नफरत के निशाने पर महापुरुषों के विचार
22 अप्रैल 2021 : लेनिन जयंती पर विशेष
भारत में हालात कमोबेश वैसे ही हैं जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कभी वामपंथियों के गढ़ रहे त्रिपुरा में 2018 के चुनाव उपरांत सत्ता में दाखिल होने के 24 घंटे के भीतर हुआ था. उसके कुछ बरस पहले तक त्रिपुरा में भाजपा का एक भी विद्यायक नहीं था.
यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है कि 10 बरस पहले तक वामपंथियों के तीन दशक से अधिक गढ़ रहे पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव के दो मई 2021 को घोषित होने वाले परिणाम के बाद भाजपा अगर इस राज्य की सत्ता में पहली बार दाखिल हो गई तो उसके अतिरेक उत्साह में फासीवादियों का क्या नंगा नाच हो सकता है. वैसे ही हालात दक्षिण भारत में द्रविड़ आंदोलन के केंद्र रहे तमिलनाडु और पुडुचेरी तथा वामपंथियो के गढ़ रहे केरल में भी नए चुनाव के परिणाम निकलने पर भाजपा के सत्ता में आने पर उभर सकते हैं. तमिलनाडु में अभी भाजपा की अपनी सरकार नहीं है पर वह राज्य सरकार चला रहे अन्ना द्रमुक के एक गुट के साथ गठबन्धन कर नया चुनाव लड़ रही है. पूर्वोत्तर के असम में भाजपा के नेतृत्व में सांझा सरकार है पर नए चुनाव के बाद यदि भाजपा की अपने दम पर सरकार बन जाती है तो वहां भी फासीवादियों का नंगा नाच शुरु होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है.
इन हालात में 11 मार्च 2018 को लिखा एक आलेख अब और भी प्रासंगिक हो सकता है. वो लेख निम्नवत है.
दुनिया भर में हुक्मरानी ,अवाम को जटिल जीवन के वास्तविक और मूल मुद्दों से भटकाने के लिए हमेशा से गैर -मुद्दों को खड़ा करने की ताक में लगी रही हैै.भारत में नया क्या हुआ ? नया यही है कि 1917 में जारशाही के विरुद्ध रूसी बोल्शेविक क्रांति के जनक , लेनिन की मूर्ति भारत में पहली बार तोड़ दी गई.
त्रिपुरा की सत्ता में दाखिल होने के 24 घंटे के ही भीतर सत्ता-मद में चूर प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी( भाजपा) के कार्यकर्ताओं ने अगरतला से 110 किलोमीटर दूर बेलोनिआ में कॉलेज चौराहा पर लेनिन की फाइबर ग्लास से बनी पांच फुट की मूर्ति तोड़ दी .
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) *परिवार* ने इसे जायज कहा , बयान दिए , ट्वीट किये , जश्न मनाया , कुतर्क पर कुतर्क गढ़ लेनिन को विदेेेशी कहा , आतताई शासक बताया , ‘ लाखों लोगों का हत्यारा ‘ कहा , यहाँ तक कहा कि भारत में लेनिन के सारे चिन्ह बहुत पहले खत्म कर देने चाहिए थे.
खुशी में ट्वीट करने वालों में खुद त्रिपुरा के राज्यपाल एवं आरएसएस के पूर्व प्रचारक , तथागत रॉय और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव एवं पार्टी के पूर्वोत्तर प्रभारी (आरएसएस के पूर्व प्रवक्ता )राम माधव शामिल है.
प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने खुल कर कुछ नहीं कहा.ना ही आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कुछ ख़ास कहा. हालांकि वे पहले अपने श्रीमुख से फरमा चुके हैं कि कम्यूनिस्ट उनके दुश्मन नंबर वन है.
भारत में फासीवादियों के निशाने पर सिर्फ कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी ही नहीं बल्कि सभी अल्पसंख़्यक , मुसलमान , ईसाई , पिछड़ा वर्ग , दलित , बुद्धिजीवी , प्रगतिशील लेखक , कवि , कलाकर्मी , फिल्मकार , लेखक , पत्रकार , चिंतक , उनके स्टेचू, उनकी लिखी किताबें ,उनकी पेंटिंग , उनका संगीत , उनका नृत्य , उनके सद्विचार , उनके सत्य , सब कुछ रही है.
उनकी ही तरह के फासीवादियों ने अफगानिस्तान में और अन्यत्र भी बौद्ध प्रतिष्ठानों पर हमले किए. उन्होने भारत भर में कबीर के समर्थकों पर हिंसक हमले किए कराये.
क्यों उनके निशाने पर हैं ये सब ?
जाहिर बात है उनके पास सत्य नहीं है.लेकिन सत्ता है.वे धन बल पर *असत्य के प्रयोग *कर सिद्ध कर सकते हैं यह सत्यातीत युग है.
वे हिन्दुस्तान की आजादी के आंदोलन में भी अंग्रेजो की मुखबरी करते थे.क्रांतिकारियों के खिलाफ गवाही देते थे. अब उनका ही राज है.उन्हें कोई रोक नहीं सकता. कोई टोक नहीं सकता.वे अपने ‘ अनुशासित ‘ स्वयंसेवकों की 40 लाख की *पैदल वाहिनी *तैयार कर भारतीय सेना से भी ज्यादा चुस्त -दुरुस्त होने का दावा ठोंक देते है.
ठीक है कि अफगानिस्तान के बामियाँ की पहाड़ी में बुद्ध के अप्रतिम स्टेचुओं को तोड़ना, हिटलर द्वारा किताबों को जलवना स्वदेशी नहीं है. लेकिन महात्मा गांधी से लेकर तर्कवादी गोविंद पनसारे और नरेन्द्र दाभोलकर , शिक्षाविद एस एम कलबुर्गी, महिला पत्रकार गौरी लंकेश, दलित छात्र रोहित वेमुला, मुसलमान नागरिक अखलाक , जेएनयू के छात्र जुनैद की हत्या और नजीब का अपहरण स्वदेशी ही मामले तो हैं ना ?
वे युवती * निर्भया* के हत्यारे की जेल में हुई मौत को मुद्दा बना लेते हैं , क़ानून को ताक पर रख उसके शव की अंत्येष्टी नितांत गैर कानूनी रूप से राष्ट्रीय तिरंगा में लपेट कर करते हैं!
वे *पीएनबी घोटाला * के वास्तविक मसले से अवाम का ध्यान भटकाने के लिए अपनी सत्ता के बल पर और चाटुकार मीडिया की सांठगांठ से प्रतिभा-संपन्न फिल्म अभिनेत्री श्रीदेवी की विदेश में असामयिक मौत से लेकर उनकी अंत्येष्टि राजकीय सम्मान के साथ राष्ट्रीय ध्वज में लपेट करने का लंबा तमाशा खड़ा कर देते है. फिर दूसरे गैर – मुद्दे को उभारने में लग जाते हैं।
चेन्नई से खबर मिली त्रिपुरा में लेनिन की प्रतिमा गिराए जाने के बाद बीजेपी कार्यकर्ताओं ने तमिलनाडु़ में तर्कवादी नेता , ई.वी.रामासामी ‘‘ पेरियार’’ की एक प्रतिमा को क्षतिग्रस्त कर दिया. यह घटना बीजेपी नेताओं की धमकी के बाद हुई कि त्रिपुरा में लेनिन की प्रतिमा के बाद अब पेरियार की मूर्ति का नंबर है.
ये वही पेरियार हैं जिन्होंने भारत के मूलनिवासियों के आंदोलन को धार दी , ब्राह्मणवाद पर नकेल कसी और वो ” सच्ची रामायण ” लिखी जो आरएसएस को फूटी आँख नहीं सुहाती.
घटना तमिलनाडु के वेल्लूर जिले में तिरुपत्तूर की है ज़हां द्रविड़ आंदोलन की नींव डालने वाले पेरियार की प्रतिमा क्षतिग्रस्त कर दी गई. मूर्ति के सिर वाले हिस्से को चोट पहुंचाई गई. पुलिस ने दो लोगों को मौके से गिरफ्तार कर कहा नशेड़ियों ने मूर्ति तोड़ने का प्रयास किया.
राज्य में पेरियार की 27 प्रतिमाएं हैं जिनकी सुरक्षा बढ़ा दी गई है। वाम दलों , द्रमुक और अन्नाद्रमुक ने इसे बीजेपी की नफरत की राजनीति कहा. अभिनेता – नेता , कमल हासन ने तंज़ में ट्वीट किया ” सारी मूर्तियों को हटा दो, कोई विरोध नहीं करेगा “.
तमिलनाडु के भाजपा नेता एच.राजा ने लेनिन के बाद पेरियार की मूर्ति ढहाने की बात फेसबुक पर ऐलानिया स्वीकार कर लिखा :
लेनिन कौन है? भारत से उनका क्या रिश्ता है? क्या रिश्ता है वामपंथियों का भारत से ? त्रिपुरा में लेनिन की प्रतिमा को ध्वस्त कर दिया गया. आज लेनिन की प्रतिमा, कल तमिलनाडु के ईवीआर रामास्वामी की प्रतिमा को ध्वस्त कर दिया जाएगा .
वामपंथियों के गढ़ माने जाने वाले जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में आरएसएस समर्थक शोधार्थी छात्रों के एक समूह में बहस होने लगी. उन्होने कुतर्क गढ़े और कहा :क्या लेनिन की मूर्ति को पहले ही नहीं ढहा देना था. वे असत्य के प्रयोग कर कहते चले गए 1.लेनिन शासक के रूप में त्याज्य और घृणास्पद था.
2.उन देशों में ही लेनिन की मूर्ति स्थापित हुई जहाँ कम्युनिस्टों का शासन रहा.
3.किन्तु अब उन देशों ने लेनिन की मूर्तियाँ तोड़ दीं हैं जहाँ कभी बड़े उत्साह और सम्मान से ये मूर्तियाँ स्थापित हुई थीं.
4.इसका कारण लेनिन की तानाशाही और अत्याचारी शासन- व्यवस्था थी जिसमें रलोगों का दम घुटता था. जहाँ मानवाधिकार की बात तो दूर सामान्य मानवता भी नहीं थी.
5.इतिहास लेनिन को ऐसे हत्यारे के रूप में जानता है जिसने मनुष्य , लोकतंत्र और मानवीय मूल्यों की हत्या की.
6 लेनिन ने बड़े पैमाने पर नरसंहार किया. करीब 40 लाख लोगों की हत्या करवाई.
7.लेनिन की मूर्ति सारे अपराध, हत्याएँ और बलात्कार को जायज ठहराने का प्रतीक बन गयी थी. इसलिए लेनिनग्राद और बरमिंघम से ही नहीं पूरी दुनिया से लेनिन की मूर्तियाँ ढहाई गयीं.
8. लेनिन की रूस में लगभग 9000 , यूक्रेन में 1300 , कजाकिस्तान में 700 मूर्तियाँ तोड़ी गयीं.
9.लेनिन की मूर्तियों को बहुत पहले तोडा जाना चाहिए था.
10. लेनिन जैसा आदर्श न होता तो केरल ,बंगाल और त्रिपुरा में वामपंथी इस कदर हत्याएँ न करते.
11. कहा जाता है कि मार्क्सवाद मूर्तियाँ नहीं गढ़ता , लेकिन उसने लेनिन जैसे हत्यारे की प्राण प्रतिष्ठा की है.
12.लेनिन की टूटी मूर्तियाँ उन हृदयों के लिए मरहम का काम करेगी जिनके परिजन लेनिन के अनुयायियों की नृशंस हत्या के शिकार हुए.
13. लेनिन की मूर्तियाँ जनता तोड़ रही है.शोक नहीं उत्सव मनाइये कामरेड ! मूर्ति तो प्रतीक भर है ‘.
एक छात्र ने समूह की बहस की खबर पूर्व छात्र पत्रकार सीपी को दी. सी पी ने सभी छात्रों के लिए मैसेज भेजा: जाकी मतिभ्रम भई खगेसा ताकहँ पच्छिम उयेव दिनेसा संघ गिरोह की स्थायी पहचान झूठइ लेना झूठइ देनाझूठइ भोजन झूठ चबेना
असगर वजाहत ***प्रसिद्ध नाट्यकार एवं लेखक असगर वजाहत ने रोचक मूर्ति संवाद लिखा जिसके कई निहितार्थ है:
1.लेनिन की मूर्ति तोड़ तो दी गई .लेकिन फिर सवाल पैदा हुआ कि उसे कहां फेंका जाए. काफी बहस होती रही. हील-हुज्जत होती रही। जब कुछ तय न पा सका तो लेनिन की टूटी हुई मूर्ति ने कहा, मुझे वहीं फेंक दो जहां हज़ारों साल से टूटी हुई मूर्तियां फेंकी जाती रही हैं।
2. लेनिन की मूर्ति तोड़ तो दी गई लेकिन फिर बहस होने लगी मूर्ति किसने तोड़ी है। सब लोग अपना-अपना दावा पेश करने लगे। किसी ने कहा, मैंने तोड़ी है। किसी ने कहा, मैंने तोड़ी है। बड़ी बहस शुरू हो गई जो लात-जूते में बदल गई। क्योंकि लेनिन की मूर्ति तोड़ने वाले का शानदार ‘कैरियर’ सामने था। जब यह तय न हो पाया कि लेनिन की मूर्ति किसने तोड़ी है तो लेनिन की टूटी हुई मूर्ति ने कहा, तुम लोगों ने नहीं, मेरे लोगों ही ने मेरी मूर्ति तोड़ी है।
3. लेनिन की मूर्ति जब तोड़ी जा रही थी तो मूर्ति के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। कुछ देर बाद मूर्ति हंसने लगी। तोड़ने वालों को बड़ी हैरानी हुई। उन्होंने पूछा, आप क्यों हंस रहे हैं? आपको तो तोड़ा जा रहा है। मूर्ति ने कहा, तुम लोग मेरी पसंद का काम कर रहे हो। तोड़ने वालों ने कहा, कैसे? लेनिन बोले, मैं जीवन भर यही करता रहा हूं.
4. लेनिन की मूर्ति ने अपने तोड़ने वालों से सवाल किया। मूर्ति ने कहा, तुम लोग किसकी मूर्ति तोड़ रहे हो? लोगों ने कहा, लेनिन की । मूर्ति ने कहा, मेरा पूरा नाम क्या है जानते हो? तोड़ने वालों ने कहा, अरे हमें अपने-अपने नाम नहीं मालूम, आपका नाम क्या जानेंगे।
5. लेनिन की टूटी हुई मूर्ति ने तोड़ने वालों से पूछा तुम लोग सिर्फ तोड़ते हो या कुछ जोड़ भी सकते हो ? उन लोगों ने कहा, जोड़ने का काम हमारा नहीं है । मूर्ति ने पूछा, जोड़ने वाले कहां हैं? तोड़ने वालों ने जवाब दिया, वे उधर बैठे हैं। क्यों उधर क्यों बैठे हैं? मूर्ति ने पूछा तोड़ने वालों ने कहा, हमने इतना तोड़ दिया है कि अब उनकी समझ में नहीं आ रहा कि क्या-क्या जोड़ें।
6. मूर्ति ने तोड़ने वालों से पूछा, तुम मूर्ति के अलावा और क्या-क्या तोड़ सकते हो? तोड़ने वालों ने कहा, बहुत कुछ तोड़ सकते हैं। जिसे भी ना पसंद करते हैं, जो हमें पसंद नहीं है उसे हम तोड़ देते हैं। बड़ी-बड़ी इमारतें तोड़ देते हैं। जिंदा लोगों को तोड़ देते हैं। और तो और हम मुर्दा लोगों को तोड़ देते हैं। हमसे अच्छा यह काम और कोई नहीं कर सकता। मूर्ति ने पूछा, क्या तुम जोड़ना भी जानते हो? तोड़ने वालों ने कहा, ये क्या होता है?
7.मूर्ति ने अपने गिराने वालों से पूछा, यह बताओ क्या संसार के दूसरे देशों में भी मूर्तियां तोड़ी जा रही हैं? मूर्ति गिराने वाले प्रसन्न हो गए । उन्होंने कहा, यह पवित्र काम तो सारे संसार में हो रहा है। मूर्ति ने पूछा, कौन-कौन कर रहा है? मूर्ति गिराने वालों ने कहा, जो-जो कर रहे हैं, सब हमारे भाई हैं।
8. मूर्ति तोड़ने वालों ने मूर्ति से पहला सवाल किया, तुम्हें कोई बचाने क्यों नहीं आ रहा? मूर्ति ने जवाब दिया, अगर वे अपने आपको बचा पाएंगे तो मुझे बचाने आएंगे।
9. मूर्ति ने अपने तोड़ने वालों से पूछा, आप लोगों को मुझ से इतनी घृणा थी तो आपने मुझे पहले क्यों नहीं तोड़ा?मूर्ति तोड़ने वालों ने कहा, विरोध का डर था। मूर्ति ने पूछा, आप विरोध को पसंद नहीं करते? तोड़ने वालों ने कहा, बिल्कुल नहीं हम विरोध और विरोधियों को पसंद नहीं करते। हम वीर हैं। हम अपनी शक्ति वहीं दिखाते हैं जहां कोई विरोध नहीं होता।
10. लेनिन की मूर्ति ने पूछा, तुम लोग मूर्तियों के अलावा और क्या-क्या तोड़ोगे? उन्होंने कहा, हम तोड़ने में एक्सपर्ट हैं। जो चाहेंगे तोड़ देंगे। लेनिन की मूर्ति ने कहा, तुम सब कुछ तोड़ सकते हो लेकिन लोगों का हौसला नहीं तोड़ सकते।
****लेनिन और भगत सिंह
प्रामाणिक दस्तावेजों के हवाले से खबरें मिली हैं कि शहीदे ए आज़म भगत सिंह और स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक , लेनिन के बड़े कायल थे।
ट्रिब्यून (लाहौर ) के 26 जनवरी 1930 अंक में प्रकाशित एक दस्तावेज के अनुसार 24 जनवरी 1930 को लेनिन-दिवस के अवसर पर ” लाहौर षड्यन्त्र केस ” के विचाराधीन क़ैदी के रूप में भगत सिंह अपनी गरदन में लाल रूमाल बाँधकर अदालत आये। वे काकोरी-गीत गा रहे थे। मजिस्ट्रेट के आने पर उन्होंने ‘समाजवादी क्रान्ति ज़िन्दाबाद ’ और ‘साम्राज्यवाद मुर्दाबाद ’ के नारे लगाये। फिर भगतसिंह ने निम्नलिखित तार तीसरी इंटरनेशनल (मास्को) के अध्यक्ष के नाम प्रेषित करने के लिए मजिस्ट्रेट को दिया।
तार था :लेनिन-दिवस के अवसर पर हम सोवियत रूस में हो रहे महान अनुभव और साथी लेनिन की सफलता को आगे बढ़ाने के लिए अपनी दिली मुबारक़बाद भेजते हैं। हम अपने को विश्व-क्रान्तिकारी आन्दोलन से जोड़ना चाहते हैं।मज़दूर-राज की जीत हो।सरमायादारी का नाश हो। साम्राज्यवाद – मुर्दाबाद!!*विचाराधीन क़ैदी, 24 जनवरी, 1930 लाहौर षड्यन्त्र केस.
फांसी के ऐन पहले
जब 23 मार्च 1931 को लाहौर जेल की काल कोठरी में जेलर ने आवाज लगाई फांसी का समय हो गया है, चलना पड़ेगा तो जो हुआ वह इतिहास है .
काल कोठरी के अंदर से 23 वर्ष के भगत सिंह ने जोर से कहा :रुको। एक क्रांतिकारी , दूसरे क्रांतिकारी से मिल रहा है.
दरअसल भगत सिंह तब कामरेड लेनिन की किताब , ‘ कोलेप्स ऑफ़ सेकंड इंटरनेशनल’ पढ़ रहे थे।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
तिलक को जब ब्रिटिश हुक्मरानी ने राष्ट्रद्रोह के आरोप में बतौर सज़ा सात वर्ष के कारावास के लिए बर्मा भेजा तो लेनिन ने उसका तीव्र विरोध किया था.लेनिन , भारतीय स्वतन्त्रता संघर्ष में तिलक के इस आह्वान के प्रशंसक थे कि ‘ स्वराज हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है और हम उसे हासिल कर के रहेंगे ‘ .
तिलक ,लेनिन को उत्पीड़तों का अप्रतिम योद्धा कहते थे ,उनके शासन में भूमी का स्वामित्व भूमि जोतने वालों को देने के कार्यक्रम के कायल थे. तिलक ने लेनिन की प्रशस्ति में अपने अखबार में लिखे एक सम्पादकीय का शीर्षक ही रखा था,’ रूसी लीडर लेनिन .
बहरहाल भारत में दो मई 2021 के बाद क्या होगा ये सवाल निकट भविष्य के गर्भ में है. लेकिन इतना तय है भारत समेत उन कम से कम 50 देशों में जहां लेनिन की स्मृति में सरकारी डाक टिकट निकल चुके हैं लेनिन जंयती के उपलक्ष्य में सड़कों पर असंख्य लोगों द्वारा लेनिन जिंदाबाद के नारे लगाए जाते रहेगें.
चंद्रप्रकाश झा , वरिष्ठ पत्रकार