जनादेश चर्चा : किसान कोरोना की वजह से गंभीर संकट में
जनादेश की चर्चा : कोरोना, किसान और सरकार : अन्नदाता के संकट का समाधान कैसे होगा
देश भर में पचास करोड़ से ज़्यादा किसान कोरोना की वजह से गंभीर संकट में फंसे हुए हैं। आम शहरी उपभोक्ता को लग रहा है कि सब्ज़ियां और बाकी खाद्यान्न महंगा हो रहा है लेकिन किसान के हिस्से में कुछ नहीं आ रहा है। गन्ने का किसान अलग परेशान है। पशुपालन और डेरी के काम से जुड़े किसानों की अपनी अलग दिक्कत है । दूध की खपत भी कम हो गयी है। सरकार ने दूध के पाउडर के आयात की अनुमति दे दी है। इस मसले पर गुरुवार को जनादेश की चर्चा में किसान की बदहाली और सरकार की नीतियों की गड़बड़ियों पर विस्तार से बातचीत हुई जिसमें महाराष्ट्र, झारखण्ड, मध्य प्रदेश , उत्तर प्रदेश के किसान नेताओं ने अपनी बात रखी। कार्यक्रम का संचालन किया वरिष्ठ पत्रकार और सीएनबीसी आवाज़ के पूर्व प्रबंध संपादक आलोक जोशी ने।
चर्चा की शुरुआत में अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के अध्यक्ष वी एम सिंह ने देश के 250 किसान संगठनों के प्रतिनिधि के तौर पर किसानों की दुर्दशा की तरफ ध्यान दिलाया। उन्होंने कहा कि किसानों को कोरोना संक्रमण से पहले ओलावृष्टि से और बाद में कोरोना के चलते लॉक डाउन के एलान की वजह से दूध, फल , सब्ज़ी उत्पादकों का भारी नुकसान हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से घोषित किये गए २० लाख करोड़ रुपये के केंद्र सरकार के पैकेज में किसानों के लिए इस नुकसान का मुआवज़ा भी शामिल होना चाहिए था लेकिन सरकार ने कुछ नहीं दिया। किसान कोरोना जैसी महामारी से लोहा लेकर घर से बाहर निकले, खेतों में पसीना बहाया, लोगों के लिए अनाज उगाया – गेहूं, चना ,सरसों की फसलें उगाई, लॉक डाउन में अनाज के भंडार भर दिए, लोगों का पेट भरा , लेकिन उसके एवज में सरकार से क्या मिला ? वी एम सिंह का कहना था कि किसानों को तो न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं मिला जिसके वो हकदार थे। सबका पेट भरने वाले किसान आत्महत्या कर रहे हैं और उन के परिवार सरकार की उपेक्षा की वजह से फाके करने पर मजबूर हैं। यह सबके लिए सोचने की बात है।
चर्चा में महाराष्ट्र से जुड़े शेतकरी संघटना के अध्यक्ष और पूर्व सांसद राजू शेट्टी का कहना था कि कोरोना संक्रमण के बाद लॉक डाउन के चलते दूध की खपत कम हो जाने की वजह से महाराष्ट्र के दूध उत्पादकों के लिए रोज़ी-रोटी का गंभीर संकट खड़ा हो गया है। उनका कहना था कि सरकार को दूध उत्पादक किसानों को सब्सिडी देनी चाहिए। मध्य प्रदेश के बैतूल से इस चर्चा में शामिल हुए वहां सक्रिय किसान नेता और पूर्व विधायक डॉक्टर सुनीलम। उन्होंने वी एम सिंह और राजू शेट्टी की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि मध्य प्रदेश मे ढाई लाख से भी ज़्यादा किसानों से सहकारी समितियों में 10 लाख लीटर से भी ज़्यादा दूध रोज़ाना इकट्ठा किया जाता है। दूध उत्पादक रोज़ाना 50 लाख रुपये से ज़्यादा का आर्थिक नुक़सान उठा रहे हैं। मुलताई क्षेत्र में सरकारी दूध डेरियों से 47 हज़ार लीटर और प्राइवेट डेरियों से 25 हज़ार लीटर दूध का उत्पादन रोज़ाना होता है । किसानों से मक्का समर्थन मूल्य पर नहीं ख़रीदा जा रहा है। उनका आरोप था कि ऐसा लगता है कि सरकार खेती को पूरी तरह समाप्त करना चाहती है।
उत्तर प्रदेश के किसानों के हालात के बारे में वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र नाथ भट्ट का कहना था कि उत्तर प्रदेश में ९० फ़ीसदी किसान सीमान्त और लघु किसान है तो सरकार की न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना का उसको कोई बहुत लाभ नहीं मिलता। सरकारी नज़रिये से देखा जाय तो यहाँ कोई समस्या नहीं है क्योंकि यहाँ किसानों को कोई समस्या है, ऐसा सरकार के स्तर पर माना ही नहीं गया है। सरकार का सारा ज़ोर फ़िलहाल प्रवासी मज़दूरों को खपाने पर है। दूध, चीनी की खपत कम हो गयी है। टमाटर की कीमत सौ रुपये प्रति किलो हो गयी है लेकिन उसका लाभ किसानों को नहीं मिला है। गन्ना किसानों को भुगतान भी नहीं हुआ है। दूध के पाउडर के आयात को अनुमति देने से किसानों पर बुरा असर पड़ा है। स्कूल बंद हैं तो मिड डे मील भी बंद है , वहां दूध की सप्लाई भी बंद हो गयी ही, पोल्ट्री उद्योग पर बहुत बुरा असर पड़ा है।
जनादेश के संपादक और वरिष्ठ पत्रकार अम्बरीश कुमार ने उत्तराखंड के किसानों की दिक्कतों पर रोशनी डाली। उन्होंने बताया कि लॉक डाउन की वजह से उत्तराखंड के किसानों की फलों की 80 फीसदी उपज को राज्य से बाहर जाने का मौका ही नहीं मिल पाया है। सरकार की तरफ से कोई मदद मिली हो ऐसा भी नहीं है। फल-सब्ज़ी के उपभोक्ता मध्य वर्ग में किसानों को लेकर गलत धारणा है। अगर टमाटर महंगा हो गया है और सौ – सवा सौ रुपये किलो मिला रहा है तो तो किसान के पास दस मुश्किल से दस रूपया जा रहा है।
झारखण्ड के रांची के नज़दीक माण्डर इलाके के किसान आशुतोष तिवारी ने कहा कि न्यूज़ चैनल हमेशा दिखाते हैं कि सब्ज़ियां महँगी हो गयी है लेकिन हकीकत में किसान को उन बढे हुए दामों का कोई लाभ नहीं मिलता। बिचौलिए मुनाफा कमा लेते हैं। राजू शेट्टी की राय में केरल सरकार को छोड़ कर देश में एक भी ऐसी राज्य सरकार नहीं है जो कोरोना संक्रमण से पैदा हुए हालात में किसानों की मदद के लिए कोई ठोस काम कर रही हो । ‘
आलोक जोशी ने इस बातचीत को खत्म किया नीलाभ अश्क की इन लाइनों से- रोज़ कुछ न कुछ हो रहा है लेकिन कोई है उस ऊपर वाले मरे में जो लगातार लगातार सो रहा है सोने के लिए कुम्भकर्ण विख्यात है पर वो भी इस आदमी के आगे मात है ज़ाहिर है , वो आदमी कोई एक आदमी नहीं है।
जनादेश में जनमानस से सरोकार रखने वाले मुद्दों को उठाया जाता है,
समसामयिक घटनाओं पर बेबाक राय रखने का धन्यवाद 🙏🙏