अयोध्या दीपोत्सव में उजागर हुई योगी सरकार की अंतर्कलह, क्या यह सत्ता संघर्ष का संकेत है?
राज्यपाल और दोनों डिप्टी सीएम क्यों नहीं पहुँचे अयोध्या?
मीडिया स्वराज डेस्क
अयोध्या में भव्य दीपोत्सव 2025, जिसे उत्तर प्रदेश सरकार ने अपनी सांस्कृतिक पहचान और राजनीतिक उपलब्धि के रूप में पेश किया, इस बार एक अलग कारण से सुर्खियों में रहा।
दीपों की जगमग रोशनी के बीच तीन प्रमुख चेहरों की अनुपस्थिति —
राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक — ने सत्ता के गलियारों में अंतर्कलह और सत्ता संघर्ष की चर्चा तेज़ कर दी है।
प्रोटोकॉल की चूक या शक्ति संतुलन का संकेत?
आधिकारिक तौर पर कहा गया कि कार्यक्रम के आमंत्रण व प्रचार सामग्री में इन वरिष्ठ नेताओं के नाम या चित्र नहीं थे।
लेकिन यह तर्क राजनीतिक हलकों में “सत्ता-संरचना के भीतर बढ़ती असहजता” के प्रतीक के रूप में देखा जा रहा है।
अंदरखाने, भाजपा संगठन और सरकार के बीच समन्वय की कमी और ब्यूरोक्रेसी के बढ़ते प्रभाव को लेकर असंतोष लंबे समय से चर्चा में है।
उपमुख्यमंत्रियों की अनुपस्थिति: नाराज़गी या संदेश
केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक, दोनों ही भाजपा के भीतर सामाजिक संतुलन और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व के प्रतीक माने जाते हैं।उनकी गैरमौजूदगी ने यह संकेत दिया कि शायद पार्टी के भीतर सत्ता का केंद्रीकरण मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हाथों में और अधिक बढ़ गया है।
राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि दीपोत्सव जैसा राष्ट्रीय स्तर का कार्यक्रम छोड़नामहज कार्यक्रम-संबंधी त्रुटि नहीं, बल्कि अंतरिक असंतोष का मौन प्रदर्शन है।
राज्यपाल की दूरी: औपचारिकता या असहजता?
राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के अयोध्या न पहुँचने पर राजभवन की ओर से कोई आधिकारिक कारण नहीं दिया गया।
कुछ सूत्र बताते हैं कि उन्हें प्रोटोकॉल या समन्वय की सूचना समय पर नहीं दी गई।
राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच संबंध सामान्यतः औपचारिक रहते हैं, लेकिन हाल के महीनों में कई मामलों में उनकी भूमिकाओं को लेकर संतुलन की रेखा धुंधली होती दिखी है।
भव्य आयोजन में सत्ता संघर्ष की छाया
अयोध्या दीपोत्सव भाजपा के लिए सिर्फ़ धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि रामराज्य के आदर्श और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की राजनीतिक प्रस्तुति भी है।
ऐसे मंच से शीर्ष नेताओं की दूरी ने भाजपा के भीतर सत्ता संघर्ष और नेतृत्व के समीकरणों को फिर सुर्खियों में ला दिया है।
विपक्ष ने इसे “योगी सरकार की अंतर्कलह का सार्वजनिक प्रदर्शन” बताया, जबकि भाजपा इसे “प्रोटोकॉल की साधारण चूक” कहकर टालने की कोशिश कर रही है।
भक्ति के उत्सव में सत्ता का संघर्ष
जहाँ दीपोत्सव को एकता और आस्था का प्रतीक माना जाता है, वहीं इस बार यह सत्ता-संतुलन के बिगड़ते समीकरणों और अंतर्कलह का मंच बन गया।
सवाल सिर्फ़ यह नहीं कि कौन आया — बल्कि यह कि कौन नहीं आया, और क्यों नहीं आया।
उत्तर प्रदेश की राजनीति में यह घटना योगी सरकार के भीतर शक्ति-संतुलन की बदलती धाराओं की झलक दे रही है।
समझा जाता है कि बिहार चुनाव समाप्त होने के बाद भारतीय जनता पार्टी आला कमान इस अंतर्कलह पर कोई बड़ा निर्णय ले सकता है।



