मिशन बारामती : उद्धव से निपटने के बाद बीजेपी का अगला खेल
‘मिशन’ के आगाज से प्रदेश की राजनीति में एक नया जलजला
कल्याण कुमार सिन्हा
महाराष्ट्र की सत्ता पर शिवसेना के एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी पिछले दो महीने में प्रभावी राजनीतिक वर्चस्व स्थापित कर चुकी है. एक मिशन की तरह ही पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को उनके 16 विधायकों के साथ उसने हाशिए पर धकेल दिया है. इसके साथ ही शिवसेना की कमान पूरी तरह शिंदे गुट के हाथों में सौंपने की तैयारी भी हो चुकी है. राजनीतिक शतरंज की बिसात पर बीजेपी की चाल पर चाल से ठाकरे गुट पस्त है.
अब, बारी- राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) की
और अब, इसके बाद बारी आ रही है- राजनीति के सब से बड़े धुरंधर शरद पवार की पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) की. शरद पवार की ही तरह उनकी NCP प्रदेश में बड़ी राजनीतिक ताकत है. लेकिन महाराष्ट्र प्रदेश बीजेपी के नए अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने उनके गढ़ पर ही हल्ला बोल दिया है. प्रदेश के अपने दौरे के क्रम में रविवार को पुणे पहुंचे बावनकुले ने NCP सुप्रीमो को खुली चुनौती दे डाली है. सीधा और सपाट इशारा- “बचा सको तो बचा लो अपना गढ़, अगले चुनाव में लोकसभा और विधानसभा की दोनों सीटें बारामती से हम ले जाएंगे.”
बावनकुले प्रदेश अध्यक्ष बनाने के बाद दो महीने के प्रदेश दौरे पर हैं. उनके ‘मिशन बारामती’ ने प्रदेश की राजनीति में एक नया जलजला पैदा कर दिया है. बारामती का NCP अभेद्य दुर्ग रहा है. पवार घराने के साम्राज्य में खुलेआम सेंध लगाने के ऐलान से NCP खेमा उद्वेलित हो चुका है, मगर हतप्रभ है. वहीं बीजेपी और शिंदे गुट के शिवसेना के रग-रग में नए जोश और उत्साह का संचार होने लगा है.
बारामती का आशय पूरे प्रदेश से
पवार के इस अभेद्य दुर्ग के बारे में इससे पहले किसी ने ऐसी हिमाकत करने का साहस किया भी तो उसे मुंह की ही खानी पड़ी है. लेकिन इस बार की चुनौती भारी है. बीजेपी का इस मिशन का नाम ‘मिशन बारामती’ भले हो, लेकिन यहां बारामती का आशय पूरे प्रदेश से है, तो मिशन बारामती मतलब- पूरे प्रदेश से NCP का सफाया.
शरद पवार 1967 से 2009 तक बारामती प्रतिनिधित्व करते रहे. 2009 से उनकी पुत्री सुप्रिया सुले उनकी उत्तराधिकारी के रूप में बारामती की लोकसभा सदस्य हैं. उसी तरह उनके भतीजे अजित पवार भी NCP से 1995 से लगातार बारामती विधानसभा चुनाव क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं. पवार चुनावी राजनीति से भले ही संन्यास ले चुके हों, लेकिन पुणे जिले के इस बारामती क्षेत्र ही नहीं, पुणे सहित प्रदेश के सभी जिलों में उनका दबदबा कायम रहा है. 2019 के लोकसभा चुनाव में सुप्रिया सुले के विरुद्ध बीजेपी जोर लगा चुकी है. अब एक बार फिर नए सिरे से इस दुर्ग को भेदने की तैयारी कर रही है.
किसी का गढ़, किसी का वर्चस्व हमेशा नहीं रहता
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष ने अपनी पार्टी का प्रहार इन शब्दों में व्यक्त किया है- “देश में कई किले नष्ट कर दिए गए हैं. जब संगठन मजबूत होता है तो लड़ने की ताकत आती है. जब वह शक्ति आती है तो कई अच्छे किले नष्ट हो जाते हैं, यह देश का इतिहास है. इसलिए किसी का गढ़, किसी का वर्चस्व हमेशा नहीं रहता. यह समय के साथ बदलता है. हमने इस हद तक अपनी ताकत बढ़ाने का फैसला किया है और शिवसेना-बीजेपी पर अच्छा प्रदर्शन करने और इस सीट को जीतने के लिए भरोसा करते हैं.”
हिन्दू कार्ड भी खेल गए
इसके साथ ही बावनकुले हिन्दू कार्ड भी खेल गए. उन्होंने उम्मीद जताई कि “जनता विश्वासघातियों को दरकिनार करेगी और उन लोगों की मदद करेगी जो हिंदू धर्म के सच्चे रक्षक हैं.” उन्होंने दावा किया कि एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में हम शिवसेना और बीजेपी गठबंधन के माध्यम से सभी स्थानीय निकायों के चुनावों के साथ आगामी लोकसभा चुनाव में 45 और विधानसभा चुनाव में भी 200 से अधिक सीटें जीतेंगे.”
निर्मला सीतारमण पूर्णकालिक प्रभार में
अगले लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव जीतने के संकल्प की गंभीरता का संकेत भी देने से बावनकुले नहीं चूके. पार्टी की रणनीति की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि “केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण पूर्णकालिक प्रभार में हैं. अगले 18 महीनों में निर्मला सीतारमण 5 से 6 बार बारामती जाएंगी, हर बार तीन दिन रुकेंगी.” वे का आकलन करेंगी कि यहां विकास की क्या स्थिति है, विकास के संबंध में केंद्र से क्या उम्मीद है, राज्य सरकार के माध्यम से क्या किया जा सकता है, इस पर विचार किया जाएगा.
ऐसी लड़ाई, जो पहले नहीं देखी गई
इससे पहले बावनकुले ने आरोप लगाया था कि पिछली सरकार ने ढाई साल में कई योजनाओं को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने में बाधा डाली थी. “पिछले ढाई वर्षों के दौरान, पिछली सरकार ने अक्सर अंतिम व्यक्ति को योजना के वितरण में बाधा डाली. इसकी समीक्षा की जाएगी. इन योजनाओं पर अमल होता है या नहीं, इस पर भी चर्चा होगी. 21 कार्यक्रम होंगे. इस लोकसभा क्षेत्र का विश्लेषण किया जाएगा.”, बावनकुले ने कहा, “हम यहां एक अच्छा उम्मीदवार प्रदान करेंगे और ऐसी लड़ाई लड़ी जाएगी, जो पहले नहीं देखी गई, यह 2024 में होगी.”
बीजेपी की इस चुनौती का असर निश्चय ही सम्पूर्ण प्रदेश में नजर आने वाला है. राज्य की दूसरी बड़ी राजनीतिक ताकत को दी गई इस चुनौती का ज़ुबानी जवाब तो NCP की ओर से आना ही है. लेकिन बीजेपी के “मिशन बारामती” का मुकाबला शरद पवार और उनकी पार्टी कैसे करेगी, यह देखना दिलचस्प रहेगा.
कांग्रेस के मनोबल पर भी असर
प्रदेश में कांग्रेस का जनाधार सीमित हो गया है. पिछली महा विकास आघाड़ी सरकार की घटक रही कांग्रेस में असंतोष ने उसे और भी कमजोर किया है. कई प्रमुख नेता पहले ही पार्टी छोड़ बीजेपी का दामन थाम चुके हैं. पिछले दिनों पार्टी के प्रमुख नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण से मिलाकात कर उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने कांग्रेस को दहला दिया है. इससे पार्टी के मनोबल पर प्रतिकूल असर पड़ा है. पार्टी में टूट की आशंका से नेता-कार्यकर्ता भ्रम की स्थिति में हैं.