हिजाब बनाम भगवा गमछा यह संतुलन है या और कुछ

भाजपा शासित इस राज्य के कुछ स्कूलों में मुसलिम लड़कियों के हिजाब पहन कर आने से रोक दिया गया.

श्रीनिवास

कर्नाटक में अभी हिजाब बनाम भगवा गमछा का एक नकली विवाद खड़ा कर दिया गया है. भाजपा शासित इस राज्य के कुछ स्कूलों में पहले तो मुसलिम लड़कियों को हिजाब पहन कर आने से रोक दिया गया. जब इसे धार्मिक भेदभाव बता कर इसका विरोध शुरू हुआ तो कुछ लड़के वहां गले में  ‘भगवा गमछा’ डाल  कर पहुँच गये. तब प्रबंधन ने उनको भी स्कूल में प्रवेश करने से रोक दिया. यानी ‘संतुलन’ बन गया- हिजाब और भगवा गमछा दोनों पर रोक लग गयी. लेकिन क्या स्कूल प्रबंध या सरकार का रवैया सचमुच संतुलित, यानी भेदभाव से परे है? याद करें कि ऐसा ही ‘संतुलन’ पहले मुंबई में सार्वजनिक स्थानों पर नमाज पढ़ने पर रोक लगाने के लिए भी किया गया था. तब संकीर्ण हिंदू  बीच सड़क पर ‘महाआरती’ का आयोजन करने लगे. ऐसा ही हरियाणा में हुआ। सरकार ने ‘संतुलन’ बनाते हुए दोनों पर रोक लगा दी.  
कर्नाटक का मामला कोर्ट हाईकोर्ट पहुँच चुका है, जहाँ इस फैसले को चुनौती दी गयी है. आज (आठ मई को) ही सुनवाई होनी है. इस बीच भाजपा नेताओं  ने कहा है कि हम कर्नाटक का लालीबानीकरण नहीं होने देंगे. किसी स्कूल के एक अधिकारी ने सवाल किया है कि जब अन्य मुसलिम छात्राओं को  हिजाब के बिना स्कूल आने में परेशानी नहीं है, तो चंद लड़कियों को ही इस नियम से क्यों कष्ट हो रहा है?
बेशक कोई प्रगतिशील व्यक्ति (या महिला)  पर्दा प्रथा को सही नहीं मान सकता. लेकिन क्या एक रिवाज  के तहत औरतों का हिजाब लगाना मुस्लिम समाज का ‘तालीबानीकरण’ करना है?  हम हिंदू समाज में प्रचलित लंबे  घूंघट को भी गलत मानते हैं, तो क्या घूंघट को संकीर्ण हिंदुत्व से जोड़ा जा सकता है? निश्चय ही नहीं.
किसी स्कूल या कालेज या संस्थान का प्रबंधन विद्यार्थियों अपने कर्मचारियों के लिए कोई ड्रेस कोड लागू करता है, तो इसमें कुछ गलत नहीं है. बशर्ते उसके पीछे की नीयत में खोट न हो. 


फ्रांस में भी स्कूलों में हिजाब पर रोक है. इसे लेकर कुछ मुसलिम संगठनों-नेताओं ने खासा शोर मचाया था. इसे इसलाम विरोधी कहा गया. मगर सच यह है कि वहां ईसाई बच्चों के क्रास लटका कर या सिख बच्चों के पगड़ी बाँध कर आने पर भी रोक है. स्कूल में किसी बच्चे की धार्मिक पहचान उजागर न हो,  यह उस देश की मान्य नीति है. इसलिए वहां हिजाब पर रोक को धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं कहा जा सकता. फ्रांस की नीति तो प्रत्येक देश के लिए अनुकरणीय है.  लेकिन क्या कर्नाटक उसी आदर्श को अपना रहा है? 
मेरा जवाब है- नहीं. कर्नाटक सरकार और वहां सत्तारूढ़ भाजपा की नीयत में खोट है. इस संदेह की पुष्टि ‘द वायर’ की इस रिपोर्ट से भी होती है, जिसके मुताबिक बेंगलुरु के केएसआर रेलवे स्टेशन पर कुलियों के विश्राम के लिए बने पर इस्तेमाल में न आने वाले एक कमरे में लंबे समय से मुस्लिम श्रमिकों द्वारा नमाज़ पढ़ी जा रही थी. अब हिंदू जनजागृति समिति ने  इसे एक ‘साज़िश का हिस्सा’ और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया है.
कर्नाटक को दक्षिण भारत का  प्रवेश द्वार और अपने अश्वमेघ यज्ञ की प्रयोग भूमि बना रहा संघ परिवार वहां वही सारे हथकंडे अपना रहा है, जो वह हिंदी पट्टी में आजमा चुका है और अभी जिन राज्यों में चुनाव होने हैं, वहां धड़ल्ले से आजमा रहा है.
इसलिए हिजाब को महिला विरोधी माननेवालों से  निवेदन है कि इसे महज हिजाब के विरोध या ‘स्कूलों  में बच्चों की धार्मिक पहचान उजागर नहीं होनी चाहिए’  इस अन्यथा वाजिब तर्क  के रूप में न देख कर इसके पीछे की मंशा को समझिये. पर्दा प्रथा पर बहस होगी, तो तय है कि इन कथित हिजाब विरोधियों का तर्क बदल जायेगा.

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