केनोपनिषद : कौन है ब्रह्म

डॉ. चन्द्रविजय चतुर्वेदी। केनोपनिषद का पांचवां मन्त्र है —

यन्मनसा न मनुते एनाहुर्मनो  मतम। तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं  यदिदमुपासते। .

अर्थात जो मन से मनन नहीं किया जाता बल्कि जिससे मन मनन किया हुआ कहा जाता है, उसी को तू ब्रह्म जान –देशकालविच्छिन्न वस्तु –की लोक उपासना करता है, वह ब्रह्म नहीं है।

इस मंत्र पर चिंतन करते हुए ,इसका काव्यानुवाद ,भावानुवाद प्रस्तुत है —

प्राणी रे

काया की माया से

निरंतर जुड़े हुए तेरे मन से

मनन नहीं हो सकता

उसका जो सहस्रशीर्ष

सहस्त्र आयामों से

जग में है ओतप्रोत

वह असीम ऊर्जामय

ब्रह्मरूप ही करता रहता

हर मन का मनन सतत

लोक जिसकी उपासना के

भ्रम में रहता है

वह नहीं ब्रह्म है

जो कुछ श्रद्धा विश्वास

संकल्प बुद्धि की सीमा है

मन के तेरे प्राणी

उससे भी परे असीम शुद्ध

ब्रह्मरूप वह प्रकाशपुंज

मन मन को आलोकित कर

मनन स्वयं करता हर मन का

काया की माया से मुक्त

मन रे पहिचानो

उस अलौकिक प्रकाश से

प्रकाशित राहों को चाहों को।

Leave a Reply

Your email address will not be published.

twenty − twenty =

Related Articles

Back to top button