युग पुरुष गुरू गोविंद सिंह
गुरु गोबिन्द सिंह एक ऐसे परमवीर और महाप्रतापी महापुरुष के रूप में जाने जाते हैं, जिन्होंने उन आततायियों व अत्याचारियों के विरुद्ध धर्मयुद्ध किए, जो कट्टरवादी और धर्मान्ध थे; अपने धर्म सम्प्रदाय को अपनी ढाल बनाकर घोर जन शोषण कर रहे थे I वे एक ऐसे महानायक के रूप में भी भारतवासियों के आदरणीय हैं, जो विशुद्धतः सर्वकल्याण को समर्पित भारतीय मार्ग –हिन्दुस्तान की समावेशी एवं विकासोन्मुख संस्कृति की रक्षा के लिए बड़े-से-बड़ा बलिदान करने के लिए जीवन भर डटे रहे I स्वामी विवेकानन्द ने, इसीलिए, उनके लिए कहा है, “गुरुगोबिन्द सिंह जैसा महापुरुष न तो (संसार में)कभी उत्पन्न हुआ, नही उत्पन्नहोगा I”
गुरु गोबिन्द सिंह एक उत्कृष्ट समाज सुधारक थे I उन्होंने सामाजिक-धार्मिक रूढ़ियों की आलोचना की I उनका निरन्तर व सक्रिय विरोध किया। दुर्बलों व असहायों की रक्षा के साथ ही मानव-सेवा को अपना परम कर्तव्य –धर्म बनाने का लोगों का आह्वान किया I देश के मूल सांस्कृतिक मूल्यों –भारतीयता की रक्षा के लिए उन्होंने वह सब कुछ करने का भरसक प्रयास किया, जो उस समय वांछित था I इस सम्बन्ध में, स्वयं अपने जीवन और कार्यों से एक-से-बढ़कर-एक उदाहरण उन्होंने प्रस्तुत किया I गुरु गोबिन्द सिंह के लिए, इसीलिए, सरदार वल्लभभाई पटेल ने कहा है, “गुरुगोबिन्दसिंहनेआक्रान्ताओंकेअत्याचारोंकेविरुद्धजीवनभरसक्रियसंघर्षकिया I भारतीयसंस्कृतिऔरमूल्योंकीरक्षाकेलिएवेआन्तरिकवबाह्य, दोनों, शत्रुओंसेलड़े I इसरूपमेंउनकेजैसामहापुरुषइतिहासमेंविरलेहीमिलेगा I”
गुरु गोबिन्द सिंह के जीवन का एक और महत्त्वपूर्ण पहलू भी था, जिसके सम्बन्ध में कम-से-कम वर्तमान पीढ़ी तो लगभग न के बराबर ही जानती है I उन्होंने वर्ष 1699 ईसवीं में पाँच प्यारों (दयाराम खत्री निवासी लाहौर, धर्मदास जाट निवासी मेरठ, मोहकमचन्द दर्जी निवासी द्वारका, हिम्मतराय भिश्ती निवासी जगन्नाथपुरी और साहेबचन्द नाई निवासी बीदर) के साथ आनन्दपुर साहेब में खालसा की स्थापना की I खालसा की स्थापना का उद्देश्य लोगों की अत्याचारों से रक्षा करना, व उन्हें पूर्णतः भयमुक्त करना था I अन्ततः जन-सुरक्षा के साथ ही अत्याचारियों, आक्रान्ताओं, आततायियों, कट्टरपंथियों व धर्मांधों से लोगों के विश्वास और भारतीय मूल्यों की रक्षा करना था I
गुरु गोबिन्द सिंह द्वारा स्थापित खालसा के मूल में निम्नलिखित बातें बहुत ही महत्त्वपूर्ण थीं, जिन्हें हम सभी को जानना चाहिए:
1-जाति-वर्ग के भेदभाव को पूर्णतः नकारकर समाज में समानता स्थापित करना खालसा का प्रथम उद्देश्य था I खालसा की स्थापना के समय उसमें सम्मिलित पाँच प्यारे विभिन्न वर्गों-जातियों का प्रतिनिधित्व करते थे I गुरु गोबिन्द सिंह ने समाज में निम्न-उच्च का कृत्रिम भेदभाव समाप्त कर समानता की सत्यता को केन्द्र में रखकर खालसा की स्थापना के माध्यम से एक अभूतपूर्व और ऐतिहासिक कार्य किया;
2-खालसा में सम्मिलित पाँच प्यारे उत्तर-दाक्षिण और पूरब-पश्चिम, देश के सभी भागों का प्रतिनिधित्व करते थे I इस प्रकार. खालसा विभिन्नता में एकता को समर्पित हिन्दुस्तान की सांस्कृतिक विरासत को प्रकट करता था I गुरु साहेब द्वारा गठित खालसा अद्वितीय था I वह, अपने उद्देश्य के अनुरूप, तत्काल जन-सुरक्षा और सेवा, भारतीय मूल्यों के संरक्षण के लिए कार्यों, मानव-समानता और भारत की सांस्कृतिक विरासत को प्रकट करते हुए, राष्ट्रीय एकता की नींव को सुदृढ़ करने वाला था I इस हेतु भविष्य के लिए मार्ग प्रशस्त करने वाला था I स्वयं संगठित भारत के निर्माता सरदार वल्लभभाई पटेल का गुरु गोबिन्द सिंह के सम्बन्ध में उद्धृत लघु वक्तव्य इस परिप्रेक्ष्य में भी देखना चाहिए; और
३-खालसा में विद्यमान गुरु-शिष्य समानता सामंजस्य का उत्कृष्ट उदाहरण था I किसी भी पक्ष की निरंकुशता को रोकने एवं लोकतान्त्रिक मूल्यों के पूर्ण आदर-सम्मान का परिचायक था I
गुरु गोबिन्द सिंह, श्रीगुरु नानकदेव द्वारा स्थापित सिक्ख परम्परा के अन्तिम गुरु थे I एकेश्वरवाद-केन्द्रित, समानता और वृहद् मानव-कल्याण के लिए श्रीगुरु नानकदेव द्वारा प्रारम्भ किए एक महान मिशन को पूर्णता प्रदान करने वाले थे I गुरु गोबिन्द सिंह परम विद्वान और एक श्रेष्ठ दार्शनिक भी थे I उनके विचारों में एकेश्वरवाद था I उनका जीवन और कार्य, किसी भी प्रकार के भेदभाव के बिना, मानव-प्रेम और सेवा को समर्पित थे I
गुरु गोबिन्द सिंह ने सुकर्मों को मानव-जीवन की सार्थकता का आधार माना। सुकर्मों को ही उन्होंने धर्म-पालन भी घोषित किया I उन्होंने कहा, “धर्मयुक्तकर्महीकरें, ताकिवृहद्जन–कल्याणकामार्गप्रशस्तहोसके I इसलिए, सदासुकर्मकरें, ताकिपुनःअन्धकारकासामनानकरनापड़े I पापकर्मोंमेंसदैवअक्रियहों I कर्म–फलइच्छाकात्यागकर (सुकर्मों में) सक्रियहों I लेने–देनेकीक्रिया–वासनामेंनिष्क्रियहों I देनेमेंसदैवहीउत्साहितरहें I भ्रमकोकर्मसेपृथकरखें I सुकर्मोंमेंशिथिलतानआनेदें I कर्मोंकोअधर्मसेदूररखें I सदैवपवित्रताऔरशक्तिकेसाथकर्मोंमेंसंलग्नरहें I कर्मोंकोईश्वर–भक्तिमानकरकरें I कर्म, ज्ञानसमझकरकरें I”
गुरु गोबिन्द सिंह ने मानव-प्रेम और सेवा को परम सत्य –ईश्वर-प्राप्ति का मार्ग घोषित किया I उन्होंने कहा:
“साचुकहोंसुनलेहुसभै/
जिनप्रेमकियोतिनहीप्रभपाइयो//”
अर्थात्, “मैंसचकहताहूँ, सभीसुनलें ! जो(मानव-प्रेम)करतेहैं, वेहीपरमात्माकोप्राप्तकरतेहैं I”
गुरु गोबिन्द सिंह ने अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में स्वयं मानव-प्रेम और जन-रक्षा का एक-से बढ़कर-दूसरा उदाहरण प्रस्तुत किया I धर्म-रक्षार्थ बड़े-से-बड़ा बलिदान किया I जो उनके प्रतिद्वन्द्वी थे; जिनके विरुद्ध उन्होंने लड़ाइयाँ लड़ीं, उनके प्रति भी उनका व्यवहार मानवता पूर्ण रहा I वे सदैव ही क्षमाशील और करुणामय रहे I
गुरु गोबिन्द सिंह परमवीर थे I अत्याचारों और अन्याय के विरुद्ध लड़ने वाले परम योद्धा थे I वे भारतीय संस्कृति के संरक्षक तथा धर्मरक्षक थे I वे, जैसा कि कहा है, एक परम विद्वान तथा उत्कृष्ट चिन्तक भी थे I वीरता और ज्ञान –विद्ववता का उनमें अद्वितीय संगम –संयोजन था I इन्हीं विशिष्टताओं के बल पर वे एक युगपुरुष के रूप में स्थापित हुए I वे एक महानतम भारतीय सिद्ध हुए I गुरु गोबिन्द सिंह आने वाली न जाने कितनी पीढ़ियों को अत्याचारों व अन्याय के विरुद्ध संघर्ष कर विजित होने व भारतीय संस्कृति, मानवीय मूल्यों और धर्मरक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान करने के लिए प्रेरित करते रहेंगे I
*पद्मश्रीऔरसरदारपटेलराष्ट्रीयपुरस्कारसेसम्मानितभारतीयशिक्षाशास्त्रीप्रोफेसरडॉ0 रवीन्द्रकुमारमेरठविश्वविद्यलय, मेरठ (उत्तरप्रदेश) केपूर्वकुलपतिहैं I