नदी पुनर्जीवित करने के लिए केवल एक संसद नहीं, हर नदी की अलग संसद बनाने की है जरूरत

जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने कहा कि, हम सब जानते हैं कि, गंगा नदी दुनिया की दूसरी नदियों से अलग विशिष्टताओं वाली नदी है। गंगा जल विशिष्ट है। यह सिद्ध करने वाले आधुनिक भारत में सैकड़ों शोध हो चुके हैं, जो गंगा की विशिष्टता सिद्ध करते हैं। जैसे कानपुर से 20 किलोमीटर ऊपर बिठूर से लिये गंगाजल में कॉलिफोर्म नष्ट करने की विलक्षण शक्ति मौजूद है, जो कानपुर के जल आपूर्ति कुएं में आधी रह जाती है, और यहां के भूजल में यह शक्ति शून्य हो जाती है।

🌱 विरासत स्वराज यात्रा 2021-22 🌱

जलपुरुष राजेन्द्र सिंह़

सर्वसम्मति से स्वामी शिवानंद सरस्वती को गंगा संसद का अध्यक्ष बनाया गया।

स्थान – मातृसदन आश्रम कनखल हरिद्वार, उत्तराखंड

आज दिनांक 24 दिसम्बर 2021 को विरासत स्वराज यात्रा मातृसदन, हरिद्वार में दूसरे दिन के गंगा चिंतन-मंथन शिविर में रूकी। शिविर के पहले सत्र में सम्मिलित सभी गंगा प्रमियों ने अपने-अपने विचार रखे। यहाँ उपस्थित रिटायर्ड फौजियों ने गंगा संकट पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि, जहां सैनिक पूरे देश की रक्षा करता है, अपना जीवन बॉर्डर पर गुजारता है और जब वह यहां आता है तो इस समाज की स्थिति देखकर बड़ा दुख होता है कि, किस तरीके से हमारी प्रकृति का सर्वनाश किया जा रहा है।

इसी क्रम में जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने कहा कि, हम सब जानते हैं कि, गंगा नदी दुनिया की दूसरी नदियों से अलग विशिष्टताओं वाली नदी है। गंगा जल विशिष्ट है। यह सिद्ध करने वाले आधुनिक भारत में सैकड़ों शोध हो चुके हैं, जो गंगा की विशिष्टता सिद्ध करते हैं। जैसे कानपुर से 20 किलोमीटर ऊपर बिठूर से लिये गंगाजल में कॉलिफोर्म नष्ट करने की विलक्षण शक्ति मौजूद है, जो कानपुर के जल आपूर्ति कुएं में आधी रह जाती है, और यहां के भूजल में यह शक्ति शून्य हो जाती है। यह गंगा जल में मौजूद सूक्ष्मकणों (बायोफ़ाज्म) के कारण हैं।

हरिद्वार के गंगा जल में बीओडी को नष्ट करने की अत्याधिक क्षमता है। इसका क्षय करने वाले तत्वों का सामान्य जल से 16 गुना अधिक है। यह संभव है हिमालय की वनस्पति से आये अंशो के कारण। भागीरथी की जल में धातुओ के एक विशिष्ठ मिश्रण से शक्ति का पता चला है। ऐसा मिश्रण संसार में अभी तक कहीं न पाया गया है। जो अब टिहरी बांध से ऊपर गंगा जल में विशेष तत्त्वों की नाशक क्षमता थी, वह सब गाद के साथ पीछे बैठ गए और बाँध के नीचे आने वाले जल में कोलीफॉर्म नाशक या सड़न नाशक क्षमता शून्य रह गयी है।

अभी 2017 में गंगा के डीएनए विश्लेषण से ऊपर की गंगा गाद में बीसों रोगों के रोगाणुओ को नष्ट करने की सक्षम शक्ति है।

खनन माफियाओं और गंगा प्रेमियों की बहस के बाद गंगा में हो रहे खनन को रोका गया
विरासत स्वराज यात्रा मातृसदन आश्रम कनखल, हरिद्वार, उत्तराखंड पहुंची। यहां गंगा के संकट समाधान हेतु चिंतन-मंथन गोष्ठी आयोजित हुई। इस गोष्टी में देश भर से गंगा प्रेमी, नदी प्रेमी, जल बिरादरी के कार्यकर्ता और देशभर से सामाजिक कार्यकर्ता एकत्रित हुए।

इसमें 18 रोगाणु की प्रजातियां जिनमे टीबी, हैजा,पेट की बहुत सी बीमारियां और टाइफाइड शामिल है। लेकिन आज मां गंगा जी को बांधो से बांध दिया गया। गंगा जी पर अतिक्रमण, शोषण, प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। हम सभी को इस खनन माफियों को रोकना ही होगा।
इसके उपरांत सभी ने सर्वसम्मति से कहा कि, गंगा की रक्षा के लिए पूर्व में जो गंगा संसद का निर्माण किया गया था, उसमें संशोधन करना होगा, क्योंकि जो इस गंगा संसद के अध्यक्ष थे, उन्होंने अपनी असमर्थता जताते हुए इस पद से मुक्त करने का जो आग्रह किया था। सभी गंगा प्रेमियों ने उसको ध्यान में रखते हुए आज गंगा संसद का गठन किया गया। जिसमें जलपुरुष जी ने 2 सदस्यीय चुनाव कमेटी का गठन किया। जिसमें हरियाणा से श्री विर्क जी और उत्तर प्रदेश के बागपत जिले से संजय राणा जी को चुनाव कमेटी के मेंबर नियुक्त किया।

अगले सत्र में यात्रा गंगा के किनारे गंगा संसद के अध्यक्ष चुनाव पर बात करते हुए सुशीला भंडारी जी ने कहा कि, गंगा के लिए निस्वार्थ भाव से जो पूर्णतया समर्पित हैं, पिछले 25 वर्षों से जिन्होंने गंगा को माई तो माना है लेकिन उसकी साथ ही उसको माई की तरह भी पूजा है, गंगा से कमाई नहीं की, किसी भी प्रकार की कोई कमाई नहीं कि, इसमें सर्वोच्च नाम स्वामी शिवानंद सरस्वती जी का होना चाहिए। इस प्रस्ताव का सभी ने सर्वसम्मति से स्वामी श्री शिवानंद सरस्वती जी को गंगा संसद का अध्यक्ष चुना गया। इसके बाद जिसके बाद नई कोर कमेटी के सदस्य हेतु जिन्होंने गंगा के लिए कार्य किया है, उसमें साफ स्वच्छ छवि और समर्पित लोगों को किया जाएगा।

अंत में जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने कहा कि, नदियों को शुद्ध-सदानीर बनाने का काम भारत का समाज करता आया है और अब फिर करेगा। नदी पुनर्जीवित करने के लिए केवल एक संसद नहीं बल्कि सब नदियों की अलग-अलग संसद बनाने की जरूरत है। यदि संसद बनाने का काम हमने बहुत पहले हजारों साल पहले कुंभ के दौरान हजारों-हजार साल पहले कुंभ के दौरान होता था। कुंभ में जहर और अमृत को अलग करने का जो अभ्यास है, वह वैचारिक चिंतन मंथन करके समाज के लिए अच्छे और बुरे को अलग अलग करने वाले निर्णायक को पंच परमेश्वर मानकर, यह जो व्यवस्था थी।

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आज यह व्यवस्था मर गई है, सरकार की संसद का ध्यान नदियों की तरफ नहीं है। आज का समाज लालच और लोभ में अपनी मां को भूल गया है और कुछ संत नदियों की प्रति लापरवाह हो गए है। आज जो अच्छे संत समाज में है, उन जो अच्छे लोगों संत समाज में है और जो राज में जो अच्छे लोग है, उनको आगे आना होगा। आगे आकर अपनी मां नदियों को शुद्ध सदानीरा बनाने के लिए काम करना होगा।

वर्तमान में नदियों पर पर संकट है अतिक्रमण प्रदूषण और खनन से जल से शोषण हो रहा है, दुनिया की नदियां मर रहे हैं। भारत की नदियां तो नाले बन गए हैं, आधे से ज्यादा मर गई है या सूखती जा रही है। इसलिए अभी नदियों को पुनर्जीवित व नदियों को पहले जैसी बनाने के लिए राज, समाज और संत सबको मिलकर काम करना होगा। सबको जोड़कर नदियों की रक्षा करने में लगना होगा क्योंकि आज के लालची विकास, कमर्शियल वक्ताओं ने सरकार की नगर पालिका और पंचायतों ने नदियों को मैला ढोने वाली मालगाड़ी बना दिया या नदियों में जो भी कुछ मिल जाता है, उसका शोषण करके निकाल कर विकास अपने लालच की पूर्ति में उपयोग करने लगते हैं। नदियों को नदियों की तरह नहीं देखते, भारत के लोग नदियों को कहते तो मां है, पर उनको मैला ढोने वाली मालगाड़ी या उनका शोषण करने वाली वैश्या की तरह उपयोग करते हैं। नदिया हमारी कहने को मां है नहीं, वह हमारी वास्तविक मां है। हमें नदियों के शोषण, अतिक्रमण और प्रदूषण से बचाने के लिए भारत की नदियों को एक संसद की जरूरत है।

अंत में निर्णय लिया गया कि, आज जो खनन माफियों का पत्र आया है कि, कल खनन करेंगे। उनको खनन से रोकने के लिए, एक दिन और बढ़ाते हुए कल तक सभी लोग ही रुकेंगे और उनकी चुनौति को स्वीकार करते हुए उनका डट के सामना करने के लिए सभी लोग यहीं रहेंगे

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