जापानी कविता : छोटी कविताओं की बड़ी दुनिया
जापानी कविता के लिए शब्द है वाका।
हेइयान युग में इस शब्द का ईजाद किया गया था ताकि जापानी कविता को कांशी यानी चीनी कविताओं से अलग किया जा सके।
वाका कई तरह के होते हैं पर दो ज्यादा प्रमुख हैं — ताङ्का ( छोटी कविता) और चूका (लंबी कविता)।
ओका शीकी ने ताङ्का शब्द निकाला था जो हाइकु से अधिक पुराना है।
एक और परंपरा थी आधे ताङ्का की जिसमें एक कवि आधा बोलता था, और दूसरा उसे पूरा करता था। जिसे रेङ्गा (जुड़ी कविता) कहा जाता था।
जब प्रेमी अपनी प्रेमिका के पास जाता था तो दोनों वाका का आदान-प्रदान करते थे जिसे किनुगीनु कहा जाता था।
दो तरह की वाका गोष्ठियां भी आयोजित होती थीं — उताकाई और उताआवासे।
उताकाई में सभी लोग शामिल होते थे।
उताआवासे नववर्ष या किसी खास अवसर पर पड़ी जाती थी जिसमें एक जज भी होता था।
हाइकु मूल रूप से जापानी कविता है। “हाइकु का जन्म जापानी संस्कृति की परम्परा, जापानी जनमानस और सौन्दर्य चेतना में हुआ और वहीं पला है।
हाइकु में अनेक विचार-धाराएँ मिलती हैं- जैसे बौद्ध-धर्म (आदि रूप, उसका चीनी और जापानी परिवर्तित रूप, विशेष रूप से जेन सम्प्रदाय) चीनी दर्शन और प्राच्य-संस्कृति।
हाइकु अनुभूति के चरम क्षण की कविता है।
बिंब समीपता (juxtaposition of the images) हाइकु संरचना का मूल लक्षण है। इससे पाठक को रचना के भाव में अपने आप को सहकारी बनाने की जगह मिल जाती है।
हाइकु कविता तीन पंक्तियों में लिखी जाती है। हिंदी हाइकु के लिए पहली पंक्ति में पांच अक्षर, दूसरी में सात अक्षर और तीसरी पंक्ति में पांच अक्षर, इस प्रकार कुल 17 अक्षरों की कविता है।
हाइकु अनेक भाषाओं में लिखे जाते हैं; लेकिन वर्णों या पदों की गिनती का क्रम अलग-अलग होता है। तीन पंक्तियों का नियम सभी में अपनाया जाता है।
ऋतुसूचक शब्द (कीगो)- एक अच्छे हाइकु में ऋतुसूचक शब्द आना चाहिए। लेकिन सदा ऐसा हो, यह जरूरी नहीं। हाइकु, प्रकृति तथा प्राणिमात्र के प्रति प्रेम का भाव मन में जगाता है। अत: मानव की अन्त: प्रकॄति भी इसका विषय हो सकती है।
हिन्दी में हाइकु लिखने की दिशा में बहुत तेजी आई है। लगभग सभी पत्र-पत्रिकाएँ हाइकु कविताएँ प्रकाशित कर रही हैं।
आकाशवाणी दिल्ली तथा दूरदर्शन द्वारा हाइकु कविताओं को कविगोष्ठियों के माध्यम से प्रसारित किया जा रहा है। लगभग 400 (चार सौ) से अधिक हिन्दी हाइकु संकलन हिन्दी में प्रकाशित हो चुके हैं।
बाशो
हाइकु शैली को विकसित करने वाले कवि थे बाशो।
उनका मूल नाम मात्सुओ किंसाकू था।वे ईदो युग के सबसे बड़े कवि थे।
उनका जन्म सन् 1644 में ईगा में हुआ था। वे सामुराई खानदान से ताल्लुक रखते थे।
शुरू में उन्होंने पुरानी जापानी कविताओं का गहन अध्ययन किया था। और अपना नाम तोसेई यानी नीले रंग का अधपका आड़ू रखा था।
उन दिनों वे चीनी भाषा के महान कवि ली फो से अत्यंत प्रभावित थे। जिनके नाम का अर्थ होता है सफेद आड़ू।
बाशो ने बौद्ध और ताओ धर्मों के प्रतीकवाद को अपनी संपीड़ित कविताओं के जरिये अमर कर दिया। उन्होंने संबद्ध कविताएं यानी रेंकू या सिर्फ हाईकाई,रेंगा नहीं। यानी मजाकिया कविताएं नहीं पर जोर दिया।
जापानी कवियों का तो यह भी मानना है कि हाइकु बाशो से शुरू हुई और उन्हीं के साथ खत्म हो गयी।
सन्1667 से वे ईदो (अब तोकीओ ) के ग्रामीण इलाके में रहने लगे। वहां केले के पत्तों से बनी कुटिया बनाकर रहते थे। वहां केले का एक पेड़ भी लगाया।
केले के पत्तों से छन कर आती समुद्री हवा में उन्हें दैविक अनुभूति होती थी।इसलिये अपना नाम ही रख दिया — बाशो यानी केला।
वे यायावर, कवि और लेखक थे। प्रारंभ में वे हांगकांग शैली में कविताएं लिखते थे। बाद में हाइकु को ही समर्पित हो गये।
सन् 1694 में उनकी मृत्यु हो गयी।
प्रस्तुत हैं हिन्दी में उनकी कुछ हाइकु कविताएं। अनुवाद की सीमाओं की लाचारी के कारण हाइकु के मीटर का पालन नहीं हो सका है, जिसके लिये क्षमा प्रार्थी हूं।
झूलते हुए पुल को
ख़ामोश कर दिया है लताओं ने
जैसे हमारी खिंची हुई जिंदगी
हर्ष, फिर विषाद
पनकौवे पर सवार
नौका मछली मार
साल दर साल
बंदर के चेहरे पर
बंदर का ही एक मुखौटा
अब मैंने देखा उसका चेहरा
बूढ़ी औरत, परित्यक्त
चांद अकेला उसका साथी
केले का पेड़
हवाओं से उड़ता, बारिश की बूंदें गिराता
बाल्टी में
इस गहरे पतझड़ में
बुढ़ापा आ गयी मुझ पर
अपने सफ़र में बीमार
अब मेरे सपने लगेंगे भटकने
इन सुनसान बंजरों के बीच
तानीगुची बूसों
बाशो के बाद दूसरे सबसे बड़े हाइकु कवि।
उनका जन्म सन् 1716 में ओसाका के उपनगर में हुआ था।जवान हुए तो माता-पिता गुज़र गये।
फिर वे ईदो पहुंचे।कवि और पेंटर बनने। अब उनका नाम योसा बूसान हो गया। उन्होंने हाइकु की बाशो शैली को पुनर्स्थापित किया। उसमें जबर्दस्ती मज़ाक जोड़ने के सिलसिले को रोका।
वे अपने जमाने के मशहूर पेंटर थे। वे बुंजिंगा पेंटर थे। हाइगा नामक जापानी पेंटिंग शैली को दुरुस्त किया।
पेंटिंग में उनके शिष्य मात्सुमूरा गोशुन ने शीजो स्कूल की स्थापना की थी।
सन् 1784 में उनकी मृत्यु हो गयी।
हाइकु
बिजली चमकती है
पानी की बूंदों की आवाज
बांस से गिरती है
मैं निकलता हूं अकेला
एक अकेले आदमी से मिलने
पतझड़ के इस झुटपुटे में
सड़क के इस झुटपुटे में
सड़क के पास मंदिर में
पथराये बुद्ध के सामने
एक जुगनू जलता है
मौसमी बरसात में
अनाम नदी के संगम
डर का भी कोई नाम नहीं
बाशो की बरसी पर
काई पर जाड़े की बरसात
याद करती बेआवाज़
उन ख़ुशगवार बीते दिनों की
सुसानू
सन् 702 में जापान का सबसे पुराना कविता संकलन प्रकाशित हुआ जिसका नाम था कोजिको ।
कहते हैं कि उसकी पहली कविता सुसानू नामक शिंजो देवता ने वाका शैली में लिखी थी।जो तूफ़ान और कभी कभी सागर का भी देवता है।
उसने माता- ओ- ओरोची नामक दैत्य को मार डाला था और उस क्रम में कुसानागी नामक पवित्र खड्ग की खोज की थी।
ताङ्का
बादल उठते आठ तहों में
बाड़ बनाते आठ तहों में
आठ तहों का इजुमो बाड़
कहां रखूंगा अपनी दुल्हन
कितना सुन्दर आठ तह बाड़
इजुमो — नवविवाहित जोड़ों को प्यार करने वाला देवता