गोवा में कल्पवास


कई मित्रों ने यह जानने की उत्सुकता ज़ाहिर की है कि भला मैं गोवा में क्या कर रहा था ?  एक शब्द में कहूँ मैं गोवा में कल्पवास कर रहा था , यानी प्रकृति के बीच रहते हुए आहार और सेहत पर एक कार्यशाला अटेंड कर रहा था. 

राम दत्त त्रिपाठी

इसका आयोजन एक पत्रकार मित्र ने ही किया था  और प्रशिक्षक ग़ाज़ियाबाद दिल्ली से आयी थीं . सबसे जरूरी बात यह कि हम गोवा के मडकई गॉंव के जिस कैम्पस में टिकाये गये वह एक छोटे से गाँव में यह कैम्पस अद्भुत है . यहॉं तरह -तरह के पेड. पौधे वनस्पतियाँ हैं . आम , जामुन , नारियल , सुपारी , तेज पत्ता . इलायचीऔर काली मिर्च आदि आदि. इसलिए हवा में औषधियॉं . जैसे कभी लोग नैनीताल के भुवाली में स्वास्थ्य लाभके लिए जाते थे. इसलिए यहाँ रहना प्रयागराज के कल्पवास जैसा ही कहा जा सकता है।

मौसम सुबह शाम थोड़ा ठंडा पर दिन में गरम . फिर भी एसी कूलर की ज़रूरत नहीं . सबसे बड़ा सुख मित्रों कासाथ. बहुत दिनों बाद खुलकर हंसने का मौक़ा मिला.सुबह अपने आप जल्दी नींद खुल जाती थी , रात में जल्दी सो भी जाते. 

प्रशिक्षक स्वयं भोजन तैयार करतीं जिसमें सेहत के साथ स्वाद का भी आग्रह . इसके बाद सेहत और आयुर्वेद के त्रिदोष सिद्धांत- वात , पित्त और कफ पर चर्चा. मैं सवाल बहुत पूछता हूँ, इसलिए ख़राब छात्र होने का ख़िताब भी मिला . 

मडकई और कुंडई का यह इलाक़ा मंदिरों के लिए फ़ेमस है. सब मंटिर ट्रस्ट द्वारा संचालित और सुव्यवस्थित. किसी से पूजा , दान , दक्षिणा का आग्रह नहीं , सब कुछ स्वेच्छा से . मंदिरों का भ्रमण और दर्शन भी हुआ. मंगेशटेम्पल लता मंगेशकर जी के गॉंव में होने से बहुत फ़ेमस है. बालाजी यानी विष्णु भगवान का मंदिर . और समुद्रमंथन के समय विष्णु के मोहिनी रूप वाला महालसा मंदिर. 

मुझे मडकई आश्रम के बग़ल में गॉंव के एक छोटे राधा कृष्ण मंदिर बहुत पसंद आया . यहॉं कोई पुजारी पुरोहित नही . गॉंव के लोग बारी – बारी से यजमान बनते हैं. एक तरह से कम्यूनिटी सेंटर भी है यह . 

कैम्प शुरू होने पहले मीरामार बीच पर समुद्र दर्शन किया और बोट से डालफिन शो देखने गये..पॉंच दिन के इस कैम्प से छुट्टी पाकर ओल्ड गोवा के चर्च देखे. फिर तीन दिन कोलवा बीच के पास एक छोटे सेहोम स्टे में ठहरे . सुबह शाम समुद्र तट पर सूर्योदय और सूर्यास्त दर्शन . मशहूर साहित्यकार विभूति नारायण राय और पत्रकार प्रभाकर मणि तिवारी के साथ होने से सत्संग लाभ मिला .

धन्यवाद मेरे पड़ोसी और पत्रकार अम्बरीश कुमार को जिन्होंने आहार और सेहत पर कार्यशाला आयोजित कीऔर कलानंद मणि को जिन्होंने पीसफुल सोसायटी के अद्भुत कैम्पस में रहने का मौक़ा दिया. कलानंदगॉंधीवादी हैं . जेपी आंदोलन के साथी हैं . गोवा की भारती जी से शादी करके यहीं बस गये हैं . 

बहुत कुछ सीखने को मिला , करने लायक़ और न करने लायक़ दोनों . वास्तव में इस कार्यशाला की जैसीतैयारी होनी चाहिए थी नहीं हुई. भोजन के साथ कोई आयुर्वेद के डाक्टर होते जो मूल सिद्धांत समझाते औरनाड़ी देख कर सबको खान पान तथा दिनचर्या की उचित सलाह देते तो कार्यशाला और उपयोगी होती. लेकिन इस कैम्पस की औषधीय वनस्पति मिश्रित शुद्ध हवा अपने आप में अमूल्य उपलब्धि है और इसीलिए मैं इसे कल्प के रूप में लेता हूँ. 

सबसे बड़ी बात यह समझ में आयी कि जब हम प्रदूषित वाता में रहते हैं तो हमारे शरीर के अंग ठीक से काम नहीं कर पाते और हम बीमार पड़ते हैं. इसलिए समाज का स्वास्थ्य सुधारने के लिए अस्पतालों के साथ – साथ शुद्ध जलवायु भी चाहिए. शुद्ध जलवायु मिले इसके लिए हेम अपनी आवास, उद्योग और कृषि नीतियों में बदलाव करना होगा।

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