जन गण मन का जन कहां गुम हो गया है!

प्रार्थना करें कि जन मन गण का जन भी सम्मानपूर्वक जी सके

राकेश श्रीवास्तव

जन गण मन का जन कहां गुम हो गया है।गुरूदेव रविन्द्र नाथ टैगोर रचित राष्ट्र गान को 24 जनवरी 1950 अपनाते हुए संविधान सभा के केंद्र मे जन ही था।नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने जब इस गीत को हिन्दी और उर्दू में कैप्टन आबिद अली से अनुवाद करवाया था तब उनकी आत्मा मे यही जन था।गांधी जब रामराज्य की बात करते हैं तो उनका रोम रोम इसी जन के मंगल के लिए व्याकुल रहता है।स्वामी विवेकानंद से लेकर भगत सिंह सभी के कर्म और चिंतन मे यही जन विचरण करता है।आजादी के संघर्ष मे इसी जन के लिए लाखों लोगों ने अपना सर्वस्व त्याग दिया और प्राणों की आहुति देने से पीछे नहीं हटे। 

1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम से शुरू हुआ संघर्ष चंपारण आंदोलन,बारदोली,खेड़ा,मिल मजदूर,दांडी,असहयोग,चौरी चोरा,साइमन गो बैक,जलियांवाला बाग,काकोरी कांड,भारत छोड़ो आंदोलन,अगस्त क्रांति जैसे पड़ावों के साथ स्वतंत्रता के आगाज तक चलता रहा।

यह आंदोलन एक तरफ दादा भाई नौरोजी,गोखले,लाल बाल पाल,गांधी,नेहरू,पटेल,मौलाना आजाद,कृपलानी, सीमांत गांधी,राजेन्द्र प्रसाद,सरोजिनी नायडू,जयप्रकाश, लोहिया आदि के संघर्षों की विरासत है तो वहीं भगत सिंह,सुखदेव,राजगुरु,रामप्रसाद बिस्मिल,अशफ़ाक, शचीन्द्रनाथ सान्याल,चन्द्रशेखर आजाद,गणेश शंकर विद्यार्थी आदि अनेकानेक वीरों के प्राण उत्सर्ग करने की गाथाओं से भरा है।इन सभी तथा आजादी के दीवाने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आई एन ए के शौर्य के मूल मे भी यही जन था। 


आज आजादी के अमृत महोत्सव मे जन गण मन के जन के गुम होने की पड़ताल कौन करेगा।उस जान की दृष्टि मे क्या हम सफल हो पाये हैं।निसंदेह गौरवशाली देश ने कई क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति करते हुए विश्व पटल पर अपना नाम अंकित किया।अनेक क्षेत्रों में हमारा उत्पादन बहुत बढ़िया है।शिक्षा, तकनीक,औद्योगिकरण,अंतरिक्ष के मोर्चे पर भी हमने बहुत प्रगति की है।

आज भी हम उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ रहे हैं और विश्व में अपने स्थान को और सुदृढ़ कर रहे हैं।परंतु अभावों मे जीने वाले,विकास के पिरामिड मे नीचे ही फिसलते जा रहे हैं।यदि आज अस्सी करोड़ लोग मुफ्त के राशन के सहारे हैं और हम अन्नोतसव का समारोह मनाने और उसके विज्ञापन पर करोड़ों रुपये खर्च कर रहें हैं तो ऐसे पिरामिड का बढना कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

इस जन गण मन के जन को ढूंढने के लिए किसी अर्थशास्त्री के आंकड़े या गणना की आवश्यकता नहीं है।घर से बाहर निकल जाइए बिना किसी सूचना के,बिना किसी तामझाम के,बिना किसी पार्टी का चश्मा लगाए।

यह दिख जायेगा आपको रेलवे लाइन के किनारे बसी झुग्गियों- झोपड़ियों मे,निर्माणाधीन इमारतों के पास ,पुलों और फ्लाईओवर के नीचे,सड़कों के किनारे,गांवों-कस्बों में,यदि इच्छाशक्ति हो तो भारत के किसी भी हिस्से में देख लीजिए।सुबह निकलिये तो कितने बच्चे बिना स्कूल जाए मिल जाएंगे,आंखें निकली हुई पेट धंसे हुए,कहीं कहीं पेट व पीठ आपस में मिले दिखेंगे।

दो मिनट के लिए,मात्र दो मिनट के लिए गाड़ी से निकलकर और यह भुूलकर कि आप क्या हैं,कौन हैं, इनको केवल महसूस कीजिए,उनके दर्द को न भी महसूस करके केवल खड़े होकर इनको देखें और देखें और तब तक देखते रहें जब तक बर्दाश्त कर सकें।फिर सोचे हम किस स्तर की सुविधाएं भोग रहे हैं।

अपने बच्चों को जरा सा भी कष्ट होने पर मन अंतरनाद करने लगता है।इन बच्चों का भी तो कोई बाप होगा,मां होगी।कभी एक पल के लिए उसके दर्द को महसूस करिये जब अपने बच्चों को भूखा सोता हुआ देखता होगा,स्कूल भेजने की कल्पना करता होगा,दवा नहीं दे पाने के कारण  तिल तिल करता मरता होगा।

इनको न आपकी मेट्रो चाहिए और न ही एक्सप्रेस वे।नहीं चाहिए इनको फाइव स्टार अस्पताल और वातानुकूलित स्कूल।आप का उपर से नीचे चलने वाला ट्रिकल डाउन वाला माडल नही चाहिए क्योंकि उसमे रस नीचे तक रिस कर नहीं आ पाता है।सब उपर से बीच तक समाप्त हो जाता है।

इस जन मन गण के जन की जरूरत है कि उसके बच्चे को स्कूल मिल जाय और अस्पताल मे बुखार और डायरिया की दवा।इस इस जन मन गण को चाहिए दो जून की रोटी और पीने वाला पानी।जन गण मन को चाहिए गरीबी,बेरोजगारी,भुखमरी के दुश्चक्र से आजादी। 

सरकार द्वारा गरीबों के लिए चल रही योजनाओं का क्रियान्वयन ही सही तरीके से हो तो अनेक समस्याएं गायब हो जाएंगी।यदि पार्षद अपने नगर क्षेत्र में,प्रधान अपने ग्राम मे, ब्लाक प्रमुख अपने ब्लॉक में, विधायक वा सांसद अपने क्षेत्र में यह जिम्मेदारी ले लें भले ही छोटी स्तर तो काफी लोगों का भला हो सकता है।

यह विडंबना ही है कि कोई भी सरकार हो जनता का एक बड़ा हिस्सा उसके प्रवक्ता की तरह बात करने लगता है।आज जब मेनस्ट्रीम मीडिया और विपक्ष सरकार से प्रश्न करने का दायित्व नहीं निभा पा रहा है तो जनता को ही पूछना पड़ेगा।

इतिहास बनाने वाले संघर्षों से ही मार्ग निर्माण करते हैं।आजादी की 75 वीं वर्षगांठ के महोत्सव पर हम सब प्रार्थना करें कि जन मन गण का जन भी सम्मानपूर्वक जी सके। 

जय हिंद, जय भारत ,  

Leave a Reply

Your email address will not be published.

4 − 2 =

Related Articles

Back to top button