फ़िल्म “मैंने गांधी को क्यों मारा” की रिलीज पर रोक लगाने की मांग

अब वे गांधी नहीं, उनके विचारों को मारने की कोशिश में लगे हैं

महात्मा गांधी की हत्या करने के बाद भी उनकी आत्मा तृप्त नहीं हुई है. होती भी कैसे? गांधी की हत्या के बाद भी गांधी सबके दिलों में जिंदा रहेंगे, ये बात उन्हें तब मालूम न थी, जब बार बार उन्होंने गांधी की हत्या की योजना बनायी और उसे अंजाम देने की कोशिश की. गांधीजी को मारने के बाद भी उनके सिद्धांतों को मारने में अब तक उन्हें पूरी तरह से कामयाबी नहीं मिल पायी है. यही वजह है कि अब वे गांधी नहीं, उनके विचारों को मारने की कोशिश में लगे हैं. फिल्म ‘मैंने गांधी को क्यों मारा?’, इसी क्रम में उनकी अगली कोशिश कही जा सकती है. यही वजह है कि कई सामाजिक संगठन लगातार इस फिल्म की रिलीज रोकने को लेकर लगातार सरकार से अपील कर रहे हैं. शुक्रवार को भी कई संगठनों ने इस बाबत कार्यक्रमों का आयोजन किया और संयुक्त रूप से फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने के लिये सरकार से अपील भी की.

मीडिया स्वराज डेस्क

लखनऊ में शुक्रवार 28 जनवरी 2022 को भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) की राष्ट्रीय समिति ने 30 जनवरी को ऑनलाइन प्लेटफार्म पर रिलीज होने वाली फिल्म “मैंने गांधी को क्यों मारा” पर प्रतिबंध लगाने की मांग करते हुए कहा है कि यह फ़िल्म गांधी के हत्यारे गोडसे को महिमामंडित करने और गांधी की हत्या का औचित्य सिद्ध करने के बहाने हत्या और घृणा को उचित ठहराने का एक और कुत्सित प्रयास है.

इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रनबीर सिंह एवं महासचिव, राकेश ने एक वक्तव्य में कहा है कि महात्मा गांधी को मानने वाले निश्चय ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्षधर हैं लेकिन हत्यारों को महिमामंडित करने की स्वतंत्रता हमारा संविधान किसी को नहीं देता. स्पष्ट है कि नाथूराम गोडसे एक हत्यारा ही नहीं था, अपितु द्वेष, असहिष्णुता और देश की सामाजिक समरसता को छिन्न-भिन्न करने वाले विचार का प्रतिनिधि भी था. यह दुर्भाग्य की बात है कि आज इस विचार को मानने वाले लोगों को सत्ता का संरक्षण मिल रहा है. इप्टा की राष्ट्रीय समिति अपनी इकाइयों एवं सभी लेखक, कलाकारों एवं सामाजिक संगठनों से अपील करती है कि अपने स्तर पर गांधी की शहादत वाले दिन यानी 30 जनवरी को प्रेम और भाईचारे का संदेश देने वाले कार्यक्रम आयोजित करें तथा इप्टा एवं अन्य लेखक, कलाकार संगठनों के संयुक्त अभियान में सक्रिय हिस्सेदारी करें.

इप्टा की राष्ट्रीय समिति अपनी इकाइयों एवं सभी लेखक, कलाकारों एवं सामाजिक संगठनों से अपील करती है कि अपने स्तर पर गांधी की शहादत वाले दिन यानी 30 जनवरी को प्रेम और भाईचारे का संदेश देने वाले कार्यक्रम आयोजित करें तथा इप्टा एवं अन्य लेखक, कलाकार संगठनों के संयुक्त अभियान में सक्रिय हिस्सेदारी करें.

इप्टा के अध्यक्ष और सचिव ने यह भी कहा कि आगामी 9 अप्रैल से 18 मई 2022 तक छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश में होने वाली “ढाई आखर प्रेम का” सांस्कृतिक यात्रा को सफल बनाने में जुटें.


मलकानगिरी जिला के तारलाकोटा इलाके में हिंदुस्तान कार्यक्रम

नेताजी जयंती से गांधी बलिदान दिवस तक, गांधी और सांप्रदायिक विरोधी ताकत के खिलाफ राष्ट्रीय अभियान राष्ट्रपिता का अपमान नहीं सहेगा. हिंदुस्तान कार्यक्रम ओडिशा के मलकानगिरी जिला के तारलाकोटा इलाके में किया गया.

इस राष्ट्रीय अभियान का मलकानगिरी जिला आदिवासी संघ ने समर्थन किया. साथ ही, प्रचार पत्र बांटा और प्रतिवाद सभा का आयोजन भी किया गया.
#गांधीकीआवाज_सुनो

कई संगठनों ने एक साथ मिलकर फिल्म ‘मैंने गांधी को क्यों मारा’ पर रोक लगाने की मांग की

1.राष्ट्रीय युवा संगठन, वर्धा ( महाराष्ट्र)
2.राम किशोर ,सोशलिस्ट फाउंडेशन
3.वीरेंद्र कुमार त्रिपाठी , एडवोकेट ,पीपुल्स यूनिटी फोरम
4.कुलदीप सक्सेना, सम्पादक ,’विवेक शक्ति ‘ पत्रिका
5.मुकुल कुमार पाण्डेय , भारतीय मतदाता मंच , गोरखपुर
6.राम धीरज , अध्यक्ष,उ.प्र.सर्वोदय मंडल
7.विमल कुमार , कवि-साहित्यकार,नई दिल्ली
8.राजेन्द्र मिश्र, महासचिव,उ.प्र. सर्वोदय मंडल
9.ओमप्रकाश’अरुण’, उपाध्यक्ष,उ.प्र.सर्वोदय मंडल
10.देव कबीर , संस्थापक,’जय भीम जय समाज’ संगठन , कानपुर
11.मंदाकिनी, सिटीजन्स फार डेमोक्रेसी , लखनऊ
12.अभिषेक कुमार , लखनऊ
13.जय प्रकाश , पीपुल्स यूनिटी फोरम, लखनऊ
14.शाहिद क़माल, राष्ट्र सेवा दल, बिहार
15.डॉ संतोष छापर, गांधी स्टडी सर्कल , जोधपुर
16.जी.के.चक्रवर्ती , वाराणसी
17.मिथलेश दूबे ,वारणासी
18.पूनम, जनमुक्ति संघर्ष वाहिनी, गुरूग्राम
19.गोपाल गोयल, मुक्ति चक्र, बांदा
20.अमरेन्द्र, आल इंडिया प्रेस एडीटर्स एसोसिएशन
21.सौरभ सिंह, सर्वोदय मंडल, वाराणसी
22.अमित मिश्रा, नेता जी सुभाष चन्द्र बोस फाउंडेशन, लखनऊ
23.सेराज ख़ान बातिश, स्वतंत्र लेखक, कलकत्ता
24.रनबीर सिंह, राष्ट्रीय अध्यक्ष, इप्टा
25.राकेश , राष्ट्रीय महासचिव, इप्टा
26.कला कौशल, बेगूसराय (बिहार)
27.सत्यपाल ,लाजपत भवन, नईदिल्ली
28.विजय चितौरी, पत्रकार, प्रयागराज
29.प्रताप दीक्षित,स्वतंत्र लेखक-साहित्यकार , लखनऊ
30.अशोक भारत, युवा संवाद अभियान
31.आनन्द कुमार, सोसाइटी फार कम्युनल हारमोनी
32.हिम्मत सेठ,सम्पादक, महावीर समता सन्देश, उदयपुर
33.अशोक चौधरी , संयोजक, गांधी स्टडी सर्कल
34.शैलेन्द्र श्रीवास्तव,स्वतंत्र लेखक-साहित्यकार , लखनऊ
35.अनिल सिन्हा, पत्रकार, पूना
36.अजय शर्मा, सिटीजन्स फार डेमोक्रेसी, लखनऊ
37.ओ.पी.सिन्हा, महासचिव, आल इंडिया वर्कर्स कौंसिल
38.डी.के.वर्मा,शहीद स्मारक शोध केंद्र , लखनऊ
39.हफीज़ किदवई, संयोजक,खुदाई खिदमतगार,उ.प्र., लखनऊ
40.रवि उपाध्याय, नेता जी सुभाष चन्द्र बोस फाउंडेशन, लखनऊ

नेताजी जयंती से गांधी बलिदान दिवस तक, गांधी और सांप्रदायिक विरोधी ताकत के खिलाफ राष्ट्रीय अभियान राष्ट्रपिता का अपमान नहीं सहेगा. हिंदुस्तान कार्यक्रम ओडिशा के मलकानगिरी जिला के तारलाकोटा इलाके में किया गया.

इन सभी संगठनों ने मिलकर यह फिल्म पर रोक लगाने की मांग की है. अपने संयुक्त बयान में इन संगठनों ने कहा कि यह चुप रहने का वक्त नहीं है!

बता दें कि खबर है कि 30 जनवरी 2022 को, महात्मा गांधी की शहादत के दिन “मैंने गांधी को क्यों मारा” नाम की फिल्म ऑनलाइन रिलीज की जा रही है. जब सारा देश व दुनिया इस शोक व प्रायश्चित भाव से भरी होगी होगी कि आज के ही दिन गांधी की हत्या हुई थी, एक फिल्म दिखाने की योजना है कि जो इस हत्या का औचित्य बताएगी. यह सोच ही कितनी विकृत है कि किसी की हत्या का औचित्य बताया जाए; और वह भी गांधी जैसे व्यक्ति की हत्या का जिसे ईसा व बुद्ध के समकक्ष हम ही नहीं, सारा संसार मानता है.

महात्मा गांधी की हत्या के उतने ही वर्ष हो रहे हैं जितने वर्ष हमारी आजादी के हो रहे हैं. इतने वर्ष पहले जो आदमी मारा गया, उसके हत्या का औचित्य प्रमाणित करने की आज जरूरत क्यों आ पड़ी है? इसलिए कि जिन लोगों ने, जिस विचारधारा से प्रेरित हो कर गांधी को मारा वे खूब जानते हैं कि उनकी तीन गोलियों से वह आदमी मरा नहीं. वे हैरान व परेशान हैं कि इस आदमी को मार सके, ऐसी गोली बनी ही नहीं क्या? कोई ऐसी कब्र खोदी क्यों नहीं जा सकी, जो उनके विचारों को दफ़ना सके? जवाब मिलता नहीं है और यह आदमी मरता नहीं है. इसलिए हत्यारों को उनकी हत्या का औचित्य बार-बार प्रमाणित व प्रचारित करने की जरूरत पड़ती है और अब यह ज्यादा आसान हो गया है क्योंकि व्यवस्था व सरकार भी उस हत्यारी विचारधारा के साथ है.

हमारा संविधान राज्य को आदेश देता है कि हत्यारों को पकड़ो, उन्हें कानूनसम्मत सजा दो! वही संविधान यह भी कहता है कि हत्या की साजिश भी अपराध है और हत्या का समारोह भी अपराध है. तो हत्या करना और फिर उस हत्या का औचित्य साबित करना संवैधानिक कैसे हो सकता है?

हम जो महात्मा गांधी के विचारों को मानते हैं, यह भी मानते हैं कि अभिव्यक्ति की स्वतत्रंता सबको समान रूप से मिलनी चाहिए. हमारे देश में सबके लिए सम्मान व अधिकार का जीवन सुनिश्चित होना चाहिए, इसी टेक के कारण तो गांधी की हत्या हुई थी. तो हम मानते हैं कि हत्यारों को भी अपनी बात कहने का वैसा ही अधिकार होना चाहिए जैसा हमें है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हामी हर व्यक्ति को ऐसी परीक्षा से कभी-न-कभी गुजरना होता ही है. लेकिन एक सवाल बचा रह जाता है कि क्या किसी को, किसी की हत्या का अधिकार भी है? हमारा संविधान कहता है : नहीं, यह अधिकार किसी को, किसी भी स्थिति में नहीं है. हमारा संविधान राज्य को आदेश देता है कि हत्यारों को पकड़ो, उन्हें कानूनसम्मत सजा दो! वही संविधान यह भी कहता है कि हत्या की साजिश भी अपराध है और हत्या का समारोह भी अपराध है. तो हत्या करना और फिर उस हत्या का औचित्य साबित करना संवैधानिक कैसे हो सकता है? जवाब आज की व्यवस्था को और राज्य को देना है. देश देख रहा है कि व्यवस्था व सरकार हत्यारों के साथ खड़ी है या संविधान के साथ खड़ी है?

हम हत्यारों की इस कोशिश का प्रतिवाद करते हैं, इसकी भर्त्सना करते हैं और देश को सावधान करते हैं कि लोकतंत्र की आड़ लेकर, यह लोकतंत्र को ही खत्म करने की चाल है. हम अपने इस प्रतिवाद के जरिये समाज व सरकार के अंतरमन को छूने की कोशिश कर रहे हैं. क्या हम इतने कृतघ्न हैं कि अपने राष्ट्रपिता के हत्यारों को मनमानी करने की ऐसी छूट दें कि वे राष्ट्रपिता के बाद, राष्ट्र के संविधान की भी हत्या कर दें?

इसे भी पढ़ें:

गांधी जी की हत्या निरंतर क्यों जारी है

हम सभी जानते हैं कि नाथूराम गोडसे और हिंदुत्व का उनका पूरा संगठन झूठ और अफवाहों की ताकत से ही चलता था, और चलता है। अब कौन नहीं जानता है कि नाथूराम द्वारा गांधी पर चलाई गोली भी और अदालत में दिया उनका तथाकथित बयान भी उनका अपना नहीं था ! नाथूराम को सामने रख कर सारा खेल पर्दे के पीछे से सावरकर व हिंदू महासभा खेल रही थी। अब वैसा ही खेल सत्ता की आड़ में खेला जा रहा है। हम जोर दे कर कहना चाहते हैं कि गलत इरादे से लिखी गई किसी भी किताब या फ़िल्म या गीत या नाटक या बयान या भाषण की अनुमति किसी को नहीं होनी चाहिए और हमें इन सबको नकारना चाहिए। जनता से हमारी अपील है कि वह इन काली ताकतों के बहकावे में न आएँ और सरकारों से सवाल पूछना जारी रखें। यह चुप बैठने का वक्त नहीं है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.

20 + one =

Related Articles

Back to top button