भारत का संविधान : ‘लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव’ पर ऐतिहासिक बहस
लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव का ऐतिहासिक महत्व
भारत के संविधान के निर्माण की प्रक्रिया केवल एक कानूनी मसौदा तैयार करने का कार्य नहीं था, बल्कि यह विविध राजनीतिक विचारों, सामाजिक चिंताओं और राष्ट्रीय आकांक्षाओं की समन्वित अभिव्यक्ति थी। ‘लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव’ पर चली ऐतिहासिक बहसें इसी समावेशी चिंतन का प्रमाण हैं। इस लेख में उन विचारों, बहसों और मतभेदों का क्रमवार विवरण है जो भारतीय गणराज्य के मूल स्वरूप को आकार दे रहे थे।
भारत का संविधान कैसे बना, लेखमाला की शृंखला में आज प्रस्तुत है पंडित वहार लाल नेहरू द्वारा पेश लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव पर बहस। यह चर्चा “लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव” पर 13 से 17 दिसंबर 1946 के बीच चली बहस की अगली कड़ी है, जिसमें 18 दिसंबर को भी विभिन्न सदस्यों ने विचार व्यक्त किए।
सभापति: डॉ राजेन्द्र प्रसाद
“लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव” पर बहस (जारी)
रेवरेंडजे. जे. एम. निकोलसराय:
उन्होंने पंडित नेहरू द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव का पूरा समर्थन किया। आशा प्रकट की कि मुस्लिम लीग के प्रतिनिधि शीघ्र सभा में शामिल होंगे। उन्होंने पैराग्राफ़ 5 का उल्लेख करते हुए कहा कि किसी भी जाति को यह भय नहीं होना चाहिए कि विधान परिषद उनके हितों की रक्षा नहीं करेगी।
श्रीआर. के. सिधवा:
उनका मत था कि मुस्लिम लीग की प्रतीक्षा करने की बजाय संविधान सभा को अपने कार्य में आगे बढ़ना चाहिए।
श्रीविश्वनाथदास (उड़ीसा):
उन्होंने प्रस्ताव के चार भाग बताए:
1. उस लक्ष्य का उल्लेख जिसके लिए स्वतंत्रता संग्राम लड़ा गया।
2. स्वतंत्र भारतीय गणराज्य के अधिकार-क्षेत्र — जल, थल और आकाश।
3. शक्ति और अधिकार जनता से प्राप्त होते हैं।
4. कबाइली और अन्य क्षेत्रों के लिए व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लेख।
उन्होंने डॉ. जयकर के संशोधन का विरोध किया और डॉ. आंबेडकर के विचारों का भी हवाला दिया।
श्रीहृदयनाथकुंजरू:
उन्होंने सुझाव दिया कि निर्णय में कुछ विलंब से उन समूहों को विचार का अवसर मिलेगा जिनका प्रस्ताव में उल्लेख है।
दीवानबहादुरसरएन. गोपालस्वामीआयंगर (मद्रास):
उन्होंने प्रस्ताव का समर्थन किया। उनके वक्तव्य का केंद्र बिंदु था — डॉ. जयकर का संशोधन, मुस्लिम लीग और रियासतों की भागीदारी।
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सोमवार, 16 दिसम्बर सन् 1946 ई.
“लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव”
सभापति (डॉ राजेन्द्र प्रसाद): जो प्रस्ताव 13 दिसम्बर को प्रस्तुत किया गया था, उस पर हम अब आगे बहस शुरू करते हैं- प्राप्त संशोधनों की संख्या लंबी है । अब मैं डॉ जयकर से कहूँगा कि वे अपना संशोधन पेश करें।
डॉ एम आर जयकर (बंबई): मैं चंद शब्द उस सुन्दर वक्तृता की प्रशंसा में कहना चाहता हूँ जो प्रस्ताव उपस्थित करते हुए पं जवाहरलाल नेहरु ने दी है उसकी स्पष्टता, विनयशीलता और उसका गांभीर्य सभी प्रभावोत्पादक थे। पंडित जवाहरलाल नेहरु इस महती सभा के पथ-प्रदर्शक एवं प्राण हैं।
संशोधन उपस्थिति करने में मेरा वास्तविक उद्देश्य है इस परिषद को नाकाम होने से बचाना।
सभापति महोदय, मैं दो बातों की ओर आपका ध्यान खींचना चाहता हूँ …..विधान-परिषद की प्रारंभिक बैठक में इस स्थल पर विधान के बुनियादी प्रश्नों पर विचार नहीं किया जा सकता। …..मेरा कहना है कि कैबिनेट मिशन के 16 मई के वक्तव्य….के मुताबिक़ यह बैठक कानूनन विधान संबंधी सिद्धांतों की रूपरेखा भी निश्चित नहीं कर सकती।
( डॉ जयकर का कहना था कि मुस्लिम लीग तथा देशी रियासतों के शामिल हो जाने के बाद “लक्ष संबंधी महत्वपूर्ण प्रस्ताव” सबों की उपस्थिति में लेना चाहिए और इसके लिए वे “कैबिनेट मिशन” के वक्तव्यों का आधार लेते रहे। सबों की भागीदारी से उनका तात्पर्य था मुस्लिम लीग तथा देशी रियासतों की भागीदारी इसलिए इनकी भागीदारी शुरू होने तक इस महत्वपूर्ण प्रस्ताव को स्थगित रखना चाहिए । डॉ जयकर का यह भी कहना था कि देशी रियासतों की भागीदारी तब तक नहीं होगी जबतक उनके साथ हमारा निगोशिएसन पूरा न हो जाए। इस पर श्री किरण शंकर राय, डॉ बी पट्टाभि सीतारामैया आपत्ति प्रकट करते हुए सभापति से जानना चाहा कि डॉ जयकर संशोधन रख रहे हैं या नियम संबंधी आपत्ति प्रकट कर रहे हैं। इस पर हुई चर्चा में निम्न सदस्यों ने भाग लिया;
श्री मोहनलाल सक्सेना, श्री के संतानम, श्री एन वी गाडगिल, श्री आर के सिधवा, श्री सरदार वल्लभभाई पटेल, डॉ सुरेन्द्रनाथ बनर्जी,पंडित गोबिंदहवल्लभ पंत, डॉ सर हरिसिंह गौड़, दीवान चमनलाल, श्री सोमनाथ लाहिरी, राय बहादुर श्यामनंदन सहाय,
उपरोक्त वक्ताओं की डॉ जयकर की आपत्ति से असहमति थी। उन सबको लगा कि डॉ जयकर नाहक ही आपत्ति प्रकट कर रहे हैं तथा संविधान बनाने के इस महान कार्य को भागीदारी के बहाने और रोका नहीं जा सकता है।
प्रो एन जी रंगा का सुझाव था कि यदि एक ही व्यक्ति के एक से अधिक संशोधन हैं तो उसे एक साथ लेना चाहिए।
कई और संशोधन रखे गए तथा कई माननीय सदस्यों ने अपने संशोधन को वापस लिया ।
पंडित जवाहरलाल नेहरु के “लक्ष संबंधी “ प्रस्ताव के समर्थन में श्री कृष्ण सिन्हा का भाषण हुआ।
मंगलवार, 17 दिसम्बर सन् 1946 ई.
श्रीमति विजयालक्ष्मी पंडित ने अपना परिचय-पत्र पेश कर रजिस्टर पर हस्ताक्षर किए।
सभापति (डॉ राजेन्द्र प्रसाद): श्रीमति पंडित अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में बहुत बड़ी सफलता पाकर स्वदेश लौटी हैं । मैं हृदय से उनका स्वागत करता हूँ। (हर्ष ध्वनि)
“लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव”
( 13 दिसंबर 1946 को पंडित जवाहरलाल नेहरु ने संविधान के “लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव” पेश किया था। उसका समर्थन श्री पुरुषोत्तमदास टंडन ने किया था। 16 दिसंबर 1946 के दिन प्रस्ताव पर संशोधनों को लेकर चर्चा हुई जो आज तीसरे दिन जारी रही)
सभापति: अब हम प्रस्ताव और संशोधनों पर बहस-मुबाहिसा जारी करते हैं । मेरे पास उन सदस्यों की एक बड़ी सूची है जो बोलना चाहते हैं और उसमें 50 से ज्यादा नाम हैं। 10 मिनट का समय हर वक्ता के लिए काफी समझा जा सकता है।
श्री एम आर मसानी (बंबई) ने चर्चा को आरंभ करते हुए कहा कि” मैं किसी संप्रदाय का सदस्य होने के नाते नहीं बोल रहा हूँ, बल्कि केवल एक भारतीय की हैसियत से बोल रहा हूँ। …इस समय मैं इतना ही कहूँगा कि राष्ट्र या जाति की कल्पना में किसी ऐसे अल्पमत की गुंजाइश नहीं है जो सदा अल्पमत ही बना रहे। श्री मसानी की मुख्य बातें;
* प्रस्ताव को समाजवादी की दृष्टि से देखता हूँ।
* प्रजातंत्र न केवल राजनैतिक दायरे तक ही सीमित रहना चाहिए वरन इसका प्रसार आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में भी होना चाहिए अन्यथा समाजवाद व्यर्थ है।
* अगर आज हमारी मौजूदा राष्ट्रीय आय बराबर बराबर तीन भागों में बाटी जाये तो एक तिहाई यहां की 5 प्रतिशत आबादी को मिलती है, दूसरी तिहाई 33 प्रतिशत को और बाक़ी शेष 62 प्रतिशत आबादी पायेगी। अवश्य ही यह सामाजिक और आर्थिक न्याय नहीं है।
* प्रस्ताव में यह भी व्यवस्था है कि सबको समान अवसर प्राप्त हो सके। सबको शिक्षा की और प्रतिभा विकास की समान सुविधा प्राप्त होगी।
* इस प्रस्ताव में समाजवाद की व्यवस्था नहीं रखी गई है। यह करना भूल होगी। इस सभा को बड़े बड़े आर्थिक परिवर्तन करने का आदेश नहीं प्राप्त है।
* मैं नहीं समझता कि “रिपब्लिक गणतंत्र शब्द “ का समावेश काफी है। …हम प्रजातंत्र चाहते हैं।
* अधिकार और शक्ति साधारण जनता में बांट दिए जायें, राजनैतिक और आर्थिक अधिकार इतने विस्तृत पैमाने पर बांट दिए जायें कि कोई व्यक्ति या वर्ग दूसरों का शोषण न कर सके, उन पर हावी न हो सके।
* श्री मसानी ने अपने भाषण में महात्मा गांधी तथा श्री जयप्रकाश नारायण के उद्धरण रखे।
* इस तरह मेरी कल्पना के अनुसार समाजवादी भारत एक आर्थिक एवं राजनैतिक प्रजातंत्र होगा । उस प्रजातंत्र में मनुष्य न तो पूंजी का ग़ुलाम होगा और न दल या राज्य का ही। वह पूर्ण स्वतंत्र होगा।
श्री एफ आर एंथनी ( बंगाल): इन्होंने डॉ जयकर के संशोधन का समर्थन किया।
डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी (बंगाल) : इन्होंने पंडित नेहरु के मूल प्रस्ताव को समर्थन किया और डॉ जयकर के संशोधन का नहीं किया। उनका मानना था कि “प्रस्ताव निजी महत्व रखता है। हम यहां इस विशाल देश के निवासियों के प्रतिनिधि की हैसियत से हैं।”
अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के संबंध में बोलते हुए डॉ मुखर्जी ने कहा कि “मैं बंगाल के दुर्दशाग्रस्त प्रांत से आया हूँ और इस सभा को याद दिलाना चाहता हूँ कि भारत में कम से कम चार प्रांतों में हिन्दू अल्पसंख्या में है…. तो सभी अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा होनी चाहिये।
डॉ. बी आर आंबेडकर (बंगाल) : ने निम्न बातें रखी
* प्रस्ताव के दो हिस्से किये जा सकते हैं । एक हिस्सा ऐसा है जिस पर विवाद नहीं है और दूसरा विवादास्पद है।
* प्रस्ताव का 5वां और 7वां पैरा पर कोई विवाद नहीं है।इन पैरों में देश के भावी विधान के लक्ष्यों पर प्रकाश डाला गया है।
* प्रस्ताव के इस भाग में अधिकारों की चर्चा है पर उनकी सुरक्षा का कोई उपचार नहीं दिया गया है।
* प्रस्ताव में उल्लेखित मौलिक अधिकारों को भी कानून और सदाचार के अधीन रख दिया गया है। ..हम निश्चय रूप से यह नहीं जानते कि इन मौलिक अधिकारों की स्थिति क्या होगी अगर ये शासन प्रबंध की मर्जी पर छोड़ दिए जाते हैं?
* मेरी समझ में नहीं आता कि जब तक देश की अर्थ-नीति समाजवादी नहीं होती किसी भी भावी हुकूमत के लिए यह कैसे संभव होगा कि वह सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय प्रदान कर सके।
* फिर भी प्रस्ताव मेरे लिए निराशाप्रद है।
* प्रथम चार पैरा जो विवादास्पद हो गया है। सारा विवाद “रिपब्लिक “ शब्द पर केंद्रित है। पैराग्राफ़ चार के इस वाक्य पर “सारी शक्ति, सारे अधिकार जनता से प्राप्त होंगे ,“ सारा विवाद है।
* आज हम राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक सभी दृष्टियों से विभक्त हैं। आज हमारा देश कई लड़ाकू दलों में बँट गया है। ऐसे ही एक लड़ाकू दल के नेताओं में शायद मैं भी एक हूँ। ..मुझे पक्का विश्वास है कि समय और परिस्थिति अनुकूल होने पर दुनिया की कोई भी ताक़त इस मुल्क को एक होने से रोक नहीं सकती। (हर्ष ध्वनि)
* यह कहने में मुझे रंच-मात्र भी संकोच नहीं है कि यद्यपि मुस्लिम लीग आज भारत के विभाजन के लिए भयानक आंदोलन कर रही है पर एक-न- एक दिन स्वयं मुसलमानों में बुद्धि आयेगी और वे समझने लगेंगे कि उनके लिए भी संयुक्त भारत ही कल्याणकर है । (तुमुल-ध्वनि)।
* डॉ आंबेडकर ने पैरा 3 पर सभा का ध्यान आकृष्ट किया जो देश में दो भिन्न राज्य पद्धति के बारे में है, एक संघ तथा दूसरा राज्यों का। इस बारे में विस्तार से अपनी आशंका प्रकट करते हुए कहा कि “मैं एक दृढ़ और संयुक्त-केन्द्र चाहता हूँ, उससे भी ज्यादा केंद्र जो सन् 1935 के एक्ट के मुताबिक़ बना है “।
* “लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव “ को जल्दीबाज़ी में पारित किए जाने पर आगे सवाल करते हुए उन्होंने कहा कि “क्या इस प्रस्ताव को पास करना आपके लिए बुद्धिमानी और नीतिज्ञता की बात होगी?”
इसके बाद निम्न सदस्यों ने आज की चर्चा में भाग लिया;
सरदार उज्जवल सिंह: प्रस्ताव का समर्थन ।
सेठ गोविन्ददास: प्रस्ताव का समर्थन।
बुधवार, 18 दिसम्बर सन् 1946 ई.
सभापति: श्री मोहनलाल सक्सेना यह जानना चाहते हैं “रूल्स कमिटी” ने कितनी प्रगति की है। क्रिसमस की छुट्टियों का भी ज़िक्र आया है । श्री एम अनंतशयनम आयंगर क्रिसमस के समय हफ़्ताभर की छुट्टी चाहते थे। सभापति की चिंता थी प्रस्तुत प्रस्ताव तथा रूल्स कमिटी के रिपोर्ट पर काम वर्ष समाप्त होने से पूर्व करना चाहिए क्योंकि जनवरी में कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम है- विशेषकर अंतरराष्ट्रीय विज्ञान सम्मेलन का आयोजन तथा इसमें पंडित जवाहरलाल नेहरु की महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख किया।
इस बारे में हुई चर्चा में निम्न सदस्यों ने भाग लिया;
श्री हृदयनाथ कुंजरू, श्री धीरेन्द्रनाथ दत्त, रेवरेंड जे जे एम निकोलस राय, श्री डी पी खेतान, श्री मोहनलाल सक्सेना, श्री आर के सिधवा, श्री पुरुषोत्तम दास टंडन, श्री के संतानम,
सरदार वल्लभभाई पटेल ने सभापति को संबोधित करते हुए कहा कि इस सभा में 300 महत्वपूर्ण मेंबर हैं, सभी की सुविधा से काम करना कठिन है। वे नियम बनाने का काम तथा लक्ष्य प्रस्ताव के आलोक में क्रिसमस के लिए भी छुट्टी के पक्ष में नहीं थे।
सभापति ने सदन को आश्वस्त किया कि कल इस पर निर्णय संभव हो सकेगा और प्रस्ताव और संशोधनों पर विचार करने का आह्वान किया ।
“लक्ष्य संबंधी” प्रस्ताव – (13+16+17 दिसंबर से आगे)
रेवरेंड जे जे एम निकोलस राय: मैं पंडित नेहरु द्वारा पेश किए हुए प्रस्ताव का पूरे बल से समर्थन करने के लिए खड़ा हुआ हूँ। उन्होंने आशा प्रकट की मुस्लिम लीग के प्रतिनिधि शीघ्र सभा में शामिल होंगे। उन्होंने पैराग्राफ़ 5 का उल्लेख करते हुए कहा कि किसी जाति को इसका भय न होना चाहिये कि यह विधान-परिषद उनके हितों की रक्षा नहीं करेगी।
श्री आर के सिधवा: इस मत के थे कि मुस्लिम लीग की प्रतीक्षा करते रहने के बजाय हमें अपना काम पूरा करना चाहिए।
श्री विश्वनाथ दास (उड़ीसा): पंडित जवाहरलाल ने जिस प्रस्ताव को पेश किया है वह चार भागों में विभाजित है;
1) उस लक्ष्य का उल्लेख है जिसके लिए हम लड़ते रहे हैं;
2) दूसरे भाग में स्वतंत्र भारतीय रिपब्लिक के जल, थल, और आकाश में अधिकार-क्षेत्र का उल्लेख है,
3) हमारी शक्ति, अधिकार लोगों से प्राप्त हैं,
4) क़बाइली और दूसरे क्षेत्रों के संबंध में व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लेख है।
उन्होंने डॉ जयकर के संशोधन से असहमति प्रकट की। श्री दास ने अपने वक्तव्य में डॉ आंबेडकर की कुछ बातों का भी हवाला दिया।
श्री हृदयनाथ कुंजरू: इनका मानना था कि पंडित नेहरु के प्रस्ताव पर निर्णय कुछ विलंब करने से उन समूहों, पक्षों को विचार करने का समय मिल जाएगा जिनका खास उल्लेख इसमें है।
दीवान बहादुर सर एन गोपालस्वामी आयंगर (मद्रास): मैं इस प्रस्ताव का समर्थन करने के लिए आग बढ़ा हूँ।
दीवान आयंगर का भी भाषण डॉ जयकर के संशोधन, प्रस्ताव का समर्थन, लीग और रियासतों की भागीदारी पर केंद्रित था।
सभापति: सवा एक बज चुका है तथा सभा कल सुबह 11 बजे तक के लिए स्थगित
प्रस्तुति : कुमार कलानंद मणि
kumarkalanandmani@gmail.com
स्रोत: संविधान सभा में वाद-विवाद की सरकारी रिपोर्ट