नारी ही नर की प्रवाहमान शक्ति है

पृथ्वी सरिता प्रकृति

Chandravijay Chaturvedi
चंद्रविजय चतुर्वेदी

“नारी ही नर  की  प्रवाहमान शक्ति है” – अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर प्रस्तुत है डा चन्द्रविजय चतुर्वेदी ,प्रयागराज  रचित विशेष कविता .

ईश्वर की अनुपम कृति नारी ही 

पृथ्वी सरिता प्रकृति 

कवि की कविता 

कल्पना कलाकार की 

साधक की साधना 

ऊर्जा की आराधना 

आसमान की बदरी है 

रूप रंग रस की 

शाश्वत अनुभूति 

चिति है मन है स्पंदन है 

सपना है ममता है करुणा है 

नारी ही 

नर की प्रवाहमान शक्ति है 

नारी की गति दुर्गति से 

युग परिभाषित होते हैं 

नारी की श्रद्धापन अबलापन 

मर्यादा से धर्म संस्कृति का 

मूल्याङ्कन होता है 

नारी की आहों ने 

कालचक्र की गति बदली है 

सावधान मानव समाज 

नारी को मत करो कलंकित 

अपने कुत्सित चाहों भावों से 

नारी ही है राष्ट्री संगमनी 

जीवन की समस्त चेतना 

युग की अपार वेदना 

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