बलराम जाखड़ को भुलाना नामुमकिन

बलराम जाखड़
त्रिलोक दीप, वरिष्ठ पत्रकार

बलराम जाखड़ कई भाषाओं के विद्वान तो थे ही वे ज़मीन से जुड़े हुए नेता भी थे। उनकी यादों को साझा कर रहे हैं ‌श्री त्रिलोक दीप जो उनके बेहद करीब थे

 पंद्रह साल बाद1980 में फिर 20, अकबर रोड जाना हुआ ।

अवसर था लोकसभा के नये अध्यक्ष डॉ.बलराम जाखड़ से मिलना ।

हमारे ‘दिनमान ‘के संपादक रघुवीर सहाय चाहते थे कि उनसे जो इंटरव्यू हो वह जाखड़ साहब के समग्र व्यक्तित्व को परिलक्षित करने वाला हो ।

यानी उनके किसानी जीवन,उनके पंजाब की राजनीति में आगमन से लेकर लोकसभा तक पहुंचकर माननीय अध्यक्ष बनना तक।

साथ में उनका देश की सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में योगदान भी ।

क्योंकि जगह मेरी देखी भाली थी इसलिए उन तक पहुंचना मुश्किल नहीं था।

उनके कक्ष में प्रवेश करने पर एक भव्य व्यक्तित्व ने हाथ आगे बढ़ा  कर स्वागत करते हुए पंजाबी में कहा,’आओ बादशाहो जी आययां नूं ।’ अर्थात् आइये आपका स्वागत है ।

जैसे मैं जाखड़ की विशाल काया और डीलडौल से अभिभूत हो रहा थे,उनकी नज़र मेरी मूँछों पर थी।

फिर पंजाबी में ही बोले,’बल्ले ओए एईथे ते तोते विठाए जा सकदे ने ।’ उनका यह डायलॉग अंत तक रहा।

 उस समय भी जब मेट्रो अस्पताल के बिस्तर पर पड़े हुए  थे।

मेरे  पूछे जाने पर कि कैसा लग रहा है लोकसभा का अध्यक्ष पद तो वे हंस कर बोले,’अच्छी शुरुआत है।

लोकसभा में तो पहली बार चुन कर आया हूं लेकिन पंजाब विधानसभा में दो कार्यकाल पूरे किये हैं–एक में मंत्री रहा तो दूसरे में विपक्ष का नेता ।कह सकते हैं कि राजनीति की थोड़ी बहुत समझ रखने लग गया हूं।’

आप पहली बार लोकसभा में आये और आते ही इतना बड़ा तोहफा,इसकी कोई खास वजह ।

जाखड़ साहब हंस कर बोले,इसका उत्तर तो माननीय प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ही दे सकती हैं।’

फिर भी आपसे पूछा तो गया ही होगा ।

बोले, ‘हां यह पूछा गया था कि कानून की पढ़ाई की है या कानून जानते हो,हम आपको माननीय स्पीकर बनाना चाहते हैं,इसपर मैंने जवाब दिया था कि किसान का बेटा हूं,खुला दिमाग है और सामान्य ज्ञान की जानकारी रखता हूं।

कैसी भी गंभीर और बेढब स्थितियां हों उनसे निपटने और उनका हल निकालने की मुझ में कुव्वत है।

जहां तक कानून की बात है स्पीकर को कानून की कम ही ज़रूरत पड़ती है, उसे हालात से निपटने की कला आनी चाहिए जो मुझ में है।’

मेरी बातें सुन और आत्मविश्वास देखकर इंदिरा जी हंसी और इस तरह से मैं लोकसभा का अध्यक्ष चुना गया ।

बलराम जाखड़ ने बताया था कि पहला इम्तहान लोकसभा का बजट सत्र था जिसने मुझे पीठासीन अधिकारी की सभी चुनौतियों और पेचीदगियों से वाक़िफ करा दिया था ।

इस सत्र से बिना ज़्यादा कष्ट से निपटने के लिए मेरी शेरोशायरी, मेरे संस्कृत के श्लोक, मेरी पंजाबियत, राजस्थानी, बागड़ी और हरियाणावीं ठसक बहुत काम आयी।

अगर कहीं कोई कानूनी या संसद के नियमों और निर्देशों की जरूरत पड़ी तो महासचिव महोदय हाज़िर थे। इस प्रकार हंसखेल कर बजट सत्र भुगता दिया।

मैंने महसूस किया कि सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही सदन संचालन की मेरी स्टाइल से संतुष्ट और खुश थे। प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेताओं ने भी तारीफ की।

जाखड़ ने आगे बताया कि ‘मैं पूरी तरह से संतुष्ट नहीं था। लिहाजा इंटरसेशन में मैंने समय का पूरा उपयोग किया।

लोकसभा के नियमों और निर्देशों का अध्ययन किया ,संसदीय कार्य और प्रक्रिया को पढ़ा और उसको आधार बना कर तैयार की गयी एम. एन. कौल और एस. एल.शकधर के ग्रंथ का अध्ययन किया  तथा सुभाष कश्यप की defection of politics जैसी किताबों को भी खंगाला। और इस तरह मानसून अधिवेशन के लिए कमर कस ली ।

बलराम जाखड़ का अंग्रेज़ी,हिंदी,उर्दू,संस्कृत,पंजाबी भाषा पर समान अधिकार था ।अलावा इसके वे राजस्थानी, मारवाड़ी, हरियाणावी,बागड़ी भी बोल लेते थे ।

मैंने उन्हें कभी खाली बैठे हुए  नहीं देखा था। वे या तो शायरी की किताबें पढ़ते हुए पाये जाते या संस्कृत,हिंदी या उर्दू की पुस्तकें ।

पहली मुलाकात में ही उन्होंने अपने हाथों की उंगलियों में पड़ी गांठों को दिखाते हुए कहा था कि इन्होंने रेतीली रेगिस्तानी मिट्टी को नख्लिस्तानी बनाया है और कीनो प्रजाति को जन्म दिया है और अखिल भारतीय स्तर पर ‘उद्यान पंडित’ की उपाधि दिलायी है ।

किसानी के अपने सारे कामों को सिलसिलेवार लगा कर ही वह राजनीति में आये।

बलराम जाखड़ से हुई यह खुली बातचीत रघुवीर सहाय को खूब भायी और इसे एक महत्वपूर्ण स्टोरी के रूप में छापा गया।

बलराम जाखड़ को जब मैंने  ‘दिनमान’ वह अंक भेंट किया तो वे बहुत खुश हुए। मेरी उपस्थिति में तो केवल पन्ने ही पलटे।

बाद में आराम से पढ़ने के बाद तारीफ की ।कुछ सांसदों ने भी इस इंटरव्यू की चर्चा की।इसके बाद 20, अकबर रोड पर एक बार फिर निर्बाध तरीके से मेरा  आना-जाना शुरू हो गया।

अब अकबर रोड की कोठी पर ही उनके संसद भवन के ऑफ़िस में आना जाना शुरू हो गया था ।

डॉ . बलराम जाखड़  की ओर से संसद भवन में मेरा प्रवेश पत्र भी जारी करा दिया  गया। वहां का प्रेस कार्ड अभी नहीं बना था।

उनके निजी सचिव शिवदत्त बाली और हरबीर सिंह से भी मित्रता हो गयी थी ।

जाखड़ साहब सदन का काम निपटा कर जब अपने दफ्तर में आ जाते तो उन्हें मेरे आने की सूचना दे दी जाती।

वह मुलाकात इस मायने में महत्वपूर्ण हुआ करती थी कि कभी कभी जाखड़ साहब सदन के भीतर की घटनाओं की मुझे जानकारी दे जाते या मेरे आग्रह करने पर  किसी मंत्री या सांसद से मुलाकात करवा दिया करते थे ।

अब यह तो मुझ पर निर्भर करता था कि इस विशेष सामग्री का मैं किस प्रकार इस्तेमाल करता हूं ।

ऐसे एक दिन जाखड़ साहब बोले ‘चल कल तुम्हें अपना गांव पंजकोसी दिखा कर लाता हूं ।कल सुबह हम लोग चलेंगे और परसों लौट आयेंगे।’

इण्टरकॉम से उन्होंने अपने निजी सचिव से कहा कि ‘कल दीप वी साडे नाल चले दा।’ 

संसद भवन का काम निपटा कर वहां  से सीधे मैं अपने दफ्तर आ गया और रघुवीर सहाय को इस बाबत बताया।

सहाय जी को  यह जानकारी भी दे दी कि मैं अकेला पत्रकार उनके साथ जा रहा हूं ।दरअसल अब जाखड़ साहब मुझे छोटे भाई की तरह समझने लगे थे ।

रघुवीर जी ने खुश होकर कहा कि ‘दिनमान’ के लिए यह विशेष रिपोर्ट होगी ‘लोकसभा अध्यक्ष के साथ एक दिन उनके गांव पंजकोसी में ।’

निश्चित समय के अनुसार मैं 20, अकबर रोड पहुंच गया।

अपना स्कूटर वहीं पार्क कर बलराम जाखड़ के साथ उनकी कार में बैठ कर हवाई अड्डे पर गये ।दिल्ली से बठिंडा पहुंचे ।

जाखड़  की अगवानी के लिए अच्छा खासा हुजूम जमा था।

अब मैं जाखड़  साहब से अलग होकर अपने काम में जुट गया। फोटो लिये। लोगों से बातचीत भी बीच बीच में चलती रही। अब फिर मैं जाखड़ साहब की कार में आ गया था।

जब वे अबोहर पहुंचे तो उन्होंने अपनी कार के शीशे नीचे कर दिये और गाड़ी की स्पीड भी कम करने को कहा ।आगे आगे पायलट  कार चल रही थी ।उसके पीछे पंजाब सरकार के अफ़सर ।

सड़कों  के किनारे लोग हाथ हिला हिला कर उनका अभिवादन कर रहे थे ।वह फिरोजपुर से जीत कर पहली बार लोकसभा पहुंचे थे ।

अबोहर उनके निर्वाचन क्षेत्र में था ।अपने प्रतिनिथि को लोकसभा का अध्यक्ष बना देख कुछ लोग जोश में आकर नारे भी लगा रहे थे,’हमारे स्पीकर साहब पधारे हैं, ज़िंदाबाद ‘।

उनके स्वागत में अबोहर से लेकर पंजकोसी तक कई स्वागत द्वार बने थे ।वहां इकट्ठा लोगों से वे कार से नीचे उतर कर मिलते। साथ में मैं भी उतरता  फोटो लेता, और लोगों की प्रतिक्रिया भी ।

स्वागत द्वारों के बाद वे पंजकोसी अपने गांव में पहुंचे और कार से उतर कर पहले भरपूर नज़रों से अपने गांव को देखा ।वहां भी स्वागत करने वालों की अच्छी खासी भीड़ थी ।

लोगों से इज़ाजत लेकर सब से पहले वे अपनी माता जी मिले,पांव को हाथ लगा कर उनका आशीर्वाद लिया ।

माँ ने भी अपने बेटे का माथा चूमा ।माँ का अपना अलग बहुत ही अच्छा घर था जहां वे अकेली रहती थीं ।

माँ का आशीर्वाद लेने के बाद थोड़ी दूर स्थित अपनी हवेली में पहुंचे ।उनके तीनों बेटे सज्जन कुमार,सुरेन्द्र कुमार और सुनील कुमार अपने पिता जी की अगवानी के लिए मौजूद थे ।

जाखड़  की बहुत ही भव्य हवेली थी ।सरकारी अफसर जब उनसे विदा लेने के लिये आये तो डीसी साहब ने जाखड़ साहब से कहा कि हम दीप जी को circuit हाउस में ठहरा देते हैं,वहां इनकी सुविधा का सारा इन्तज़ाम है ।

जाखड़  ‘इन्तज़ाम’ का शब्द सुनकर मुस्कराये और बोले, वह हमारे पास हमारी हवेली में ही रहेगा।मेरे और बाली जी का रहने का एक कमरे में बहुत बढ़िया  प्रबंध था।

थोड़ी देर के बाद जाखड़  साहब सफेद कुर्ते और तहमत (आप धोती भी कह सकते हैं) पहने अपने कमरे से निकले और बोले,’आओ दीप,तम्हें अपना गांव दिखाएं।’

शिवदत्त बाली भी साथ हो लिये । हम लोग पैदल ही चल रहे थे ।रास्ते में कोई उन्हें राम राम कहता तो कोई नमस्ते करता ।

उन्होंने मुझे बताया कि जब भी वे पंजकोसी आते हैं तो पहला काम उन लोगों के यहां जाकर मातमपुर्सी करते हैं जिनका कोई उनसे बिछड़ गया है ।

उस दिन हम लोग दो घरों में गये। उनके यहां जाखड़  साहब नीचे ही बैठे।

दिवंगत के बारे में पूछा कितना बीमार था, दवादारू कहां से ली, गरज यह कि परिवार के प्रति पूरी शिद्दत के साथ संवेदना प्रकट की ।

करीब एक घंटे का चक्कर लगाने के बाद हम लोग हवेली में आ गये ।

मैं जाखड़  साहब से मिलने के लिए उनके कमरे में गया ।सादा लेकिन सुन्दर ।उनकी लंबाई से कुछ बड़ा पलंग था ।मुझे भी वहीं बैठने को कहा ।

उन्होंने बताया हमारे  गांव में अभी भी कुछ लोग ऐसे हैं जिन्होंने मेरे साथ खेतों में काम किया है ।इन लोगों के बीच से ही मैं उठा हूं इसलिए जब भी मैं गांव आता हूं तो ये सभी मुझ से उनके घर जाकर मिलने की उम्मीद रखते हैं और मैं  भरसक कोशिश करता हूं उनकी उम्मीद पर खरा उतरने का ।

बाद में उन्होंने बाली जी को बुलाया और निर्देश देते हुए पंजाबी में कहा कि ‘दीप नूं कड़ी आले गिलास विच दुध न देना,हजम नहीं होवेगा शहरी बाबू नूं।’

जाखड़ साहब के यहां रात को सोने से पहले दूध पीने की प्रथा है। इसलिए उन्होंने बाली जी को यह हुक्म दिया।

आम तौर पर हर पंजाबी परिवार में कड़ी (सामान्य गिलास से करीब दुगने आकार के गिलास) वाले गिलास होते हैं ।

 कड़ी वाले गिलास में ही दूध और लस्सी पिया करते थे जाखड़ । मैंने उस रात छोटे गिलास में ही दूध पिया।

दूध पीने से याद आ गये स्वामी सुमेधानंद सरस्वती। सीकर जाते हुए रास्ते में पिपराली के वैदिक आश्रम में जब मैं उनसे मिलने के लिए रुकता तो वे मुझे गाय का दूध पिलाये बिना जाने नहीं देते थे ।

अगले दिन सुबह मैं और बाली जी तैयार हो कर जब बाहर निकले तो देखा जाखड़  साहब गांव के लोगों से घिरे हुए हैं ।

उन्होंने बाली जी को बुलाकर वे सारी दर्खास्तें उनके हवाले कीं इस आदेश के साथ  कि कल संबंधित मंत्रियों को ये अपनी सिफारिश के साथ भेजनी हैं ।

उसके बाद हम लोग उनके  साथ उनके खेत देखने के लिए निकल गये जो दूर दूर तक फैले हुए थे ।उन्होंने अपने तीनों बेटों में सारी ज़मीन बांट दी थी ।

पहले हम लोग उनके बड़े बेटे सज्जन कुमार के यहां गये ।खेतों में ही उन्होंने अपना फ़ार्म हाउस बना रखा है जो बहुत ही बड़ा और आधुनिक था ।

हम लोगों ने कीनू का जूस पिया जो बहुत ही मीठा था। मैंने इसकी वजह पूछी तो जाखड़  साहब ने बताया कि एक तो यह जूस ताज़ा कीनू का है और दूसरे इस प्रजाति को हमीं लोगों ने विकसित किया है ।

सज्जन कुमार राजस्थान के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री राम निवास मिर्धा के दामाद हैं।

दोनों समधी दस -दस साल स्पीकर रहे- मिर्धा जी राजस्थान विधानसभा में 1957 से 1967 तक जबकि जाखड़  साहब जनवरी 1980 से दिसंबर, 1989 तक।

लोकसभा के इतिहास में बलराम जाखड़ ऐसे पहले  व्यक्ति हैं जो लगातार दो कार्यकाल तक अध्यक्ष का पद सुशोभित कर सके।

न उनसे पहले और न ही अब तक उनके बाद किसी सांसद को लगातार दो कार्यकाल तक अध्यक्ष के पद पर रहने का गौरव प्रप्त हुआ है ।

जाखड़ साहब के बाद सज्जन कुमार दूसरी पीढ़ी के व्यक्ति थे जो पंजाब विधानसभा में पहुंचे और मंत्री भी रहे।

उनके तीसरे पुत्र सुनील कुमार सक्रिय राजनीति में हैं, वे विधायक भी रहे हैं,विपक्ष के नेता भी तथा लोकसभा के सदस्य भी। इस समय वे पंजाब प्रदेश कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष हैं।

उनके बारे में  मुख्यमंत्री अमररिन्दर सिंह ने भी कहा था कि ‘सुनील जाखड़ सीएम मैटीरियल है’।

जाखड़ के बीच वाले बेटे सुरेन्द्र कुमार भी मिले थे ।उनके बारे में जाखड़  साहब का कहना था कि घर यही चलाता है यानी परिवार का बिज़नेस सुरेन्द्र ही देखा करता था।

उनका एक दुर्घटना में निधन हो गया जो बलराम जाखड़  को तोड़ गया था।

बलराम जाखड़ के खेतों को देखने और उनके बेटों से मिलने के बाद एअरपोर्ट  पर पहुंचा।

इस बार जाखड़  साहब की पत्नी श्रीमती रामेश्वरी देवी भी उनके साथ थीं। उनसे भी जाखड़  साहब ने मेरा परिचय कराया ।

दिल्ली पहुंचकर जाखड़  साहब का धन्यवाद किया तो बोले,’सज्जनो फिर मिलां दे।’ और तपाक से हाथ मिलाया।

वहां से स्कूटर उठा कर मैं सीधा ऑफ़िस पहुंचा। देखा रघुवीर सहाय अपने कक्ष में थे। उन्हें बताया सीधे जाखड़  साहब के घर से आ रहा हूं। उन्हें पंजकोसी की आंखों देखी सुनायी,खुश हो गये ।

बाहर जाकर अपने टाइपराइटर पर बैठा ही था कि मेरी मित्र श्रीमती शुक्ला रुद्र आ कर बोलीं, ‘आइये,लंच कर लीजिए।’

मैं उनके साथ लंच करने बैठ गया और उन्हें भी पंजकोसी की यात्रा के बारे में बताया। उन्हें भी अच्छा लगा।

दो घंटे में मैंने अपनी रपट तैयार करके रघुवीर जी को दे दी। थोड़ा बहुत इधर-उधर करने के बाद उन्होंने  प्रेस में भेजने को कहा।

इससे पहले कि मैं उनके यहां दिनमान की प्रति लेकर जाता कि जाखड़ साहब का फ़ोन आ गया,’ओए कमाल कर दीत्ता बादशाहो,आ जा अज दोवे भरा इकट्ठे लंच करेसिये।’अर्थात कमाल कर दिया,आओ आज दोनों भाई इकट्ठे लंच करेंगे ।’

लंच के टेबल पर बैठ कर बोले,इतनी जल्दी कैसे। उन्हें बताया कि मैंने खुद ही अपनी रपट टाइप करके एडिटर को दिखाकर छपने को भेज दी ।

मैंने देखा कि जाखड़ मुझे तो खिला रहे हैं और खुद एक ही चपाती लिए बैठे हैं। इस बाबत पूछने पर बोले, भगवान ने डीलडौल तो इतना लंबा चौड़ा दिया है लेकिन लगता है कि पेट बनाना भूल गये ।

जाखड़ साहब एक या ज़्यादा से ज़्यादा दो रोटियों से अधिक नहीं खाते थे। वह यह भी कहा करते थे कि दिन में दूध और लस्सी कई बार हो जाती है।

1984 का चुनाव बलराम जाखड़  ने राजस्थान के सीकर से लड़ा। पार्टी की तरफ से तर्क दिया गया कि एक तो उनकी जड़ें राजस्थान में हैं और दूसरे सीकर जाटबहुल क्षेत्र है और उनसे बेहतर दूसरा कोई उम्मीदवार नहीं हो सकता।

पार्टी के विश्वास को जाखड़  साहब ने झुठलाया नहीं और उन्होंने वहां से शानदार जीत दर्ज की ।

इंदिरा गांधी के निधन के बाद राजीव गांधी की सरपरस्ती में यह पहला चुनाव लड़ा गया था इसलिए श्रेय भी उन्हें ही जाता था ।

चुनाव के बाद बलराम जाखड़ को कृषिमंत्री बनाये जाने की चर्चा थी लेकिन उसे बूटा सिंह को दिया गया ।

राजीव गांधी ने स्वयं बलराम जाखड़  से निवेदन किया कि वे एक बार फिर स्पीकर के पद की गरिमा कायम रखें।

उन्होंने दलील दी कि एक तो मुझे राजनीति की ज़्यादा समझ नहीं और दूसरे मेरे  प्रधानमंत्री रहते हुए जिस तरह से बचाव की भूमिका आप निभा सकते हैं दूसरा कोई नहीं।

इस प्रकार एक बार फिर से बलराम जाखड़  लोकसभा के अध्यक्ष चुने गये।

लोकसभा के इतिहास में कोई भी व्यक्ति लगातार दो बार स्पीकर के पद का वरण नहीं कर पाया ।अभी तक यह रिकॉर्ड उन्हीं के नाम है ।

मेरा बलराम जाखड़ के यहां आना जाना बदस्तूर जारी रहा ।अब तो पंजकोसी से लौटने के बाद ज़्यादा इज़्ज़त मिलने लगी ।

एक दो -सत्र तक लोकसभा के दूसरे कार्यकाल की अध्यक्षता करने के बाद उन्होंने सीकर जाने की योजना बनायी ।

उम्मीद के मुताबिक मुझ से भी कहा। मैंने हामी तो भर दी लेकिन अपने नये संपादक कन्हैयालाल नंदन की अनुमति प्राप्त  करनी बाकी थी।

आश्वस्त मैं इसलिए नहीं था कि उन्होंने दिनमान के संपादक का कार्यभार संभालने के बाद मेरे पंद्रह बरस पुराने बीट बदल दिये और विदेश तथा प्रतिरक्षा  के बजाय ‘ सामान्य’ में डाल दिया  ।

लगता है कि किसी ने उनके यह कहकर कान भर दिये थे कि मैंने अपनी बीट्स का दुरुपयोग किया है। उसके बाद से मैं खासा चौकस रहने लग गया था।

जाखड़ जी के प्रस्ताव की जब मैंने चर्चा की तो अपनी सदाशयता दिखाते हुए बोले, इसमें मुझ से पूछने की क्या ज़रूरत है, तुम फ़ील्ड में रहते हो, ऐसे फैसले खुद ले लिया करो, मुझे सूचना मात्र दे दिया करो।

उनके इस मिज़ाज और टोन बदलने की वजह शायद  इंदिरा गांधी की हत्या को अपनी  जान जोखिम में डाल कर कवरेज करना था। बहरहाल, अपनी तरफ से मैं भरपूर सतर्कता बरतता था ।

निश्चित दिन को मैं सुबह ही 20, अकबर रोड पहुंच गया था, क्योंकि सीकर का जुड़ाव न तो रेल से था और न ही विमान से।

सीकर से पहले लक्ष्मणगढ़ में एक जनसभा हुई जिसमें डॉ जाखड़  ने सभी का आभार तो व्यक्त किया ही, उनकी समस्याओं को भी जाना और समझा ।

वहां वे मारवाड़ी में बोले। वहां से सीकर करीब 30 किलोमीटर है। कुछ लोग तो लक्ष्मणगढ़ ही जाखड़ साहब को लेने के लिए पहुंच गए थे।

वहीं से सैंकड़ों की तादाद में कारों और मोटरसाइकिलों का काफिला बलराम जाखड़  को लेकर सीकर पहुंचा जहां लोग पलकेँ बिछाये उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। मंच पर उन्हें फूलमालाओं, शालों, साफों से लाद दिया गया ।

इस बार जाखड़  साहब के साथ उनके दूसरे निजी सचिव हरबीर सिंह थे ।सीकर की जनसभा में भी जाखड़  साहब मारवाड़ी के साथ साथ हिंदी में भी कुछ हरियाणवी लहजा लिए हुए बोले ।

वहां के लोगों की सब से बड़ी शिकायत थी दिल्ली और सीकर के बीच रेल गाड़ी का न होना ।उन्हें इस बाबत डब्बा भर चिट्ठियां दी गयीं।

जाखड़  साहब ने वहां मौजूद लोगों को  भरोसा दिलाया कि बहुत जल्दी सीकर ट्रेन से दिल्ली के साथ जुड़ जायेगा। और ऐसा हुआ भी।

अलावा इसके खस्ता सडकों की शिकायतें थीं तो कुछ लोगों की निजी समस्याएँ ।

दिल्ली से सीकर करीब तीन सौ किलोमीटर है। वापसी करनी थी और रास्ते में नीम का थाना में एक जनसभा भी थी। लंच में कई तरह के पकवान थे ।

बलराम जाखड़ उन्हें निहार तो रहे थे लेकिन पेट सहयोग नहीं दे रहा था। वही उन्होंने हल्का सा फुल्का लिया,कुछ राजस्थानी सब्जियां चखीं और लस्सी पी।

मैं ने और हरबीर सिंह ने  दबा कर लंच किया और थोड़ी देर के लिए circuit हाउस में सुस्ता भी आये।

सीकर से नीम का थाना एक सौ किलोमीटर से कुछ अधिक है। इस बार मैं हरबीर सिंह वाली कार में बैठा ताकि जाखड़ साहब भी कार में कुछ आराम कर लें। दो घंटे में नीम का थाना पहुंचे।

वहां भी बेहिसाब भीड़ थी ।जाखड़ साहब के रूप में उनका नया सांसद था। जनसमूह का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि मेरे घर के दरवाज़े आप लोगों के लिए सदा खुले हैं।

वहां भी लोगों ने उन्हें अपनी दिक्कतें बतायीं और हरबीर सिंह के हाथ में आवेदनों का एक और पुलिंदा आ गया।

हरबीर जी ने बताया कि ऑफ़िस पहुंच कर पत्रों की छटनी होती है और स्पीकर साहब के पत्र के साथ संबंधित मंत्रालय को उचित कार्यवाही करने के लिए पत्र भेज दिये जाते  हैं।

मुझे लगता है कि सीकर से दिल्ली तक ट्रेन के बारे में साहब रेलमंत्री चौधरी बंसीलाल से बात करेंगे।

जब नीम का थाना से विदा हुए तो बलराम जाखड़ ने मुझे अपने साथ बैठने को कहा ।उनकी मर्सिडीज में गज़लें चल रही थी ।

बीच बीच में पंजाबी की गज़लें और लोकगीत भी सुनने को मिल जाते ।मैंने जब उनसे पूछा कि जगजीतसिंह की पंजाबी गज़ल नहीं हैं क्या , उन्होंने अपनी अनभिज्ञता ज़ाहिर की।

मैंने उन्हें बताया कि शिव बटालवी की कविताओं कोजगजीत ने  बहुत अच्छा गाया है।

उन्होंने बताया था कि जगजीतसिंह की गजलों के टेप तो हैं लेकिन पंजाबी वाले नहीं। मैंने उन्हें मुहैया कराने का वादा किया।

जब मैंने  उनसे पूछा कि  सीकर तो आपके लिए नया इलाका है,उनका जवाब था,नहीं आज भी हम जाटों की बिरादरी हर जगह फैली हुई है।

राजस्थान में ही देख लो बीकानेर से चुरू, सीकर,भरतपुर और  श्रीगंगानगर तक,करीब करीब पूरा हरियाणा और दोनों पंजाब का बहुत बड़ा भाग।

पाकिस्तान में लाहौर में आपको गिल, बाजवा,चीमा और जाखड़  भी मिल जायेंगे। ये सभी मुसलमान जाट हैं।

यही वजह है कि हमारे यहां ‘जाटलैंड ‘ की मांग उठती रही है। लगता है कोई भी सरकार ‘जाटलैंड ‘ निर्माण के पक्ष में नहीं है।

दिल्ली-सीकर रेल बहुत ही सही मांग लगती है। राजस्थान का ज़िला मुख्यालय है और देश की राजधानी से जुड़ा नहीं है, इसपर जाखड़  साहब का उत्तर था,मुझे भी हैरत हुई। रेलमंत्री से बात करता हूं ।

जाखड़ साहब से बातें करते और गज़लें सुनते सुनते कब दिल्ली पहुंच गये  पता ही नहीं  चला ।रात काफी हो चुकी थी जाखड़ साहब से इज़ाजत लेकर उनकी कोठी से अपना स्कूटर उठा कर घर चला गया।

अगले दिन सुबह उनके यहां जगजीतसिंह वाला टेप दे आया जिसे देने का मैंने उनसे वादा किया था।

बलराम जाखड़ के ऑफ़िस में कमोबेश रोज़ ही जाया करता था ।शिवदत्त बाली (अब दिवंगत) को पहले पंजाब से प्राप्त चिट्ठियों  की छंटाई कराते देख चुका था और अब  हरबीर सिंह को राजस्थान से प्राप्त पत्रों की छंटाई कराने में व्यस्त पाया ।

बातचीत करने पर पता चला कि जाखड़  साहब ने रेलमंत्री चौधरी बंसीलाल से दिल्ली-सीकर ट्रेन चलाने की बात कर ली है और उस दिशा में काम भी शुरू हो गया है ।

मुझे जाखड़  साहब के निजी सचिवों से कई जानकारियां मिल जाया करती थीं।

यह भी पता चलता था कि अपने निर्वाचनक्षेत्र में लोगों से जो वादे करते थे उन्हें पूरा कराने के लिए खुद संबंधित मंत्री से भी बातचीत करते थे ।

ऐसी ही निरंतर बातचीत का असर यह हुआ कि एक दिन दिल्ली-सीकर ट्रेन चलने की खबर भी सुनने को मिली जिसे वहां के लोगों ने ‘जाखड़ एक्सप्रेस ‘का नाम दिया।

ट्रेन चलाने का अपना वादा पूरा करने से न केवल सीकर में ही बल्कि पूरे राजस्थान में बलराम जाखड़ की तूती बजने लगी । लोगों ने राहत की सांस ली ।

यह वह दौर था जो परस्पर विश्वास का होता था।राजनीतिक नेता और अफ़सर को पत्रकार की नीयत और उसके पेशेवराना ईमानदारी पर भरोसा होता था और पत्रकार को नेताओं और अफसरों पर ।

बलराम जाखड़ के साथ कुछ ऐसे संबंध बन गये कि वे मुझे बड़े भाई की तरह प्रेम करने लगे।

एक दिन मैं उनके यहां सुबह सुबह पहुंच गया और बताया कि मैंने ‘दिनमान ‘ छोड़ दिया है और ‘संडे मेल ‘में कार्यकारी संपादक बन गया हूं। आपका आशीर्वाद लेने के लिए आया हूं ।

वे मेरी उन्नति की खबर सुनकर खुश हो गये और भीतर से मिठाई मंगा कर मुंह मीठा कराया और मैं ने उनका कर पांव छू कर विधिवत आशीर्वाद लिया।

उनसे यह वादा भी ले लिया कि जब पेपर का लोकार्पण होगा उन्हें अवश्य पधारना है ।

अभी उनके पास बैठा ही था कि कोई महिला उनसे मिलने के लिए भीतर आ गयी।

उन्हें देखते ही बोले,आइये आपके एक साथी का आपसे तआरुफ़ कराते हैं ।मेरी उनसे मुलाकात कराते हुए कहा कि ये

 त्रिलोक दीप हैं,संडे मेल के कार्यकारी संपादक और उनकी तरफ मुखातिब हो कर बोले कि ये हैं श्रीमती नफ़ीस खान जो संजय डालमिया के साथ काम करती हैं। आप दोनों के बॉस एक ही हैं ।

जाखड़ साहब ने ही मुझे बताया था कि नफ़ीस खान उनकी बेटी जैसी हैं। जाखड़ साहब ने संडे मेल के लोकार्पण समारोह में आकर हमें सम्मान प्रदान किया था।

ऐसे थे बलराम जाखड़ जो अपने  वादे के हमेशा पक्के रहे। आज भी अक्सर उनकी बहुत याद आती है।

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