यह सुशासन के नाम पर मजाक है

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अम्बरीश कुमार

अंबरीश कुमार

नौतपा शुरू हो गया है .पच्चीस मई से नौ दिन देश तपेगा खासकर उत्तर भारत .और इसी नौतपा में तपेंगे देश के मजदूर .बिना खाना बिना पानी .सभी लोग दृश्य तो देख ही रहे हैं .स्टेशन पर पानी लूटा जा रहा है ,खाना लूटा जा रहा है .ऐसी लूट कभी देखी थी जब रोटी और पानी को लूटा जाए .यह जान बचाने की  लूट है .फिर भी लोग बच नहीं पाए .कई बेदम होकर रेल के डिब्बे में या प्लेटफार्म पर ही गुजर गए .

मुज़फ़्फ़रपुर प्लेटफ़ार्म पर मृत माँ और अबोध बालक

एक बच्चा मुजफ्फरपुर स्टेशन पर अपनी मां को उठा रहा था .उसे पानी चाहिए थे पर मां तो देह छोड़ कर जा चुकी थी .कई ऐसे विचलित करने वाले दृश्य देखने को मिल रहे हैं . निर्जला व्रत में भी लोग सुबह पानी पीते हैं और दिन में भी कुछ खा लेते हैं .पर ये मजदूर तो कई दिन बिना पानी के रेल में चलते रहे .

देश के विभिन्न हिस्सों से श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेन चल रही है .यह भी बड़े विवादों के बाद चली .और चली तो ऐसी चली कि ड्राइवर को भी नहीं पता किधर जाना है और न ही स्टेशन मास्टर को .न ही रेल मंत्री को पता है कि कौन सी रेल कब किस पटरी पर चली जाएगी .बिहार जाने वाली रेल कभी ओडिशा पहुंच जाती है तो गोरखपुर वाली रायपुर .ऐसा रेल के इतिहास में पहली बार हो रहा है .पर इससे भी ज्यादा दिक्कत नहीं थी .पर रास्ते में खाने पीने को तो दिया जा सकता था .यह जिम्मेदारी भारतीय रेल और केंद्र सरकार की थी जिसने इस समस्या से ही अपना हाथ झाड़ रखा है .ताली थाली बजाने वाले मिडिल क्लास के लिए मजदूर का कोई अर्थ ही नहीं है .उनसे किसी तरह की संवेदना की क्या उम्मीद करें .

सरकार को तो खैर यह बहुत देर से पता चला कि विभिन्न महानगरों में मजदूर भी रहता है जो महीने भर काम बंद होने के बाद भुखमरी की स्थिति में आ जाएगा .वह कोरोना से पहले भूख से मर जाएगा .और हुआ भी भी वही है .महानगरों से गांव लौटते हुए बहुत से मजदूर ,उनके घर वाले रास्ते में ही गुजर गए .रास्ते भी तो जगह जगह बंद कर दिए गए .राज्यों की सीमा तक सील हैं मानो वे किसी और देश से आ रहे हों .

ऐसे में रेल चली भी तो बहुत देर से .जब मौसम बदल चुका था .भीषण गर्मी पड़ने लगी थी .मार्च अंत से अप्रैल मध्य तक यह समस्या नहीं होती पर उस समय को तो बेवजह जाने दिया गया .कोरोना को हारने के तरह तरह के टोटके भी बताए गए .पर जब ट्रेन देर से ही शुरू की गई तो तो इंतजाम तो होना चाहिए था .

कोई भी कितना खाना पानी लेकर चलता .एक दो दिन का .पर ट्रेन तो भारत भ्रमण पर निकल गई .किसी को पता नहीं कौन सी ट्रेन कब चलेगी ,कब जंगल में खड़ी हो जाएगी या कब वह उल्टी दिशा में चलने लगेगी .ऐसे में पांच दिन से भी ज्यादा बहुत सी ट्रेन चली .इसमें बैठे मजदूरों के बारे में किसी ने नहीं सोचा कि उनका परिवार किन हालात में होगा .

स्टेशन पर खाने पीने से लेकर चाय आदि की दूकाने भी बंद चल रही है .उन्हें कैसे खाने को कुछ मिलता .रेल मंत्रालय के अफसरों को इसका इंतजाम नहीं करना चाहिए थे?

क्या इन मजदूरों को वातानुकूलित गरीब रथ से नहीं भेजा जा सकता था जिससे बहुत से मजदूरों की तबियत नहीं बिगड़ती और वे अपने घर पहुंच जाते .

यह सारा मामला बदइंतजामी का है ,सरकार की लापरवाही का है .अफसरों की कोताही का है .यह कौन अफसर नहीं जानता होगा कि जो भी इन ट्रेन से चल रहा है उसे लाकडाउन के इस दौर में खाने पीने को स्टेशन पर कुछ नहीं मिलेगा .

दाना पानी के लिए बढ़े हाथ

ऐसे में हर ट्रेन के हिसाब से खाने पीने का इंतजाम होना चाहिए था जो रेलवे ने नहीं किया .जो इंतजाम रेलवे ने किया वह सभी मुसाफिरों के लिए पर्याप्त नहीं था .एक से डेढ़ पैकेट खाने का और ट्रेन घुमा दी पांच दिन तक .ऐसे गैर जिम्मेदार अफसरों की पहचान की जानी चाहिए .उन्हें इस आपराधिक लापरवाही के लिए दंडित किया जाना चाहिए .

यह सुशासन के नाम पर मजाक है .कभी गर्मी में जनरल डिब्बे में दस घंटे सफ़र कर देखें .खासकर इस नौतपा में .समझ में आ जाएगा कितनी बेरहमी की गई है मजदूरों के साथ .उनके छोटे छोटे बच्चों के साथ .

एक रेल मंत्री थे लाल बहादुर शास्त्री जिन्होंने एक दुर्घटना पर अपने पद से इस्तीफा दे दिया था .यहां तो मामला लाखों मजदूरों को कई दिन इस नौतपा में तपाने का है .भूखे प्यासे रख कर उनके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने का है .और कई लोगों के मरने का है .कौन लेगा इसकी जिम्मेदारी ?

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