50 साल की लड़ाई — ज़िंदा रहने की: लाल बिहारी ‘मृतक’ की अनोखी कहानी
“सरकार ने मुझे मरा हुआ घोषित किया, पर मैं अब भी ज़िंदा हूँ।”
यह एक साधारण आदमी की नहीं, बल्कि असाधारण जज़्बे की कहानी है — लाल बिहारी ‘मृतक’ की।
उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ ज़िले के अमिलो गाँव के रहने वाले लाल बिहारी को एक दिन पता चला कि सरकारी रिकॉर्ड में वे मर चुके हैं!
उनके अपने रिश्तेदारों ने, सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से, ज़मीन हड़पने के लिए उन्हें मरा हुआ दर्ज करवा दिया था।
और फिर शुरू हुई — एक ऐसी लड़ाई, जो पचास साल से जारी है।
मृतक बनकर ज़िंदा रहने की शुरुआत
साल 1976 के आसपास लाल बिहारी को पहली बार यह पता चला कि वे “मृतक” घोषित कर दिए गए हैं।
जब उन्होंने अपने साड़ी के बिज़नेस के लिए लोन लेने के लिए ज़मीन का रिकॉर्ड निकलवाना चाहा, तो वहां लिखा था — “मृतक लाल बिहारी”।
उनकी ज़मीन पर अब उनके रिश्तेदारों ने कब्ज़ा कर लिया था।उन्होंने अधिकारियों से कहा — “मैं तो ज़िंदा हूँ!”
लेकिन किसी ने उनकी बात नहीं मानी। सरकारी फाइलों में दर्ज नाम ने ज़िंदा इंसान की सांसों से ज़्यादा ताक़त दिखाई।
सिस्टम से टकराने का फैसला
लाल बिहारी ने अदालत का दरवाज़ा खटखटाया, लेकिन किसी ने उनकी अर्जी स्वीकार नहीं की।क्योंकि — कानून के मुताबिक तो वे मर चुके थे!तब उन्होंने तय किया कि वे इस “मृतक” टैग को ही अपना अस्त्र बना लेंगे।उन्होंने खुद को “लाल बिहारी ‘मृतक’” कहना शुरू किया।
उन्होंने “मृतक संघ” नाम से एक संगठन भी बनाया — ताकि ऐसे सभी लोगों की आवाज़ उठाई जा सके जिन्हें जीवित होते हुए भी कागज़ों में मरा हुआ बताया गया।
समाज और मीडिया की नज़र में आए ‘मृतक’
धीरे-धीरे उनकी कहानी ने अख़बारों और टीवी चैनलों में जगह पाई।उन्होंने कई बार अनोखे तरीके से विरोध जताया —कभी “मृतक” नाम से चुनाव लड़ा,कभी अधिकारियों को “श्रद्धांजलि” पत्र भेजा।
उनकी सादगी और व्यंग्य ने उन्हें एक प्रतीक बना दिया —भारत के उस सिस्टम का प्रतीक, जो जीवित नागरिकों को भी फाइलों में दफना देता है।
19 साल बाद ‘ज़िंदा’ घोषित हुए
कई वर्षों की जद्दोजहद, अपीलें और संघर्ष के बाद 1994 में आखिरकार उन्हें आधिकारिक रूप से ज़िंदा घोषित किया गया।लेकिन तब तक उनकी ज़िंदगी का बड़ा हिस्सा मृतक साबित करने में निकल चुका था।
बाद में पता चला कि वह फ़ाइल ही रिकॉर्ड से ग़ायब है जिसमें वह मृतक और बाद में जीवित घोषित हुए. अब वह फाइल को खोजने की लड़ाई लड़ रहे हैं.
दुख की बात यह है कि आज भी, इतने वर्षों बाद भी, सैकड़ों लोग “कागज़ों में मरे हुए” हैं।
मुख्यमंत्री से मुलाक़ात और निराशा
हाल ही में लाल बिहारी ‘मृतक’ ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाक़ात की। वे उम्मीद लेकर गए थे कि शायद राज्य सरकार उन लोगों के लिए कोई ठोस कदम उठाएगी जो अब भी अपने ज़िंदा होने की लड़ाई लड़ रहे हैं।
लेकिन मुलाक़ात के बाद वे कहते हैं “मुख्यमंत्री से मिला, पर निराश लौटा। सिस्टम अब भी वही है — फाइलों में इंसान की कोई कीमत नहीं।”
क्यों ज़रूरी है ‘मृतक संघ’ की लड़ाई आज भी
लाल बिहारी बताते हैं कि आज भी देशभर में ऐसे सैकड़ों मामले हैं जहां ज़मीन हड़पने के लिए रिश्तेदार और अधिकारी मिलकर किसी को ‘मृतक’ घोषित कर देते हैं।उनका कहना है —“मैं लड़ रहा हूँ ताकि कोई और लाल बिहारी ‘मृतक’ न बने।”
Media Swaraj Exclusive
यह कहानी सिर्फ़ लाल बिहारी की नहीं — यह एक पूरे तंत्र की कहानी है,जहां कागज़ की मुहर ज़िंदा इंसान से भारी पड़ती है।
Media Swaraj इस संघर्ष की कहानी को सलाम करता है —क्योंकि यह हमें याद दिलाती है कि लोकतंत्र तब ही ज़िंदा रहता है
जब उसके नागरिकों की पहचान ज़िंदा रहती है।
Lal Bihari ‘Mritak’ Exclusive Interview with Ram Dutt Tripathi सुनने के लिए कृपया @Mediaswarajnews YouTube चैनल पर जाएं
 
				 
						


