गांधी के शब्दों में… श्री विनोबा कौन हैं?
सन 1916 में मेरे हिन्दुस्तान लौटने पर उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया।
वे संस्कृतके पंडित हैं। उन्होंने आश्रम में उसकी स्थापनाके समय ही प्रवेश किया था।
…अपने को अधिक योग्य बनाने की दृष्टि से वे अपने संस्कृत के अध्ययनको आगे बढ़ाने के लिए एक वर्षकी छुट्टी लेकर चले गये थे।
वे आश्रम में सब प्रकार की सेवा – रसोईसे लेकर पाखाना-सफाई तक – में हिस्सा ले चुके हैं।
उनकी स्मरण शक्ति आश्चर्यजनक है और वे स्वभावसे ही अध्ययनशील हैं।
…तकली-कताई में तो उन्होंने क्रान्ति ही ला दी है और उसके अन्दर छिपी हुई अबतक अज्ञात शक्तियोंको खोज निकला है।
…उनके ह्रदयमें छुआछूत की बू तक नहीं है। कौमी एकतामें उनका उतना ही उत्साह और विश्वास है जितना कि मेरा।
इस्लाम धर्मकी खूबियोंको समझने के लिए उन्होंने एक वर्ष तक ‘कुरान शरीफ’का – मूल अरबीमें – अध्ययन किया।
इसके लिए उन्होंने अरबी सीखी।
…वे मानते हैं कि हिन्दुस्तानके लिए राजनितिक स्वतन्त्रता आवश्यक है।
उनका विश्वास है कि चरखा अहिंसाका बहुत ही उपयुक्त बाह्य प्रतीक है।
उनके जीवनका तो वह एक अंग ही बन गया है।
…उनका पूर्ण विश्वास है कि रचनात्मक कार्यमें हार्दिक विश्वास और सक्रिय भाग लिए बगैर अहिंसक प्रतिरोध सम्भव नहीं है।
*मो.क. गाँधी*, _सेवाग्राम, 15 अक्तूबर 1940_