क्या अंग्रेज़ी सीखना ज़रूरी है – विनोबा भावे
बाबा विनोबा ने कहा कि सीखना चाहो सीखो
विनोबा विचार प्रवाह ब्रह्मविद्या मंदिर तीर्थ क्या अंग्रेजी सीखना ब्रह्मविद्या के लिए आवश्यक है ? बाबा विनोबा ने कहा कि सीखना चाहो सीखो अंग्रेजी,लेकिन उसका ब्रह्मविद्या से कोई ताल्लुक नहीं। बाबा का मानना है कि यहां अंग्रेजी तो लाखों लोग सीखते ही हैं । एकबार कृपलानी जी ने विनोद में कहा था कि अंग्रेजी इंग्लैंड से जा सकती है,लेकिन हिंदुस्तान से नहीं जाएगी।अंग्रेजी ब्रह्मविद्या के लिए तो बिल्कुल अनिवार्य नहीं। बाबा से जानना चाहा कि रेडियो सुनना एक क्रिया है । क्या वह अनिवार्य है? तो बाबा ने कहा कि रेडियो यानी सत्य असत्य मिलाकर बातें लोगों के सामने रखने का साधन! उसके कारण विपरीत ज्ञान,गलत खबरें पहुंचाने का तीव्र कार्य दुनियाभर में चलता है।वह चंद लोगों के हांथ में होता है और बाकी लोगों के दिमाग एक ढांचे में ढालने का काम करता है। उसके न सुनने से ब्रम्हदर्शन में कोई बाधा नहीं आनेवाली है इसलिए रेडियो का सुनना जरूरी नहीं है। फिर बाबा से पूंछा गया कि क्या खेती करना अनिवार्य है? तो बाबा ने कहा कि खेती करना अनिवार्य है क्योंकि *उत्पादन बढ़ाओ यह शब्द दो जगह से सुनने को मिलता है। एक सरकार की ओर से और दूसरा उपनिषद से। उपनिषद कहती है, अन्नम ब्रम्हेति व्यजानात ,अन्नम बहु कुर्वीत इसलिए ब्रह्मविद्या के लिए खेती अत्यंत अनिवार्य है। अन्न तो बढ़ाना ही अच्छा होगा। क्योंकि भोजन तो करना है। हां , यह अलग बात है कि यहां ऐसे भी अनेक महापुरुष हुए हैं जिन्होंने बिना खाए भी आनंद से देह विसर्जित की । समाज में अन्न उत्पादन न करके खायेंगे तो पाप होगा,चोरी मानी जायेगी! अगर अन्न उपजा करके खायेंगे,तो वह पाप निष्कृति होगी। न खाने से तो काम नहीं चलेगा खाना तो चाहिए। इसलिए ब्रह्मविद्या के लिए खेती अत्यंत अनिवार्य ही है। अन्न नहीं मिलने से शरीर दूषित होगा, शरीर दूषित होने से मन बिगड़ेगा तो उससे ब्रम्ह का दर्शन नहीं होगा। सार यह है कि जितना अनिवार्य है उतना ही करना चाहिए।