डॉ. कफील खान की तत्काल रिहाई के आदेश
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिये आदेश, रासुका को अवैध ठहराया
डॉ. कफील खान को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमानत दे दी है।
डा कफ़ील खान गोरखपुर मेडिकल कालेज में कार्यरत थे.
उन्होंने अस्पताल में आक्सीजन गैस की कमी को उजागर किया था, जिससे योगी सरकार उनसे नाराज़ थी.
डॉ. कफील को तुरंत रिहा करने के भी आदेश दिए हैं और उन पर लगी रासुका को भी हटा दिया है।
अदालत ने कहा कि रासुका के तहत गिरफ्तारी अवैध है।
सीएए पर भड़काऊ बयान का आरोप था
डॉ. कफील को नागरिकता संशोधन कानून को लेकर भड़काऊ भाषण देने के आरोप में रासुका कानून के तहत गिरफ्तार किया गया था।
लेकिन कोर्ट ने कहा कि 13 दिसंबर, 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में दिया गया डॉ कफील खान का भाषण, जिसके कारण उन्हें गिरफ्तार किया गया और बाद में उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के कड़े प्रावधानों के तहत हिरासत में लिया गया, “नफरत या हिंसा को बढ़ावा देने के किसी भी प्रयास का खुलासा नहीं करता है।”
चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह की डिवीजन बेंच ने कहा कि प्रथम दृष्टया, वह भाषण ऐसा नहीं है कि एक तर्कसंगत व्यक्ति उस निष्कर्ष तक पहुंचेगा, जैसा कि जिला मजिस्ट्रेट, अलीगढ़ द्वारा निरोध के आदेश के तहत दिया गया है, जिन्होंने डॉ कफील के खिलाफ इस साल फरवरी में हिरासत का आदेश पारित किया था।
याचिका में डॉ. कफील की हिरासत को अवैध ठहराते हुए तुरंत रिहाई की मांग की गयी थी।
पीठ ने खान के भाषण को संपूर्णता में पढ़ने की बात कहते हुए कहा- “भाषणकर्ता ने निश्चित रूप से सरकार की नीतियों का विरोध किया और ऐसा करते हुए कई विशेष उदाहरण दिए हैं, हालांकि उनसे हिरासत की आशंका प्रकट नहीं होती है।
प्रथम दृष्टया, भाषण पूरा पढ़ने से घृणा या हिंसा को बढ़ावा देने के किसी भी प्रयास का खुलासा नहीं होता है।
इससे अलीगढ़ शहर की शांति के लिए भी खतरा नहीं है।
यह राष्ट्रीय अखंडता और भाषण नागरिकों के बीच एकता का आह्वान करता है।
यह भाषण किसी भी तरह की हिंसा का विरोध करता है।
ऐसा प्रतीत होता है कि जिला मजिस्ट्रेट ने भाषण के चयनात्मक हिस्सें को पढ़ा है और चयनात्मक हिस्से का उल्लेख किया है और भाषण के वास्तविक इरादे को नजरअंदाज किया है।
कोर्ट ने डॉ खान के खिलाफ एनएसए के आरोपों को रद्द कर दिया है.
दिनांक 13 फरवरी, 2020 को जिला मजिस्ट्रेट, अलीगढ़ द्वारा एनएसए अधिनियम के तहत पारित किए गए हिरासत के आदेश और उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा की गई पुष्टि को रद्द कर दिया है।
डॉ कफील खान को हिरासत में रखने की अवधि में किए गए विस्तार को भी अवैध घोषित किया गया है।
हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार यह स्थापित करने की अपने जिम्मेदारी का निर्वहन करने में विफल रहा है कि कफील खान के दिसंबर के भाषण का अलीगढ़ जिले की सार्वजनिक व्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ा और वह 13.02.2020 तक जारी रहा, जिससे आरोपी की निरोधात्मक नजरबंदी आवश्यक हो गई थी।
13 फरवरी को लगी थी रासुका
सीएए पर भड़काऊ बयानबाजी के आरोप में डीएम, अलीगढ़ ने 13 फरवरी 2020 को खान को रासुका में निरुद्ध करने का आदेश दिया था। यह अवधि दो बार बढ़ाई जा चुकी है।
हालांकि कफील खान को गोरखपुर के गुलहरिया थाने में दर्ज एक मुकदमे में 29 जनवरी 2020 को गिरफ्तार कर जेल भेजा जा चुका था। जेल में रहते हुए रासुका तामील कराया गया है।
याची ने डॉ. कफील खान की रासुका को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। कोर्ट ने हाईकोर्ट को मूल पत्रावली भेजते हुए तय करने का आदेश दिया है।
इस मामले में प्रदेश सरकार और याची के सीनियर वकील द्वारा पहले भी कई बार समय मांगा गया था।
कांग्रेस ने दी मुबारकबाद
डॉ. कफील खान की रिहाई के आदेश का स्वागत करते हुए उत्तर प्रदेश कांग्रेस अल्पसंख्यक मोर्चा के शाहनवाज आलम ने डॉ. कफील और उनके परिवार वालों को मुबारकबाद दी है.
जानकार लोगों का कहना है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ डा कफ़ील की गतिविधियों को नापसंद करते हैं.
इसीलिए उनके ख़िलाफ़ रासुका और अन्य मुक़दमे लगाए गए.
इसी कारण ड़ा.कफ़ील की रिहाई में भी देर हुई.