भारतीय संविधान: नागरिक सुरक्षा और चहुँमुखी उन्नति का जीवन्त अभिलेख
26 नवम्बर, 2020 ईसवी को संविधान दिवस
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भारतीय संविधान विश्व का एक विस्तृत एवं श्रेष्ठ संविधान है। डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता वाली संविधान सभा ने अन्ततः दो वर्ष, ग्यारह माह और अठारह दिनों की समयावधि में भारतीय संघ के लिए एक ऐसा अद्वितीय अभिलेख तैयार किया, जो लोकतान्त्रिक मूल्यों के बल पर देश की व्यवस्था के सुचारु सञ्चालन के साथ ही, प्रत्येक नागरिक को, बिना किसी भेदभाव के, मानव-जीवन के सबसे महत्त्वपूर्ण आभूषण-रूपी पहलू ‘समानता’ के साथ, जैसा कि मेरा दृढ़तापूर्वक मानना है, हर प्रकार से सुरक्षा प्रदान करता है। यह प्रत्येक नागरिक की चहुँमुखी उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।
संविधान सभा की प्रथम बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को और अन्तिम बैठक 26 नवम्बर, 1949 ईसवीं को हुई थी। अन्तिम बैठक वाले दिन ही, अर्थात् 26 नवम्बर, 1949 ईसवीं को संविधान सभा की प्रारूप समिति के प्रमुख डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने, जिन्होंने स्वयं संविधान-निर्माण में अति कुशलता और विद्वत्ता का परिचय दिया; वे, वास्तव में, एक परम विद्वान थे भी, संविधान सभा द्वारा उसी दिन, अपने सदस्यों के इसकी मूल प्रति पर विधिवत हस्ताक्षर करने और इसे स्वीकार करने के बाद, इसकी प्रति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को सौंपी थी। इसीलिए, 26 नवम्बर प्रतिवर्ष भारतीय संविधान दिवस के रूप में याद किया जाता है/मनाया जाता है।
आइए, सर्व प्रथम हम सभी अपने संविधान-निर्माताओं, संविधान सभा के सभी पदाधिकारियों, समितियों के प्रमुखों एवं सदस्यों को अपनी हार्दिक श्रद्धाञ्जलि दें। कड़े श्रम और अपनी विद्वत्ता से संविधान को तैयार करने वाले, इस रूप में इसके वास्तुकार डॉ. भीमराव अम्बेडकर, संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और संविधान के अधिकांश अनुच्छेदों पर अपना गहन प्रभाव छोड़ने वाली त्रिमूर्ति –पण्डित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल और बी. पट्टाभिसीतारमैया के साथ ही, आचार्य जीवतराम भगवानदास कृपलानी, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, मौलाना अबुल कलाम आजाद, बी.एन. राव, राजकुमारी अमृत कौर, प्रोफेसर एनजी रंगा, एन. गोपालास्वामी आयंगर, श्रीमती दुर्गाबाई देशमुख, डॉ. केएम मुंशी, फ्रैंक एंथोनी व हाफिजुर रहमान स्योहारवी के प्रति विशेष रूप से अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करें।
हर रूप में राष्ट्रीय हितों की सुनिश्चितता हेतुऔर नागरिकों के कल्याण के उद्देश्य से हमारे मूल संविधान में 22 भागों में विभाजित 395 अनुच्छेद थे। इसमें आठ अनुसूचियाँ थीं। समय और परिस्थितियों की माँग के अनुसार, अथवा अन्य कारणों से भी, संविधान में समय-समय पर संशोधन हुए। इसमें अभी तक एक सौ से भी अधिक संशोधन हो चुके हैं। नागरिकों के मूल अधिकारों और राज्यों के नीति-निर्देशक तत्त्वों जैसे अतिमहत्त्वपूर्ण प्रावधानों के साथ ही, मूल कर्त्तव्यों की व्यवस्था को भी इस सन्दर्भ में विशेष रूप से देखा जा सकता है। लेकिन, इस सबके बाद भी, भारतीय संविधान की मूल भावना, हमारे संविधान-निर्माताओं की अभिलाषा, उनकी तीव्र चाह, देश के समस्त नागरिकों को समान अवसर उपलब्ध कराकर समानता की परिधि में लाना था।
समानता, मानव-जीवन का सबसे सुन्दर, महत्त्वपूर्ण और आवश्यक पहलू है। स्वतंत्रता, न्याय और अधिकार, तीनों, समानता के साथ जुड़े हुए पहलू हैं। व्यक्ति, सैद्धान्तिक रूप से, सजातीय समानता को स्वीकार करता है। आस्तिक तो इसे उत्पत्तिकर्त्ता के शाश्वतनियम के रूप में भी लेता है। लेकिन, व्यावहारिक स्थिति इससे अलग है। व्यवहारों में समानता की स्वीकार्यता बहुत ही कठिन कार्य है। नागरिक, समानता की सत्यता की अनुभूति करें; व्यवहारों में इसे स्वीकार करें, इसीलिए, मेरा मानना है कि समान अवसरों की उपलब्धता के साथ सर्वसमानता की स्थिति का निर्माण, हमारे संविधान का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण पक्ष है। संविधान के अनुच्छेद 14 के अन्तर्गत विधि के समक्ष समानता और विधियों के समान संरक्षण के लिए प्रावधान, इस हेतु उपलब्धता, वास्तव में इसी भावना का प्रकटीकरण है। यह, देश के सभी नागरिकों के लिए एक प्रकार से समान व्यवहारों की प्रत्याभूति को समर्पित है। यह प्रत्याभूति, वास्तव में, प्रत्येक नागरिक के चहुँमुखी विकास का माध्यम व मार्ग है।
संविधान दिवस मनाते समय, इसके नागरिक-समानता सम्बन्धी पहलू को हमें अपने मस्तिष्क में प्रमुखता से रखना चाहिए। इस दिन हमें विशेष रूप से प्रतिबद्ध होना चाहिए कि हम अपने संविधान की मूल भावना और नागरिकों से उसकी अपेक्षा के अनुसार अपने कार्यों-व्यवहारों में सजातियों के प्रति समानता का पालन करेंगे। ऐसा करने से ही इस दिवस की भव्यता और सार्थकता प्रकट होसकेगी।
(पद्मश्री और सरदार पटेल राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित भारतीय शिक्षा शास्त्री प्रोफेसर डॉ. रवीन्द्र कुमार मेरठ विश्वविद्यलय, मेरठ (उत्तरप्रदेश) के पूर्व कुलपति हैं।)