शिक्षा नीति में कोठारी आयोग के विचार अधिक प्रासंगिक
राष्ट्रीय शिक्षा आयोग -1964 -1966 -कोठारी आयोग की संस्तुति का अंतिम पृष्ठ - नई शिक्षा नीति 2020 के परिप्रेक्ष्य में
डॉ. चन्द्रविजय चतुर्वेदी। आज जब पूरे देश में नई शिक्षा नीति -20 पर गंभीरता से विचार विमर्श हो रहा है, तब कोठारी आयोग -1964 -1966 की विस्तृत संस्तुति के अंतिम पृष्ठ पर जो विचार व्यक्त किये गए हैं, वे आज पूर्व से अधिक प्रासंगिक दिखते हैं।
ये विचार नई शिक्षा नीति -20 के क्रियान्वयन के लिए नीति निर्देशक तत्व सिद्ध हो सकते हैं। कुछ विचार निम्नवत प्रस्तुत हैं।
—आने वाले दिनों में ऐसी नीतियां अपनाने से काम नहीं चलेगा, जिनपर सच्चे दिल से अमल न किया जाए।
शिक्षा का पुनर्निर्माण हमारे भविष्य के लिए अतिमहत्व का और तत्काल करने का काम है।
यह असाधारण रूप से कठिन भी है क्योंकि इसे पूरा करने के लिए जन, धन और सामग्री के रूप में जो साधन उपलब्ध हैं, वे बहुत ही थोड़े हैं।
इन सबके बावजूद शिक्षा के विकास का काम तुरंत हाथ में लेना आवश्यक है और उसके लिए जोरदार प्रयत्न करने हैं।
—हम इतिहास के एक ऐसे क्रांतिक मोड़ पर खड़े हैं जहाँ हमें शिक्षा या नाश के रूप में एक को चुनना है।
यदि हमने अपनी बढ़ती हुई आवश्यकताओं और प्रबल आकाँक्षाओं की पूर्ति के लिए सुदृढ़ ,संतुलित ,प्रभावी और सुविचारित शिक्षा प्रणाली की स्थापना न की तो इतिहास की प्रबल तरंगे हमारे पांव उखाड़ देंगे।
–आज राष्ट्र को भुखमरी, बेकारी, बीमारी और गरीबी की चुनौतियों का जिस गंभीरता से सामना करना पड़ रहा है, उतना पहले कभी नहीं करना पड़ा।
इन चुनौतियों का सामना करने में हमें जिस बात से बल मिल सकता है वह है शिक्षा में नए सिरे से प्राण फूंकने की चेष्टा।
लेकिनयह तभी संभव है जब हमारे पास आदर्श अध्यापकों और प्रशासकों की पूरी फ़ौज हो।
दरअसल अब हमें जीवन के सभी क्षेत्रों में आदर्शवाद की भारी आवश्यकता है।
इसके लिए कोई योजना बनाना शायद आसान न हो लेकिन जब तक हम सही तौर पर आदर्शवाद की स्थापना नहीं कर पाते, तब तक हमें अपने विकास कार्यों में कोई विशेष सफलता मिलने की आशा नहीं करनी चाहिए।
शैक्षिक और राष्ट्रीय पुनर्निर्माण का एक दूसरे से घनिष्ठ सम्बन्ध है।
दुष्चक्र से निकलने का उपाय शिक्षा के पुनर्निर्माण में
हम अपने को आज जिस दुष्चक्र में फंसा हुआ पाते हैं, उससे निकलने के लिए सबसे प्रभावकारी उपाय यही है की शिक्षा के पुनर्निर्माण का कार्य बहुत बड़े पैमाने पर शुरू किया जाए।
कोठरी आयोग के उपर्युक्त विचारों के परिप्रेक्ष्य नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में यह ध्यान रखना आवश्यक है की मानव स्वतः साध्य है, जिसे उस शिक्षापद्धति की तलाश है जो मूल्यपरक हो जो मानव की पहचान को बरकरार रख उसे प्रकृति और समाज के साथ जोड़े रखे।
जो जीवन के लिए अभ्यास और अनुशासन बन सके ,जो व्यक्ति में उचित सामर्थ्य और शक्ति विकसित कर सके जिससे वह अहंकारों, उन्मादों, पूर्वाग्रहों तथा उन सभी ताकतों के विरुद्ध क्रान्ति का उद्घोष कर सके जो हमारे शाश्वत मानवीय मूल्यों का विनाश कर रहे हैं।