जानिये, कौन हैं किसान नेता राकेश टिकैत

किसानों के अधिकार की लड़ाई के चलते टिकैत अब तक 44 बार जेल भी जा चुके हैं। मध्य प्रदेश में भूमि अधिग्रहण कानून के खिलाफ हुए आंदोलन के चलते उनको 39 दिनों तक जेल में रहना पड़ा था। कुछ साल पहले दिल्ली में संसद भवन के बाहर किसानों के गन्ना मूल्य बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया तो उन्हें तिहाड़ जेल भेज दिया गया था। उन्होंने संसद भवन के बाहर गन्ना जला दिया था।

नए क़ृषि कानून को लेकर देश भर के किसानों ने एक साल से भी अधिक समय तक कठोर आंदोलन किया। अब तीनों कृषि कानूनों की वापसी और किसानों की अन्य कई मांगों के सरकार द्वारा पूरे करने के वायदा पत्र पाने के बाद सभी किसान अपने अपने घरों को लौट रहे हैं। इनमें से किसान आंदोलन का मुख्य चेहरा रहे किसान नेता राकेश टिकैत भी अपने पुस्तैनी गांव सिसौली लौट रहे हैं। गांव में उनके स्वागत की भव्य तैयारियां हो रही हैं। उनके घर को दुल्हन की तरह सजाया गया है। गांव में हर ओर खुशी का माहौल है। तरह तरह की मिठाइयां तैयार की जा रही हैं। हर चेहरे पर अपने किसान नेता के घर वापसी की खुशी साफ झलक रही है। ऐसे में आइए, जानते हैं कि कौन हैं किसानों के नेता राकेश टिकैत…

मीडिया स्वराज डेस्क

आज भी कोई नहीं भूल पाया होगा 26 जनवरी को हुई हिंसा के बाद किसान आंदोलन ख़त्म होता देख रो पड़े किसान नेता राकेश टिकैत का वो चेहरा, जिसने खत्म होते किसान आंदोलन में नई जान डाल दी थी। फिर से सारे किसान राजधानी के सीमाओं पर जुटने लगे थे। तब राकेश टिकैत को रोता देख लोगों को उनके पापा चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत की याद आ गई थी।

कौन थे चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत

32 साल पहले भारतीय किसान यूनियन की स्थापना करने वाले चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने तब अपनी हुंकार से राजधानी दिल्ली को ठप कर दिया था। उस समय केंद्र में राजीव गांधी की सरकार थी, आज की मोदी सरकार की तरह तब भी मजबूरन उन्हें किसानों के आगे झुकना पड़ा था। एक साल तक चले इस किसान आंदोलन के दौरान उन्हें याद करते हुये कई बार लोगों ने यही कहा कि राकेश टिकैत भी अपने पापा के पद चिन्हों पर चल रहे हैं और किसान इन्हें फॉलो कर रहे हैं।

राकेश टिकैत

भारतीय किसान यूनियन नामक संगठन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत का जन्म 4 जून 1969 को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सिसौली गांव में हुआ। भारतीय किसान यूनियन के पूर्व अध्यक्ष महेंद्र सिंह टिकैत के वो दूसरे बेटे हैं। पिछले साल 2020 में कृषि कानून के विरोध में ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर धरना प्रदर्शन से राकेश टिकैत चर्चा में आये।

टिकैत ने मेरठ विश्वविद्यालय से एम॰ए॰ की डिग्री ली और 1992 में दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल के रूप में शामिल हुए, लेकिन 1993-1994 में लाल किले पर किसानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान दिल्ली पुलिस की नौकरी छोड़ दी और भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के सदस्य के रूप में सरकार के विरोध में शामिल हो गए।

दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल

राकेश टिकैत साल 1985 में बतौर कांस्टेबल दिल्ली पुलिस में भरती हुए थे। कुछ दिन बाद ही उनका प्रमोशन हुआ और वो सब इंस्पेक्टर बन गए. उसी दौरान उनके पिता जब महेंद्र सिंह टिकैत किसानों के लिए बिजली के दाम कम करने की मांग कर रहे थे, तब उन पर सरकार ने उनके पिता का आंदोलन समाप्त करने के लिए प्रेशर डाला। फिर राकेश टिकैत ने अपनी सरकारी नौकरी छोड़ अपने पापा का साथ दिया और आंदोलन में कूद पड़े। तभी से वे राजनीति में सक्रिय हो गए।

राकेश टिकैत ने कभी भी राजनीति से परहेज नहीं रखा. साल 2007 में वे पहली बार मुजफ्फरनगर की बुढ़ाना विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़े, लेकिन हार गए। हालांकि, उन्होंने हार नहीं मानी। उसके बाद 2014 में अमरोहा लोकसभा क्षेत्र से चौधरी चरण सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोक दल के टिकट पर चुनाव लड़े, वहां वे फिर से हार गए। इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले किसानों की ट्रैक्टर रैली लेकर वे दिल्ली गेट तक आ गए थे।

2018 में टिकैत हरिद्वार, उत्तराखंड (उत्तराखण्ड) से दिल्ली तक किसान क्रांति (क्रान्ति) यात्रा के नेता थे। मुजफ्फरनगर में हुई एक बड़ी पंचायत में उन्होंने अल्लाह हु अकबर के नारे लगाए, जिसके बाद उनकी खूब आलोचना हुई।

भारत के तत्कालीन प्रमुख किसान नेता भानू प्रताप सिंह ने तब राकेश टिकैत को बेईमान बताया था। भानू प्रताप सिंह ने खुलासा किया था कि राकेश टिकैत कांग्रेस पार्टी का दलाल है, वह आन्दोलन करने के लिए पार्टी से रुपये लेता है। उन्होंने कहा कि राकेश की देश के असली किसानों के बीच कोई लोकप्रियता नहीं है। वह दो बार चुनाव लड़ा था और बुरी तरह चुनाव हारा था। देश के किसानों ने कभी उसे अपना हितैषी नेता माना ही नहीं। भानू प्रताप सिंह ने आरोप लगाए कि राकेश टिकैत वह व्यक्ति है, जो चाहता नहीं है कि भारतीय किसान विरोध प्रदर्शन (2020-2021) का कोई समाधान निकले, क्योंकि इनके आन्दोलन राजनीति से प्रेरित होते हैं। इनके आन्दोलन जितना लम्बा चलते हैं, इसके लिए इन्हें बड़ी रकम मिलती है।

देश के किसानों ने ही राकेश टिकैत की सम्पत्ति की जांच की मांग सरकार से की थी। इस मामले में कुछ समाचार चैनलों द्वारा चौंकाने वाले खुलासे सामने आए थी। उनके पास आय से बहुत अधिक सम्पत्ति पाई गई थी।

44 बार जा चुके हैं जेल

भारतीय किसान यूनियन के मौजूदा राष्ट्रीय प्रवक्ता और संगठन किसानों के संयुक्त मोर्चे में शामिल राकेश टिकैत लगातार विभिन्न मंचों पर किसानों के अधिकार की बातें उठा चुके हैं। किसानों के अधिकार की लड़ाई के चलते टिकैत अब तक 44 बार जेल भी जा चुके हैं। मध्य प्रदेश में भूमि अधिग्रहण कानून के खिलाफ हुए आंदोलन के चलते उनको 39 दिनों तक जेल में रहना पड़ा था। कुछ साल पहले दिल्ली में संसद भवन के बाहर किसानों के गन्ना मूल्य बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया तो उन्हें तिहाड़ जेल भेज दिया गया था। उन्होंने संसद भवन के बाहर गन्ना जला दिया था।

किसान आंदोलन के दौरान 26 जनवरी 2021 को जो हिंसा हुई, उसके बाद आंदोलन ख़त्म होता देख किसान नेता राकेश टिकैत रो पड़े। उन्होंने कहा कि वे आत्महत्या कर लेंगे, लेकिन आंदोलन ख़त्म नहीं करेंगे। उनके आंसुओं ने आंदोलन को फिर से रफ़्तार दे दी और फिर से भारी संख्या में किसान गाजीपुर बॉर्डर पहुच गए ।

बड़े भाई नरेश टिकैत

महेंद्र सिंह टिकैत के बड़े बेटे और राकेश टिकैत के बड़े भाई नरेश टिकैत का जन्म 1975 में मुजफ्फरनगर में हुआ था। नरेश इस समय राष्ट्रीय जनता दल पार्टी के नेता हैं। नरेश टिकैत भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भी हैं। भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत ने भी मुजफ्फरनगर के महा पंचायत में कहा था कि किसान आंदोलन जारी रहेगा। अगर किसानों के मुद्दे का हल नहीं होता है तो गाज़ीपुर बॉर्डर पर आंदोलन चलता रहेगा।

26 जनवरी के दौरान छोटे भाई राकेश के आंसू देख नरेश टिकैत ने ट्वीट करके कहा था कि- मेरे छोटे भाई राकेश टिकैत के ये आंसू व्यर्थ नहीं जाएंगे। अब हम इस आंदोलन को निर्णायक स्थिति तक पहुंचा कर ही दम लेंगे। और हुआ भी वही। सरकार को तीनों कृषि कानूनों को वापस लेकर किसान आंदोलन समाप्त करना पड़ा।

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