जी. एन. एस. सक्सेना ने घोषित कर दिया था कि उ. प्र. में वर्ष में केवल डेढ़ लाख अपराध ही दर्ज होते हैं जब कि लगभग 4 लाख संज्ञेय अपराध घटित होते हैं.

उन्होंने भरसक प्रयत्न किया कि सभी अपराध पंजीकृत हों . परिणाम यह हुआ कि एक वर्ष में ही आई. जी. बदल दिये गये . इसके विरुद्ध उ. प्र. की एक मुख्यमंत्री ने कार्यभार संभालते ही निर्देश निर्गत कर दिया था कि छह माह में अपराधों में 70 प्रतिशत की कमी हो जानी चाहिये .

मुख्यमंत्री के आदेश का अक्षरशः पालन करने हेतु कुछ चालाक पुलिस अधिकारी रिपोर्ट लिखाने आये लोगों को दूर से ही गरियाने और दौड़ाने लगे.जो नहीं कर पाये, वे मुख्यमंत्री की समीक्षा बैठक के दौरान दंडित हो गये और उनके स्थान पर अधिक कारगुज़ार अधिकारियों की नियुक्ति हो गयी .परिणामतः उन मुख्यमंत्री ने अपराध-नियंत्रण में दक्ष होने की सुख्याति अर्जित कर शान से अपना कार्यकाल पूर्ण किया था .

ब. चुनावी सभा का गणित

मैं वर्ष 1974 में पुलिस अधीक्षक सहारनपुर के पद पर नियुक्त था . एक दिन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की चुनावी सभा आयोजित हुई .सभा के उपरान्त उसमें लगभग 20000 की भीड़ होने की सूचना एल. आई. यू. इंस्पेक्टर द्वारा इंटेलीजेंस मुख्यालय को भेज दी गयी .उस वायरलेस की प्रतिलिपि जब मेरे अवलोकन हेतु प्रस्तुत हुई, तो मेरा गणित का स्कूली शौक जागृत हो गया .

मैने हिसाब लगाया कि प्रधानमंत्री के मंच के सामने के चार सेक्टर्स में अधिकतम एक हज़ार व्यक्ति प्रति सेक्टर के हिसाब से चार हज़ार व्यक्ति और, उसके पीछे के चार सेक्टर्स में अधिकतम डेढ़ हज़ार प्रति सेक्टर के हिसाब से छह हज़ार लोग आ सकते थे .उनके पीछे खड़े हुए लोग और दायें-बांये खड़े पुलिसजन एवं अन्य विभागों के कर्मचारियों को जोड़ते हुए खींचतान कर दो हज़ार लोग और हो सकते थे .

इस प्रकार किसी भी प्रकार 12 हज़ार से अधिक का योग नहीं बनता था .मैने एल. आई. यू. इंस्पेक्टर को बुलाकर कहा कि 10-12 हज़ार की संख्या को 20000 क्यों रिपोर्ट किया गया?

मेरी अपेक्षा कहीं अधिक अनुभवी इंस्पेक्टर ने उत्तर दिया,“सर, मैने तो फिर भी कम संख्या लिख कर भेजी है .अपनी जनप्रियता साबित करने हेतु नेता तो लखनऊ में 30 हज़ार के ऊपर की संख्या बतायेंगे .उ. प्र. शासन भी प्रधानमंत्री के सामने शासन की जनप्रियता की अच्छी छवि प्रस्तुत करने हेतु बढ़ी हुई संख्या ही रखना चाहेगा . 10-12 हज़ार की संख्या पर तो नेता प्रश्नचिन्ह लगा देंगे .उनमें जो आप से नाख़ुश होंगे, वे मुख्यमंत्री को यह भी कह देंगे कि एस. पी., सहारनपुर विपक्षी मानसिकता के हैं.“

अनुभवी इन्स्पेक्टर की बात में मुझे दम लगा।

स. चुनावी परिणाम का अनुमान

वर्ष 1977 में मैं इंटेलीजेंस मुख्यालय, लखनऊ में नियुक्त था. इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी ने संसद का चुनाव होना घोषित कर दिया था. उन दिनो इंटेलीजेंस के मुखिया श्रीष चंद्र दीक्षित, डी. आई. जी. थे . वे अत्यंत समझदार एवं सुलझे हुए अधिकारी थे. उनसे मुख्यमंत्री ने चुनाव परिणाम का पूर्वानुमान पूछा था. अतः डी. आई. जी. साहब ने मुख्यालय में नियुक्त पुलिस अधीक्षकों की मीटिंग बुलायी थी .

प्रदेश के प्रत्येक संसदीय क्षेत्र के कांग्रेसी उम्मीदवार की स्थिति के विषय में सूचना एकत्र कर हम डी. आई. जी. को अवगत करा रहे थे. डी. आई. जी. साहब तदनुसार उनके नाम के आगे V (Victory), L (Lose) अथवा D (Doubtful) लिख देते थे . यदि कहीं पर कांग्रेस की हार में ज़रा भी संदेह होता था, तो डी. आई. जी. साहब उस नाम के सामने V (Victory) लिख देते थे .

सुल्तानपुर के विषय में सूचना थी कि संजय गांधी न सिर्फ़ हारेंगे, वरन् उनकी ज़मानत भी ज़ब्त हो जायेगी हम सब अवाक थे . डी. आई. जी. साहब कुछ देर तक सोचते रहे, पर शीट पर संजय गांधी के नाम के आगे उन्होंने कुछ नहीं लिखा . आगे रायबरेली का नम्बर आया, तो वहां से भी इंदिरा गांधी के पक्का हारने की रिपोर्ट थी .

कुछ देर सोचने के बाद डी. आई. जी. साहब ने इंदिरा गांधी के नाम के आगे V (Victory) लिख दिया और संजय गांधी के नाम के आगे D (Doubtful) लिख दिया .हम आश्चर्य से यह देख रहे थे, तो वह मुस्कराते हुए बोले, “मैं आप सब से सहमत हूं कि फ़ील्ड रिपोर्ट पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं है. पर इन दोनो को हारता हुआ बताकर मैं अनावश्यक बहादुरी नहीं दिखाना चाहता हूं अगर किसी प्रकार कांग्रेस जीत ही गयी तो मैं तो सदैव के लिये कांग्रेस का शत्रु घोषित हो जाऊंगा .”

2. सामान्य प्रशासन विभाग

अ. आंकड़े का चहुंदिश खेल-

हालांकि सभी विभाग आंकड़ों का खेल खेलते हैं परंतु इनके समन्वयक होते हैं सामान्य प्रशासक अर्थात ज़िलाधिकारी, एस. डी. एम., सी. डी. ओ., तहसीलदार आदि . व्यावहारिक रूप में ये विभिन्न विभागों एवं शासन के बीच के बिचौलिये हैं .

हम जानते ही हैं कि बिचौलिये न तो माल के उत्पादक होते हैं और न उपभोक्ता, परंतु माल सबसे अधिक वे ही काटते हैं .शराब, तेल, बंदूक, फ़ैक्ट्री, होटल, मेला, सर्कस, सिनेमा, पत्थर, मौरंग आदि किसी का लाइसेंस देना हो, या बाढ़, सूखा, आग, दुर्घटना, कन्या शिक्षा, निर्धन विवाह, ओल्ड-एज पेंशन आदि किसी प्रकार का अनुदान देना हो अथवा मनरेगा, कौशल-विकास, मध्यान्ह-भोज, शिशु-सुरक्षा आदि किसी प्रकार के विकास की मद का पैसा आवंटित करना हो, गंगा बहेगी कलक्टर रूपी गोमुख से ही .

अब यदि उस गंगा में कलक्टर आफ़िस के कर्मी डुबकी लगाकर अपने हक का पुण्य अर्जित कर लेते हैं, तो आपत्ति की क्या बात है? इस गंगा स्नान का ‘पुण्य’ अनुदान को खर्च करने के आंकड़े के अनुपात में मिलता है .क्या आंकड़ों में खेल करने का यह पर्याप्त कारण नहीं है?

ग्रामीण विकास की अधिकांश योजनायें उन अधिकारियों द्वारा बनायी जाती हैं, जिहोंने पिकनिक के अवसर के अतिरिक्त ग्राम देखे ही नहीं होते हैं .अतः अधिकांश योजनायें कागज़ पर कार्यान्वित होतीं हैं, उदाहरणार्थ- औरैया जनपद के मेरे ग्राम की आंगनबाड़ी प्रभारी प्रति माह वेतन पातीं थीं, परंतु ग्वालियर में ब्याही थीं और वहीं ससुराल में रहती थीं .

एक छोटी सी पोखरी के अतिरिक्त मेरे गांव में ग्राम समाज की कोई ख़ाली ज़मीन ही नहीं है, जहां कोई काम किया जा सके, पर मनरेगा का कार्यक्रम वर्षानुवर्ष चल रहा है और ‘हक’ के अनुसार समस्त भागीदारों का नियमित भुगतान हो रहा है .सरकारी स्कूल में बच्चों को मध्यान्ह भोज बच्चों के आंकड़ों के अनुसार बंट जाता है, चाहे बच्चे आयें या न आयें . योजनायें इतनी हैं कि अधिकतर अधिकारीगण उन सबके नाम भी नहीं गिना सकते हैं .पर इनके कार्यान्वन को सफल दर्शाने हेतु आंकड़ों का खेल करना उन बेचारों की मजबूरी हो जाती है .और जब आंकड़े बनते हैं, तो अनुदान भी ‘खर्च करना’ पड़ता ही है .

ब. मेलों में ‘पुण्यार्जन’

वर्ष 1974 में हरिद्वार में कुम्भ मेला आयोजित था . तब मैं पुलिस अधीक्षक, सहारनपुर नियुक्त था .यद्यपि हरिद्वार उस समय जनपद सहारनपुर का अंग था, तथापि कुम्भ मेला क्षेत्र को अलग जनपद घोषित कर दिया गया था और उसके लिये अलग एक अनुभवी पुलिस अधीक्षक की नियुक्ति की गयी थी.

मेला के उपरांत डी. एम./एस. पी., कुम्भ मेला ने लगभग 12 लाख यात्रियों के आने की सूचना शासन को भेजी थी .उस वायरलेस की प्रतिलिपि जब मुझे प्राप्त हुई, तब मेरे गणित का शौक जाग गया.

मैने हरिद्वार आने वाली समस्त ट्रेनों, बसों, स्पेशल बसों, कारों, स्कूटरों, रिक्शों, बुग्गियों में और पैदल आने वाले यात्रियों का खूब बढ़ा चढ़ा कर योग लगाया, तो भी आंकड़ा किसी प्रकार डेढ़-दो लाख से आगे नहीं बढ़ा .एस. पी, कुम्भ मेला से मुलाकात होने पर मैने अनौपचारिक ढंग से यह विषय छेड़ा, तो अनुभवी एस. पी. बोले,“यह अनुमान केवल मेरा नहीं होता है, समस्त मेला प्रशासन का होता है ,प्रशासन ने 10 लाख यात्रियों की व्यवस्था हेतु बजट स्वीकृत कराया था और पूरे का खर्च दिखाया है. अब दस लाख से कम यात्रियों का अनुमान कैसे दिया जा सकता है? यात्रियों का आंकड़ा अधिक होने पर प्रदेश शासन को प्रशंसा मिलेगी और भविष्य में केंद्र से अधिक अनुदान मांगने का अवसर भी.”

अपने आगे के सेवाकाल में मैने अनुभव किया कि अनुभवी एस. पी. की बात में बड़ा दम था .तभी प्रत्येक आने वाले कुम्भ मेले में यात्रियों की संख्या का आंकड़ा ऐसी लम्बी छलांगें लगाता रहा है जैसी शेर द्वारा पीछा किये जाने पर हिरन छलांग लगाता है .समाचार आया है कि वर्ष 2021 में हरिद्वार में होने वाले कुम्भ मेला के लिये प्रशासन ने 12 करोड़ यात्रियों के आने का अनुमान दिया है .

मैं जानता हूं कि मेले के अंत में प्रशासन का आंकड़ा इसके ऊपर ही जायेगा, जिसकी परिणति इसे मानव इतिहास में विश्व का सबसे बड़ा मेला घोषित होने, शासन की विश्व भर में वाहवाही होने और अनेक व्यक्त्तियों को विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हो जाने में होगी .

पर मैं अपने गणित के पुराने शौक का क्या करूं? वह जागृत हो गया और मैने हिसाब लगाया कि भारत की आबादी लगभग 132 करोड़ है और उसका 1/11 वां भाग होता है 12 करोड़ .इसका अर्थ हुआ कि मेरे 2200 आबादी वाले गांव से औसतन 200 लोग कुम्भ स्नान हेतु जायेंगे .मैने गांव से पता लगाया तो पाया कि पिछले कुम्भ में तो दो जने ही गये थे; मैं अचम्भित हूं कि इस बार एकदम भक्तिभाव में सौ गुना वृद्धि कैसे हो जायेगी, जो 200 चले जायेंगे?

3. वन-विभाग: वृक्षारोपण में महाखेल

वर्षा ऋतु में वृक्षारोपण शासन का वार्षिक कार्यक्रम है और इमरजेंसी में संजय गांधी द्वारा चलाये गये वृक्षारोपण अभियान के पश्चात हर वर्ष बिला नागा प्रत्येक जनपद में लाखों वृक्ष लगाये जाते हैं- कुछ ज़मीन और ज़्यादा काग़ज़ पर . पर दोनो में एक बात समान होती है – वृक्षों को पानी किसी में नहीं दिया जाता है जिससे वृक्ष सूख जाते हैं .

इसका लाभ यह होता है कि पिछले वर्षों में अरबों पेड़ लग जाने के बाद भी पेड़ लगाने हेतु भूमि हर वर्ष यथापूर्व खाली मिल जाती है .वृक्षारोपण कार्यक्रम वन विभाग एवं सामान्य प्रशासन विभाग के लिये हर वर्ष एक उत्सव जैसा रहा है क्योंकि इसमें रोपित दिखाये गये वृक्षों के सीधे अनुपात में सम्बन्धित अधिकारियों पर लक्ष्मी कृपालु होती हैं .

वर्ष 2010 से वृक्षारोपण के आंकड़ों में एक महाखेल और प्रारम्भ हुआ है .उस वर्ष वन विभाग को 5 करोड़ वृक्ष लगाये जाने का टार्गेट दिया गया था . इस हेतु ज़मीन हो न हो और इतने पौधे हों न हों, टार्गेट को पूरा होना था, सो हुआ .उसकी पूर्ति की रिपोर्ट शासन में पहुंचते ही देश-विदेश के समाचार पत्रों में हंगामा मच गया कि उत्तर प्रदेश के वन-विभाग ने एक बरसात में पांच करोड़ वृक्ष लगाकर एक विश्व रिकार्ड कायम किया है .उ. प्र. के अधिकारियों को लंदन में अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल गया .तब से रिकार्ड तोड़ने की होड़ लग गयी है और प्रति वर्ष यह रिकार्ड टूट रहा है . इस वर्ष तो एक दिन में ही 25 करोड़ वृक्ष लग जाने का समाचार मिला है .

मैं आशा कर रहा था कि इस आंकड़े पर तो अंतर्राष्ट्रीय के बजाय कोई अंतर्ग्रहीय पुरस्कार मिलना चाहिये, परंतु तभी मेरा गणित का पुराना शौक जाग गया .उत्तर प्रदेश में कुल 58909 ग्राम पंचायत हैं .सुविधा हेतु इस संख्या को 60000 मान लिया जाये, तो वृक्षारोपण अभियान के दिन प्रत्येक ग्राम पंचायत क्षेत्र में यदि 4000 वृक्ष लगाये गये हों, तो 24 करोड़ वृक्ष ही लग पायेंगे .शेष एक करोड़ छोटे-बड़े नगरों में लगाया जाना मान लेता हूं .

मैने अपने ग्राम एवं अन्य आस-पास के गांवों में लगाये गये वृक्षों के विषय में पूछताछ की, तो किसी गांव में 40 वृक्ष लगाये जाने की बात की भी पुष्टि नहीं हुई.वृक्षारोपण के आंकड़ों का यह महाखेल तो साल-दर-साल चलता है .कभी कोई यह नहीं पूछता है कि गत वर्षों के वृक्ष किस ज़मीन पर लगते रहे हैं और हर वर्ष कहां ज़मीदोज़ हो जाते रहे हैं .

अपने गणित के पुराने शौक के कारण मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि आंकड़ों के खेल में हमारा सानी शायद ही कोई हो .

महेश चंद्र द्विवेदी

(लेखक भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी व रिटायर्ड पुलिस महानिदेशक हैं)

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