शिक्षा दर्शन पर लखनऊ विश्वविद्यालय में व्याख्यान
“आजादी के अमृत महोत्सव” के तत्वावधान में दर्शनशास्त्र विभाग में शोध विद्यार्थियों के नेतृत्व में “शिक्षा-दर्शन” एवं “विवेकानंद के दर्शन” पर शिक्षाशास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर उमेशचंद्र वशिष्ठ व प्रोफेसर नूपुर सेन के विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन किया।
प्रोफेसर उमेशचंद्र वशिष्ठ ने “औपचारिक शिक्षा की सीमाओं पर प्रकाश डालते हुए दर्शन के महत्व को स्थापित किया और बताया कि आज के बाजारवादी समाज में दर्शन का महत्व और अधिक बढ़ गया है; वह दर्शन ही है, जो समाज को चेतन व जागृत नेतृत्व प्रदान कर सकता है। इसके माध्यम से ही समाज को आलोचनात्मक व निष्पक्ष दिशा दी जा सकती है। प्रोफेसर वशिष्ठ ने शिक्षादर्शन के तकनीकी पक्ष पर भी अपने विचार रखे। दर्शन व शिक्षा के अंतर्संबंध पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने बताया कि सबसे महत्वपूर्ण है “चिंतन” जो समग्रता से विचार करने के लिए हमे निरंतर प्रेरित करता है।
प्रोफेसर नूपुर सेन ने विवेकानंद के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। विवेकानंद एक दार्शनिक के अतिरिक्त एक अद्भुत गायक एवं संगीतज्ञ भी थे। राजाओं और सन्यासियों दोनों द्वारा स्वीकृत नरेंद्रनाथ दत्त कैसे विवेकानंद बने इसके रोचक प्रसंग एवं विवेकानंद के वेदांती विचारों पर – प्रोफेसर सेन ने प्रकाश डाला। परिव्राजाक की वेशभूषा में श्रीमदभागवदगीता को लेकर यह युवा दार्शनिक हमारी सभ्यता का संदेश पश्चिम तक ले गया । हम सब की आत्मा अमृतपुत्र हैं नर-नारी, रोगी, विद्यार्थी सभी में नारायण का वास हैं। यही कारण है कि सभी वेदांती विभिन्न संप्रदायों की एकता को स्वीकार किया। विवेकानंद ने सार्वभौमिक धर्म की चर्चा की। आज भी विवेकानंद की प्रेरणा से अनेक विदेशी आध्यात्म पर बल देते हैं। विवेकानंद तत्वमीमांसा के स्थान पर सेवाभाव को वरीयता देते हैं व मानव-निर्माण की वैज्ञानिक शिक्षा के समर्थक थे ! उनका दर्शन “सर्वसमावेशी” रहा है।
उपरोक्त कार्यक्रम मे दर्शनशास्त्र विभाग के अध्यक्ष व अकादमिक डीन प्रो. राकेश चंद्रा व डॉ. प्रशांत शुक्ल भी उपस्थित रहे !