जन आंदोलनों के संरक्षक थे ललित सुरजन जी
–डॉ सुनीलम
ललित सुरजन जी की मौत ने सभी को स्तब्ध कर दिया है। हालांकि वे कई महीनों से बीमार थे, बीच में ऐसा लगा था कि वह पूरी तरह से स्वस्थ हो जाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ललित जी का व्यक्तित्व सौम्यता लिए हुए थे। मैंने उन्हें सदा खुश देखा ।जब भी मिले गर्म जोशी से मिले। ललित सुरजन जी से मेरा संबंध तबसे था जब मध्य प्रदेश एकजुट था तथा मैं पुरुषोत्तम कौशिक जी के साथ कार्यक्रमों में लगातार रायपुर और अन्य जिलों में आया जाया करता था। गत 25 वर्षों में जब भी गया तब ललित जी से मिला या फोन पर जरूर बात की। ललित जी थे तो बड़े अखबार देशबन्धु के मालिक और संपादक लेकिन बदलाव के हर आंदोलन में सक्रिय भागीदारी करते थे।
इसी वर्ष मेरी ललित जी से दो बार मुलाकात हुई थी, एक बार जब ऑल इंडिया पीपुल्स फोरम की बैठक भिलाई में रखी गई थी तब वे उस बैठक में आए थे। उन्होंने बहुत आग्रह करने पर छत्तीसगढ़ की परिस्थिति के बारे में कुछ बातें रखी थी। दूसरी बार तब मुलाकात हुई थी जब हम समाजवादी विचार यात्रा के दौरान लॉकडाउन के पहले देशबंधु के रायपुर कार्यालय में उनसे मुलाकात से मिले थे। उन्होंने हर एक साथी से विस्तृत बातचीत की थी। ललित जी की खासियत यह थी कि वे संभावनाओं के साथ जीते थे। सकारात्मक और सृजनात्मक सोच रखने वाले थे। छत्तीसगढ़ की संस्कृति में रचे बसे हुए थे। उनका सम्मान सभी पार्टियों के नेताओं द्वारा किया जाता था।
उनकी दृष्टि अंतिम व्यक्ति पर केंद्रित रहती थी। छत्तीसगढ़ में उन्हें आंदोलनों के संरक्षक के तौर पर देखा जाता था। देश में परिवर्तनकारियों, संगठनों, पार्टियों का जो नेतृत्व रहा हो उनका निजी संबंध ललित सुरजन जी से बना रहा।ब छत्तीसगढ़ में नक्सलियों की हिंसा का कभी भी उन्होंने पक्ष नहीं लिया लेकिन, वे सदा राज्य की हिंसा के खिलाफ सशक्त आवाज बने रहे। सरकार माओवादियों के साथ समस्याओं का हल निकाले यह बराबर उनका प्रयास रहता था। यह सर्वविदित है कि ललित सुरजन जी ने मायाराम सुरजन जी द्वारा स्थापित देशबंधु अखबार को कभी रास्ते से भटकने नहीं दिया। परिवार में सबसे वरिष्ठ होने के नाते वे देशबंधु के सभी संस्करणों का कलेवर सामाजिक सरोकारों के साथ बनाये रखने में कामयाब रहे। मेरा ललित जी और पूरे सुरजन परिवार के साथ अंतरंग सम्बन्ध रहा है। इस कारण ललित जी के देहान्त से मैं अत्यंत दुखी हूं। छत्तीसग़ढ के साथियों की तरह ही मुझे लगता है कि हम बिना संरक्षक विहीन हो गए हैं।