सियासी एजेण्डे में धमकी सेहत
डॉ. मत्स्येन्द्र प्रभाकर
बात सियासी हो, सामाजिक हो या कुछ और, हर बात के कम से कम दो पहलू होते हैं। इनमें एक अच्छा होता ही है। कोरोना वायरस का संक्रमण 10 महीने पहले चीन से शुरू हुआ था।
ज़ल्द ही महामारी के रूप में इसने दुनिया के बड़े हिस्से को चपेट में लिया। ‘कोविड-19’ बीमारी ने अधिक तेज़ी से देश-दुनिया में लाखों घर-परिवारों पर बुरा असर डाला।
नतीज़तन पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था डगमगा गयी। आज कोरोना की विभीषिका से संसार हलाकान है।
इससे उबरने के लिए विश्व व्यवस्थाओं को अपनी नीतियों में बड़े परिवर्तन करने पड़ रहे हैं और जीवन-व्यवहार के नये-नये आयाम गढ़े जा रहे हैं।
सम्पूर्ण संसार के एक बड़े चिन्तक वर्ग में जीवन की भागमभाग तथा भौतिकता के प्रति नये किस्म का आध्यात्मिक दर्शन चल पड़ा है।
इस बीच स्वदेश (भारत) में आश्चर्यजनक ढंग से कोरोना का अत्यन्त सकारात्मक असर देखने को मिला है। यह अलग बात है कि अभी अधिकतर लोग इसे समझ पाने में अस्मर्थ हैं।
यह है जन स्वास्थ्य का देश के राजनीतिक एजेण्डे में शामिल होना। देश के एक बड़े राज्य बिहार में चुनाव का दौर होने से अभी लोगों को भले यह ‘वोटखिंचवा’ या, चुनावी ज़ुमला लग रहा है लेकिन इसका प्रभाव देश के जन-जीवन और राजनीतिक दिशा-दशा पर निश्चित ही पड़ेगा।
अचानक उभरा यह मुद्दा भविष्य में ‘अच्छे बदलाव’ लाने का संकेतक माना जा सकता है।
लोकहित की नयी इबारत
बिहार में 28 अक्टूबर से 7 नवम्बर के बीच विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। इसके ठीक पहले 22 अक्टूबर को पटना में देश की वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का ‘दृष्टि-पत्र’ नामक ‘रोडमैप’ (घोषणा पत्र) ज़ारी करते हुए देश के इतिहास में नयी इबारत लिख दी। उन्होंने “5 सूत्र, 1 लक्ष्य, 11 संकल्प” विषयक घोषणा में कहा कि देश में जैसे ही कोरोना वैक्सीन का उत्पादन और उपलब्धता शुरू होगी, उनकी पार्टी बिहार के सभी लोगों को इसे मुफ़्त लगवाएगी। इस बयान को लेकर देश के समूचे राजनीतिक क्षेत्र सहित विभिन्न राज्यों और आम लोगों में प्रतिक्रियाएं शुरू हुई हैं। इससे यह तय है कि आने वाले समय में जनता की सेहत अर्थात्, जन स्वास्थ्य राजनीतिक दलों का मुख्य विषय होगा।
जनता भी हुई होशियार
आज भले इसका बहाना चुनाव और मक़सद लोगों के मत को अपनी ओर मोड़ने का प्रयास हो लेकिन इसका फ़ायदा तो जनता को ही मिलना तय है। न केवल भाजपा बल्कि किसी भी दल में अब यह हिम्मत नहीं होगी कि वह जनता की सेहत के मामले को नज़रअन्दाज़ कर सके। पार्टियों के हितों के दबाव में इसे तेज़ी से अपने कार्यक्रमों में शामिल करना विभिन्न सरकारों की बाध्यता होगी। उल्लेख्य है कि बहुतायत जनता अब अपने वोट का महत्त्व समझने लगी है, और वह ख़ुद उसे आकर्षित किये जाने के लिए उठाये जाने वाले मुद्दों पर मौन रूप में ही सही जमकर मोलतोल करने लगी है।
अमेरिका में उठा था जनस्वास्थ्य का मुद्दा
जनता की सेहत का राजनीतिक मुद्दा बनना भारत में संयोग है किन्तु अमेरिका को छोड़कर दुनिया के किसी देश के राजनीतिक दलों के विचारणीय मुद्दों में जन स्वास्थ्य कभी शुमार नहीं रहा। अमेरिका में अवश्य 33 साल पहले 1987 में तत्कालीन राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने ‘एड्स’ को “देश का सबसे बड़ा शत्रु” मानते हुए लोगों को एड्स के टीके शीघ्र उपलब्ध कराने का ऐलान किया था। अलबत्ता, एड्स का टीका आज तक विकसित नहीं हो सका। एड्स ही क्या ‘इबोला’ समेत तमाम बीमारियों के टीके अभी तक विकसित होने की ही बाट जोह रहे हैं।
राजनीतिक नारे ही बने हकीक़त
खैर, भारत में शुरू से राजनीतिक नारों पर ही चुनाव होते आये हैं। आज़ादी का ज़ोश और ‘स्वतंत्र भारत के निर्माण’ का उत्साह समाप्त होने के बाद 1970 के दशक में ‘गरीबी हटाओ’ तथा बाद में 1970-80 के दशक में “रोटी, कपड़ा और मकान” जैसे नारे आये। नतीज़तन आज भुखमरी अमूमन खत्म है। प्राय: लोगों के पास तन ढकने के लिए पर्याप्त कपड़े हैं, भले ही वे लोगों के द्वारा दिये गये पुराने वस्त्र ही क्यों न हों और अधिकतर लोगों को कमोवेश छत उपलब्ध हो चुकी है। यह इसीलिए हुआ क्योंकि यहाँ सियासत में जनता के व्यापक हितों से जुड़े जो मुद्दे चुनावी काल में नारे बनकर आते हैं, देर-सवेर उन पर अमल हुआ है।
स्वास्थ्य पर टिकेंगे अनेक सरोकार
बहरहाल, जबकि देश-दुनिया में कोरोना की वैक्सीन सामान्यतया ‘ट्रायल’ के दौर में है, इसकी उपलब्धता कैसे होगी? इस सवाल को लेकर सियासी क्षेत्र में अनेक लोग भाजपा और वित्तमंत्री के बयान का मखौल उड़ा रहे हैं तो कोई इसे ज़ुमलेबाज़ी करार दे रहा है। लेकिन अधिकतर राजनीतिक नेताओं में अब इस मुद्दे को लेकर बेचैनी है। यह भी एक कारण है जिससे नासमझ लोग वितमंत्री की घोषणा को ज़ुमला बता रहे हैं लेकिन आन्ध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश की सरकारों ने जिस तरह अपने यहाँ भी लोगों को कोरोना वैक्सीन मुफ़्त देने की घोषणा वित्तमंत्री की घोषणा के दिन ही की है उससे तय है कि इसके ज़रिये लोगों का स्वास्थ्य अब राजनीतिक दलों के सोच-विचार का मुख्य विषय होगा। यह होना भी चाहिए क्योंकि कोरोना की चुनौतियों ने यह तो दिखा ही दिया है कि अब मानव जीवन के अनेक सरोकारों तथा व्यापार के जन-संसाधनों का मानक लोगों का स्वास्थ्य ही बनेगा।