नरेंद्र ग़िरि की मौत : क्यों है हिंदू मंदिर, मठ और अखाड़ों में सम्पत्ति विवाद

(मीडिया स्वराज़ डेस्क)

महंत नरेंद्र ग़िरि की मौत के बाद सवाल उठ रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में हिंदू मंदिर और मठों के खजानों और सम्पत्ति विवाद को लेकर क्यों हत्या – आत्महत्या होती हैं .उत्तर प्रदेश में मंदिर और मठों के खजानों की जानकारी का ब्यौरा कहीं क्यों नहीं मिलता? क्यों ये पैसे महंतों के करीबियों की झोली में जाती हैं जबकि यह जन कल्याण के कार्यों में खर्च किया जाना चाहिए.सवाल यह है कि उत्तर भारत, खासकर यूपी और उत्तराखंड के मठ-मंदिरों में गहरे पैठ बना चुकी यह अव्यवस्था आखिर दूर कैसे हो? बीबीसी के पूर्व संवाददाता राम दत्त त्रिपाठी की पूर्व पुलिस महा निदेशक आर एन सिंह से बातचीत.

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के दिवंगत अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि खुदकुशी मामले में हर रोज कुछ न कुछ अपडेट देखने और सुनने को मिल रहा है. ताजा खबरों के अनुसार कहीं बात हो रही है कि महंत नरेंद्र गिरि की मौत को लेकर शक की सुई सेवादारों और विद्यार्थियों की ओर घूमने लगी है. इसके पीछे मुख्य वजह माना जा रहा है, उस दिन बाघंबरी मठ में निरंजनी अखाड़े किसी भी साधु का मौजूद न होना. चर्चा है कि एक साधु था भी तो वह बड़े हनुमान मंदिर की व्यवस्था में लगा था. ऐसे में मौत का राज उन्हीं विद्यार्थियों, सेवादारों के बीच माना जा रहा है, जो महंत की सेवा में होने के साथ ही उनके करीब भी थे.

एक अन्य खबर की मानें तो प्रयागराज में बाघंबरी गद्दी मठ में महंत नरेंद्र गिरि की संदिग्ध मौत के बाद उनके सानिध्य में रहकर बचपन में ही करोड़पति बन चुके अभिषेक मिश्रा और खुटहन थाना क्षेत्र का विशुनपुर गांव भी चर्चा में आ गया है. 12 वर्ष की अवस्था में अभिषेक बाघंबरी अखाड़े से जुड़ गए महंत के परम प्रिय शिष्य अभिषेक मिश्रा का पैतृक आवास इसी गांव में है, जो मंदिर परिसर में लड्डू की दुकान चलाता है. फिलहाल उनका पूरा परिवार प्रयागराज स्थित आवास पर है. जांच के दौरान अभिषेक मिश्रा का भी मोबाइल जब्त कर लिया गया है.
 
एक अन्य खबर के अनुसार, महंत नरेंद्र गिरि ने आत्महत्या करने से पहले सुसाइड नोट तो लिखा ही था, साथ ही अपने मोबाइल फोन पर अपना बयान भी रिकॉर्ड किया था. महंत नरेंद्र गिरि के मोबाइल फोन से पुलिस को तकरीबन 4 मिनट का एक वीडियो मिला है. एसआईटी ने सीबीआई तक यह वीडियो पहुंचा दिया है. सीबीआई ने सोमवार को नाट्य रूपांतरण के दौरान दरवाजा तोड़ने वाले शिष्यों और अन्य लोगों की मौजूदगी में उस जगह पर वीडियो बनाने का डेमो भी किया, जहां इसे रिकॉर्ड किया गया था. यह डेमो निरंजनी अखाड़े के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी की मौजूदगी में किया गया.

बहरहाल, अब यह जांच का विषय है कि यह वीडियो खुदकुशी करने से कुछ देर पहले का है या नहीं, जैसा कि दावा किया जा रहा है. कहा जा रहा है कि महंत गिरि ने अपने मोबाइल फोन से खुद का वीडियो रिकॉर्ड कर खुदकुशी की वजह बताई. इसमें भी उन्होंने वही बातें बोलीं, जो अपने सुसाइड नोट में लिखी थी.

महंत नरेंद्र गिरि की मौत के बाद भले ही केवल आनंद गिरि का नाम चर्चा में आया हो, लेकिन जल्दी ही इसमें बलबीर गिरि, संदीप तिवारी, आद्या प्रसाद तिवारी और आनंद मिश्रा जैसे कई और नाम भी जुड़ गए हैं. बहरहाल, जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ती जाएगी, और भी कई नए नाम और नए-नए मिस्ट्री एंगल सामने आ सकते हैं. पर, हमारी चर्चा आज इन मुद्दों पर न होकर एक अन्य गंभीर सवाल पर है.

सवाल यह है कि उत्तर भारत, खासकर यूपी और उत्तराखंड के मठ-मंदिरों में गहरे पैठ बना चुकी यह अव्यवस्था आखिर दूर कैसे हो? इसी विषय पर बीबीसी के पूर्व संवाददाता राम दत्त त्रिपाठी और पूर्व पुलिस महानिदेशक आर एन सिंह की बातचीत से कुछ मुख्य बिन्दु हम इस लेख के माध्यम से पाठकों तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं.

  1. दक्षिण भारत के एक नहीं, कई मंदिरों के नाम सबसे अमीर मंदिरों की श्रेणी में आते हैं. प्रतिदिन वहां भक्तों द्वारा जो चढ़ावा आता है, उसकी पाई-पाई का हिसाब ट्रस्ट के पास मौजूद होता है. इसी पैसे से ट्रस्ट आम लोगों के लिए जरूरी आवास, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसे कई आधारभूत और आवश्यक जरूरतों को पूरा करने में अहम भूमिका निभाता है.
  2. ऐसा नहीं कि यह सुविधा केवल दक्षिण भारत के मंदिरों में ही है. अगर बात उत्तर भारत के श्री माता वैष्णो देवी मंदिर की करें तो वहां भी श्राइन बोर्ड द्वारा भक्तों के लिए नहाने-धोने, खाने-पीने, सोने और रहने जैसी सभी जरूरतों का पूरा-पूरा ध्यान रखा जाता है. इसके अलावा माता के दर्शन के लिए भी वहां जिस तरह की ​सुविधाएं मुहैया की जाती हैं, वह भी ध्यान खींचता है.
  3. यहां तक कि दिल्ली और बिहार में भी मंदिरों और मठों में जो चढ़ावा आता है, उसका पूरा हिसाब होता है. साथ ही उस पैसे को आम लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए खर्च किया जाता है. जब देश के ज्यादातर राज्यों या शहरों में ऐसी बेहतरीन व्यवस्था की गई है तो भला यूपी इसमें पीछे क्यों है? जबकि यहां न तो आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या कम है और न ही उनका चढ़ावा कम है.
  4. अयोध्या, हरिद्वार, प्रयागराज, बनारस, हनुमान मंदिर, काशी-विश्वनाथ, कुंभ, संगम, गंगातट, गंगा आरती, लखनऊ गोमती घाट, अलीगढ़ मंदिर, शीशमहल… अनगिनत ऐसे पवित्र स्थल और स्थान हैं, जहां हर रोज श्रद्धालु हजारों-लाखों का चढ़ावा चढ़ाते हैं. फिर, इतनी बड़ी रकम का हिसाब किसी मान्यता प्राप्त ट्रस्ट द्वारा करीने से क्यों नहीं रखा जा सकता! क्यों इस पैसे को जनकल्याण के लिए खर्च नहीं​ किया जा सकता!
  5. सरकार अपने राजनीतिक हितों से ऊपर उठकर आम जनता से जुड़े इस अतिगंभीर मुद्दे पर गंभीरता से विचार क्यों नहीं करती! क्यों गरीब जनता द्वारा श्रद्धा के नाम पर दिया जा रहा यह दान कुछ खास लोगों या कहें कि महंत और पंडे पुजारियों के करीबी रिश्तेदारों के कल्याण के लिए क्यों खर्च किए जा रहे हैं ज​बकि इसे आम जनता के हित और कल्याण से जुड़े कार्यों में खर्च किया जाना चाहिए था.
  6. सरकार को इस दिशा में गंभीरता से विचार करना चाहिए और महामंडलेश्वर की मदद से इन मठों और मंदिरों को मिलने वाली राशि का सही विवरण और खर्च का लेखा जोखा रखा जाना चाहिए. इस बाबत हाईकोर्ट को भी पीआईएल भेजकर इस मामले की गंभीरता से रूबरू करते हुए इसमें जरूरी निर्णय लेने के लिए आगे बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए.

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