कांवड़ यात्रा पर सरकारी मेहरबानी क्या यह बहुसंख्यक तुष्टिकरण है?
राजनीतिक शक्ति और सांस्कृतिक बहुसंख्यकवाद का प्रदर्शन
मीडिया स्वराज डेस्क
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में सावन का महीना आते ही कांवड़ यात्रा धार्मिक आयोजन से बढ़कर राज्य प्रायोजित उत्सव का रूप ले चुकी है। इस बार भी योगी सरकार ने इसे अभूतपूर्व बनाया है:

• मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हेलीकॉप्टर से कांवड़ मार्ग का निरीक्षण किया।
• जगह-जगह पुलिसकर्मी कांवड़ियों पर फूल बरसाते नजर आए।
• पुलिस और प्रशासन ने गंगाजल और कांवड़ वितरित किए।
• सड़कों पर मीट और शराब की दुकानों को बंद करने के आदेश दिए गए।
• नगर निकाय और स्वास्थ्य विभाग ने शिविर, मेडिकल सुविधा और मुफ्त भोजन तक की व्यवस्था की।
सुरक्षा देना तो प्रशासन का काम है, लेकिन क्या धार्मिक सामग्री बांटना और फूल बरसाना भी राज्य का दायित्व है?
सुरक्षा और व्यवस्थाएँ: आंकड़ों में
• पुलिस बल: 66,000 से अधिक सुरक्षाकर्मी तैनात, जिसमें 587 गज़ेटेड अधिकारी, 2,040 इंस्पेक्टर, 13,520 सब-इंस्पेक्टर, 39,965 कांस्टेबल, 1,486 महिला सब-इंस्पेक्टर और 8,541 महिला कांस्टेबल शामिल।
• केन्द्रीय बल: 50 PAC, RAF, ATS और QRT कंपनियाँ तैनात।
• CCTV कैमरे: 29,500 से अधिक कैमरे।
• ड्रोन निगरानी: 395 हाई-टेक ड्रोन।
• सुविधाएँ: 1,845 जल केंद्र, 829 मेडिकल कैंप, और 1,222 पुलिस सहायता बूथ।
उपद्रव पर प्रशासन का नरम रवैया
कांवड़ यात्रा के दौरान कई जगह कांवड़ियों के उपद्रव की खबरें आई हैं। इन उपद्रवों का शिकार सड़क पर चलने वाले लोग होते हैं।
• बुलंदशहर और मेरठ में गाड़ियों पर तोड़फोड़।
• कन्नौज में पुलिसकर्मी को सड़क पर बैठकर माफी मांगनी पड़ी।
• बरेली में झड़प के बावजूद कोई सख्त कार्रवाई नहीं हुई।
ताज़ा घटना: हरिद्वार-बहादराबाद टोल प्लाज़ा पर बवाल
13 जुलाई 2025 को हरिद्वार-बहादराबाद टोल प्लाज़ा पर कांवड़ियों ने जमकर उपद्रव किया:
• कांवड़ खंडित होने पर भड़के कांवड़ियों ने पुलिस और रोडवेज बसों पर पथराव किया।
• टोल प्लाज़ा को बाधित कर दिया और वहाँ तोड़फोड़ की।
• पुलिस ने पहुँचकर यातायात चालू कराया और दो उपद्रवियों को गिरफ्तार किया।
• कई वाहन क्षतिग्रस्त हुए।
यह घटना प्रशासन की उस नीति पर सवाल उठाती है जिसमें कांवड़ियों को अघोषित संरक्षण मिलता नजर आता है।यह भी सवाल उठते हैं कि ये शिवभक्त हैं अथवा उपद्रवी।
बहराइच में मेलों पर सख्ती
बहराइच में सैय्यद सालार मसूद गाजी दरगाह पर सदियों पुराना मेला इस साल रोक दिया गया।इस तरह के और भी कई मेले रोक दिए गए जिससे सैकड़ों करोड़ के व्यापार का नुक़सान हुआ। इन मेलों में अधिकांश दुकानें हिंदुओं की ही होती हैं।
प्रशासन ने कहा कि भीड़ के कारण कानून-व्यवस्था बिगड़ सकती है।
अगर मस्जिद में भीड़ बढ़ जाये और थोड़ी देर के लिए सड़क पर नमाज पढ़ने की नौबत आ जाये तो सरकार उस पर भी सख्ती करती है।
यह घटनाएँ दिखाती है कि एक ओर सरकार कांवड़ यात्रा में पूरी ताकत झोंक रही है, और दूसरी ओर मुस्लिम समुदाय के धार्मिक आयोजनों पर पाबंदी लगाई जा रही है।
सेकुलरिज़्म और बहुसंख्यक तुष्टिकरण
भारतीय संविधान कहता है कि राज्य को सभी धर्मों के प्रति समान दृष्टिकोण रखना चाहिए। लेकिन जब:
कांवड़ियों पर फूल बरसाए जाते हैं,
गंगाजल और कांवड़ बांटे जाते हैं,
मुख्यमंत्री हेलीकॉप्टर से निरीक्षण करते हैं,
उपद्रव पर नरमी बरती जाती है,
और
दूसरी ओर मुस्लिम धार्मिक आयोजनों पर पाबंदियां लगाई जाती हैं, तो यह सवाल उठता है कि क्या यह सांवैधानिक धर्मनिरपेक्षता है?
कांवड़ यात्रा अब महज धार्मिक यात्रा नहीं रही। यह राजनीतिक शक्ति और सांस्कृतिक बहुसंख्यकवाद का प्रदर्शन बन गई है।
सवाल यही है: क्या यह आस्था का सम्मान है या बहुसंख्यक तुष्टिकरण की एक राजनीतिक रणनीति?