गंगा किनारे बांध बना तो जलवायु परिवर्तन पर होगा असर : शोध
शोधकर्ताओं की इस टीम का मानना है कि नदी के किनारे बांध तैयार करने और वह लंबे समय तक बेहतर स्थिति में बना रहे, इसके लिये कई जरूरी बातों पर उनके इस रिसर्च का लाभ मिलेगा.
फरवरी 2021 में जोशीमठ के पास एक ऐसी घटना की सूचना मिली, जिसने तपोवन बांध को नष्ट कर दिया. मुख्य धारा की कमजोर स्थिति के कारण उच्च निर्वहन जल्दी से प्रबंधित किया गया था. हालांकि मानसून के मौसम में अगर ऐसी ही घटना होती है तो यह डाउनस्ट्रीम क्षेत्रों में एक गंभीर बाढ़ का खतरा पैदा कर सकता है.
मीडिया स्वराज डेस्क
बारिश से गंगा के ऊपरी तट पर स्थित तलछट भार और नदियों में जाने वाले पानी की पड़ताल से शोधकर्ताओं को मालूम हुआ कि इससे जलवायु परिवर्तन पर बहुत ज्यादा असर होता है. इसके अलावा नदियों पर बनाये जाने वाले बांध का भी असर उस इलाके में बहुत ज्यादा देखने को मिलता है. यह परिणाम बताता है कि इससे गंगा तट पर बाढ़ आने जैसी घटनाओं में इजाफा होता है.
हिमालय के आसपास के इलाकों को पिछले कुछ दशकों में सबसे ज्यादा बाढ़ प्रभावित इलाकों के तौर पर देखा गया है. इससे आगे कई मुख्य हिमालयी नदियां हैं, जिन्हें कृषि हेतु जल मांगों को पूरा करने और जलविद्युत का दोहन करने के लिए 300 से ज्यादा हाइड्रोलिक संरचनाएं (नियोजित, कमीशन और निर्माणाधीन) विनियमित करती हैं.
भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलोर के जल और अनुसंधान के लिए अंतःविषय केंद्र (Interdisciplinary Centre for Water and Research, Indian Institute of Science, Bangalore), के प्रोफेसर प्रदीप मुजुमदार indianexpress.com को ईमेल के माध्यम से विस्तार से बताते हैं, “हिमालय से निकलने वाली नदियों के तट पर हाइड्रोलॉजिकल, जियोमोरफोलॉजिकल और इकोलॉजिकल प्रोसेस के upstream-downstream linkages पर इसके कारण बहुत ज्यादा असर देखने को मिला है.”
बता दें कि प्रो. मुजुमदार Scientific Reports पत्रिका में प्रकाशित होने वाले कार्यों के पत्राचार लेखक हैं.
A new study by IISc and @IITKanpur researchers provides insights into the effects of climate change and anthropogenic activities like building dams on the Ganga basinhttps://t.co/E1mzG0SGea pic.twitter.com/bcFaFmDPmp
— IISc Bangalore (@iiscbangalore) November 17, 2021
उन्होंने आगे कहा कि यूं तो ऐसे कई शोध किये जा चुके हैं जिनमें भूमि उपयोग-भूमि कवर परिवर्तन के प्रभावों, भारी धातु प्रदूषण, पानी की गुणवत्ता और ग्लेशियर पिघले पानी के योगदान, का आकलन किया गया है लेकिन हिमालयी क्षेत्र में हाइड्रोलॉजिकल संरचनाओं और बदलती जलवायु परिस्थितियों के कारण होने वाले हाइड्रोलॉजिकल परिवर्तनों पर कुछ सीमित अध्ययन ही हैं.
टीम ने दो प्रमुख सहायक नदियों, भागीरथी और अलकनंदा पर ध्यान केंद्रित किया. शोधकर्ताओं ने 1971 से 2010 तक के आंकड़ों की जांच की और 1995 के बाद बाढ़ की घटनाओं की संख्या में लगातार वृद्धि देखी. उनका सुझाव है कि इस क्षेत्र के बांधों ने जल गतिविधि और तलछट परिवहन को बदल दिया है.
प्रो. मुजुमदार का कहना है कि निकट भविष्य में संपूर्ण डाउनस्ट्रीम अलकनंदा का तट अत्यधिक बाढ़ की चपेट में है. शोधकर्ताओं की इस टीम का मानना है कि नदी के किनारे बांध तैयार करने और वह लंबे समय तक बेहतर स्थिति में बना रहे, इसके लिये कई जरूरी बातों पर उनके इस रिसर्च का लाभ मिलेगा.
उन्होंने आगे कहा, “फरवरी 2021 में जोशीमठ के पास एक ऐसी घटना की सूचना मिली, जिसने तपोवन बांध को नष्ट कर दिया. मुख्य धारा की कमजोर स्थिति के कारण उच्च निर्वहन जल्दी से प्रबंधित किया गया था. हालांकि मानसून के मौसम में अगर ऐसी ही घटना होती है तो यह डाउनस्ट्रीम क्षेत्रों में एक गंभीर बाढ़ का खतरा पैदा कर सकता है.”
टीम को उम्मीद है कि अध्ययन के नतीजे स्थायी नदी बेसिन प्रबंधन में मदद करेंगे. टीम अब जलवायु मॉडल सिमुलेशन और हाइड्रोलॉजिकल मॉडल का उपयोग करके जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अध्ययन कर रही है. अत्यधिक बाढ़ के कारण विकसित हो रहे परिदृश्यों का आकलन करने में इन अध्ययनों से मदद मिलेगी.
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मुजुमदार एक विज्ञप्ति में कहते हैं, “वातावरण में जो भी होता है, उस पर हमारा नियंत्रण नहीं है, लेकिन जमीन पर हमारा नियंत्रण है. जल विज्ञान मॉडल का उपयोग करके प्रवाह की भविष्यवाणी की जा सकती है। इस ज्ञान के साथ, हम ऐसे उच्च प्रवाह को कम करने के लिए संरचनात्मक और गैर-संरचनात्मक, दोनों प्रतिक्रियाएं विकसित कर सकते हैं.”