लड़कियों की शादी की उम्र हुई 21 साल, क्यों थी इसकी जरूरत?
आपको जानकर हैरानी होगी कि बाल विवाह से देश को 3.49 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होता है. देश में अभी भी 23.3 फीसदी महिलाओं की शादी 18 से कम उम्र में होती है. 15 से 19 साल के बीच में 6.8 फीसदी महिलाएं या तो गर्भवती हैं या मां बन चुकी हैं. बाल विवाह रोकने के अलावा लड़कियों का स्कूल ड्रॉप आउट रेट भी कम होगा क्योंकि अभी कम उम्र में शादी की वजह से लड़कियों को स्कूल छोड़ना पड़ता है.
लड़कियों की शादी की उम्र 21 साल करने पर किसने क्या कहा
अब देश में बेटियों की शादी की उम्र 18 नहीं, बढ़ाकर 21 साल कर दी गई है. सूत्रों के मुताबिक, इस प्रस्ताव को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है. इसके लिए सरकार मौजूदा कानूनों में संशोधन करेगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2020 को लाल किले से अपने संबोधन में इसका उल्लेख किया था. उन्होंने कहा था कि बेटियों को कुपोषण से बचाने के लिए जरूरी है कि उनकी शादी उचित समय पर हो. कैबिनेट ने बुधवार को लड़कियों की शादी की उम्र को 18 से बढ़ाकर 21 करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी. नरेंद्र मोदी सरकार के इस फैसले से भारत में महिला और पुरुषों की शादी की उम्र एकसमान हो जाएगी.
मीडिया स्वराज डेस्क
सरकार मौजूदा कानून में संशोधन कर लड़कियों की शादी की उम्र को बढ़ाने जा रही है. इसके लिए सरकार ने जून 2020 में जया जेटली की अध्यक्षता में एक टास्क फोर्स का गठन किया था जिसमें नीति आयोग के सदस्य डॉ वीके पॉल भी शामिल थे. रिपोर्ट्स के मुताबिक, टास्क फोर्स ने पिछले महीने ही प्रधानमंत्री कार्यालय और महिला व बाल विकास मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट सौंपी है.
क्या सुझाव दिया टास्क फोर्स ने
अपनी रिपोर्ट में समिति ने शादी की उम्र 21 साल करने का सुझाव देशभर के 16 विश्वविद्यालयों के युवाओं के फीडबैक के आधार पर दिया है. 15 एनजीओ को देश के दूर-दराज इलाकों और हाशिए पर रहने वाले समुदाय के युवाओं तक पहुंचने के काम में लगाया गया था. टास्क फोर्स के सदस्यों ने बताया कि सभी धर्मों से संबंध रखने वाले युवाओं से फीडबैक लिया गया है जिसमें ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के युवा बराबर संख्या में शामिल थे.
बाल विवाह से कितना नुकसान?
आपको जानकर हैरानी होगी कि बाल विवाह से देश को 3.49 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होता है. देश में अभी भी 23.3 फीसदी महिलाओं की शादी 18 से कम उम्र में होती है. 15 से 19 साल के बीच में 6.8 फीसदी महिलाएं या तो गर्भवती हैं या मां बन चुकी हैं. बाल विवाह रोकने के अलावा लड़कियों का स्कूल ड्रॉप आउट रेट भी कम होगा क्योंकि अभी कम उम्र में शादी की वजह से लड़कियों को स्कूल छोड़ना पड़ता है.
एक आंकड़े के अनुसार, क्लास 1 से 5वीं तक सिर्फ 1.2 फीसदी लड़कियां स्कूल छोड़ती हैं. कक्षा 6 से 8वीं तक ये स्कूल छोड़ने वाली लड़कियां 2.6 फीसदी हैं. जबकि 9वीं से 10 तक स्कूल छोड़ने वाली लड़कियों की संख्या 15.1 फीसदी है.
महिला अधिकार एक्टिविस्ट रंजना कुमारी का कहना है कि शादी की उम्र बढ़ने से लड़कियां कम से कम अपनी पढ़ाई पूरी कर पाएंगी. कोई मतलब नहीं है, उस तरह की पढ़ाई का. बीए, एमए पास करेंगी. अपने पैर पर खड़ी हो जाएंगी. अपना परिवार अच्छा चला सकती हैं और अपने बारे में अच्छा फैसला कर सकती हैं. बहुत कम उम्र में लड़कियां मां बनती हैं.
महिला सांसदों ने सरकार के फैसले का किया स्वागत
सरकार के इस फैसले का महिला सांसदों ने भी स्वागत किया है. बीजेपी सांसद रीता बहुगुणा जोशी ने कहा, ‘टेंडेंसी होती है कि 16 की हो गई, लड़का खोजना शुरू कर दो. तो लड़की पढ़ नहीं पाती है. शिक्षित परिवार लड़कियों को पढ़ा रहे हैं. तो 24-25 एज हो गई है. ये स्वागत योग्य कदम है. उम्र ठीक होगी, तो स्वास्थ्य भी ठीक होगा. बीजेपी सांसद रमा देवी ने कहा, ‘सब स्वावलंबी बनें, अपने पैर पर खड़ी हों. पढ़ाई लिखाई करके शादी करें. वही झगड़ा, वही झंझट, वही तिलक दहेज लेना. अपने पैर पर खड़ी होंगी, तो उनके बाल बच्चे भी पढ़ेंगे लिखेंगे.’
क्या बीजेपी को यूपी के चुनाव में मिलेगा फायदा?
जानकार ये भी मानते हैं कि इससे बीजेपी को उत्तर प्रदेश के चुनावों में फायदा मिल सकता है. वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्रा का कहना है कि वोट बैंक अच्छा बने या ना बने लेकिन आधी आबादी में खुशी की लहर तो होगी ही. आधी आबादी में अपनी प्रेजेंस भारतीय जनता पार्टी ने एक नए ढंग से फिर से करा ली है. यूपी में चुनाव नजदीक हैं, इसलिए फायदे की बात की जा रही है लेकिन हकीकत ये है कि ये सभी के फायदे का फैसला है.
क्या कहता है मौजूदा कानून
मौजूदा कानून के मुताबिक, देश में पुरुषों की विवाह की न्यूनतम उम्र 21 और महिलाओं की 18 साल है. अब सरकार बाल विवाह निषेध कानून, स्पेशल मैरिज एक्ट और हिंदू मैरिज एक्ट में संशोधन करेगी. नीति आयोग में जया जेटली की अध्यक्षता में बने टास्क फोर्स ने इसकी सिफारिश की थी.
नीति आयोग के सदस्य डॉक्टर वीके पॉल भी इस टास्क फोर्स के सदस्य थे. इनके अलावा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, महिला तथा बाल विकास, उच्च शिक्षा, स्कूल शिक्षा तथा साक्षरता मिशन और न्याय तथा कानून मंत्रालय के विधेयक विभाग के सचिव टास्क फोर्स के सदस्य थे.
टास्क फोर्स का गठन पिछले साल जून में किया गया था और पिछले साल दिसंबर में ही इसने अपनी रिपोर्ट दी थी. टास्क फोर्स का कहना था कि पहले बच्चे को जन्म देते समय बेटियों की उम्र 21 साल होनी चाहिए. विवाह में देरी का परिवारों, महिलाओं, बच्चों और समाज के आर्थिक, सामाजिक और स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
कानून के हिसाब से क्या उम्र है?
इंडियन क्रिश्चियन मैरिज एक्ट 1872, पारसी मैरिज एंड डिवोर्स एक्ट 1936, स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 और हिन्दू मैरिज एक्ट 1955, सभी के अनुसार शादी करने के लिए लड़के की उम्र 21 वर्ष और लड़की की 18 वर्ष होनी चाहिए. इसमें धर्म के हिसाब से कोई बदलाव या छूट नहीं दी गई है.
फिलहाल बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 लागू है. जिसके मुताबिक़ 21 से कम उम्र के लड़के और 18 साल से कम उम्र की लड़की की शादी को बाल विवाह माना जाएगा. ऐसा करने और करवाने पर 2 साल की जेल और एक लाख तक का जुर्माना हो सकता है.
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो ने की घोषणा
रिपोर्ट में कहा गया है कि शादी में देरी का परिवारों, महिलाओं, बच्चों और समाज के लिए सकारात्मक आर्थिक और सामाजिक प्रभाव पड़ता है. शादी की उम्र बढ़ाने से महिलाओं की सेहत पर भी सकारात्मक असर पड़ेगा. रिपोर्ट में यह सुझाव दिया गया है कि शादी की उम्र को बढ़ाकर 18 से 21 किया जाए लेकिन एक चरणबद्ध तरीके से. इसका मतलब ये है कि राज्यों को पूरी आजादी और समय दिया जाए जिससे वो जमीनी तौर पर काम कर सकें क्योंकि इस कानून को एक रात में लागू नहीं किया जा सकता.
समिति ने सुझाव दिया है कि सरकार लड़कियों के लिए स्कूल और कॉलेज की संख्या बढ़ाए और दूर-दराज के इलाकों में लड़कियों के स्कूल तक पहुंचने की भी व्यवस्था करे. लड़कियों को स्किल और बिजनेस ट्रेनिंग के साथ-साथ सेक्स एजुकेशन देने का भी सुझाव दिया गया है. रिपोर्ट में शादी की उम्र बढ़ाने को लेकर जागरुकता अभियान चलाने को भी कहा गया है.
15 अगस्त 2020 को पीएम मोदी ने क्या कहा था
पिछले साल 15 अगस्त को देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि लड़कियों की शादी की उम्र को लेकर सरकार समीक्षा कर रही है. उन्होंने कहा कि लड़कियों की शादी की सही उम्र क्या हो, इसके लिए कमेटी बनाई गई है, उसकी रिपोर्ट आते ही बेटियों की शादी की उम्र को लेकर उचित फैसला लिया जाएगा. अब सरकार लड़कियों के लिए इस सीमा को बढ़ाकर 21 साल करने पर विचार कर रही है. सांसद जया जेटली की अध्यक्षता में 10 सदस्यों की टास्क फ़ोर्स का गठन किया गया है, जो इस पर अपने सुझाव जल्द ही देगी.
दरअसल, बेटियों की शादी की उम्र को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने एक याचिका दायर की थी. उन्होंने कहा था कि लड़कियों और लड़कों की शादी की उम्र का कानूनी अंतर खत्म किया जाए. इस याचिका पर जब केंद्र सरकार से जवाब मांगा गया तो केंद्र ने बताया था कि इस मामले पर एक टास्ट फोर्स का गठन किया गया है.
सरकार ने क्यों लिया शादी की उम्र बढ़ाने का फैसला?
नरेंद्र मोदी सरकार ने कई कारणों से शादी की उम्र को बढ़ाने का फैसला किया जिसमें लिंग-समानता भी शामिल है. जल्दी शादी और कम उम्र में कई बार प्रेग्नेंसी से महिला और उसके बच्चे, दोनों के पोषण, संपूर्ण स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य पर असर होता है. कम उम्र में शादी का असर शिशु मृत्यु-दर, मातृ मृत्यु-दर और महिला सशक्तिकरण पर पड़ता है क्योंकि जल्दी शादी होने से लड़कियों को शिक्षा और आजीविका का अवसर नहीं मिल पाता. इस कदम से बाल-विवाह को भी हतोत्साहित किया जा सकेगा.
लड़कियों की शादी की उम्र पर लंबे समय से बहस होती रही है
भारत में लड़कियों की शादी की उम्र को लेकर काफी लंबे समय से बहस होती रही है. बाल विवाह जैसी प्रथा पर रोक के लिए आजादी के पहले भी कई बार लड़कियों की शादी की उम्र को लेकर बदलाव किया गया. दरअसल, आजादी के पहले लड़कियों की शादी की उम्र को लेकर अलग-अलग न्यूनतम आयु तय की गई थी लेकिन कोई ठोस कानून न होने से 1927 में शिक्षाविद्, न्यायाधीश, राजनेता और समाज सुधारक राय साहेब हरबिलास सारदा ने बाल विवाह रोकथाम के लिए एक विधेयक पेश किया. विधेयक में शादी के लिए लड़कों की उम्र 18 और लड़कियों के लिए 14 साल करने का प्रस्ताव था. 1929 में यह कानून बना, जिसे सारदा एक्ट के नाम से जाना जाता है. 1978 में इस कानून में संसोधन हुआ और लड़कों की शादी की न्यूनतम उम्र 21 और लड़कियों के लिए 18 साल कर दी गई. 2006 में बाल विवाह रोकथाम कानून लाया गया.
क्या कहते हैं लोग
हाल ही में जारी हुए नेशनल फैमिली हेल्थ (एनएफएचएस) सर्वे के मुताबिक, भारत में साल 2015-16 में बाल विवाह की दर 27 फीसदी थी जो साल 2019-20 में कम होकर 23 फीसदी हुई है. हालांकि, सरकार देश में बाल विवाह की दर को और नीचे ले जाना चाहती है. शादी की उम्र बढ़ाने को लेकर एक वर्ग कर रहा सरकार की आलोचना एक तरफ जहां शादी की उम्र को बढ़ाने का समर्थन किया जा रहा है, वहीं एक वर्ग इसकी आलोचना कर रहा है.
महिला व बाल अधिकार कार्यकर्ता, परिवार नियोजन के विशेषज्ञ समेत कई लोगों का मानना है कि ऐसे कानून से जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा गैर-कानूनी रूप से शादी करने पर मजबूर होगा. उनका मानना है कि महिलाओं के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 18 होने के बावजूद भी भारत में बाल-विवाह हो रहे हैं. और अगर बाल-विवाह में कमी आई है तो उसका कारण मौजूदा कानून नहीं बल्कि लड़कियों की शिक्षा और रोजगार के अवसरों में बढ़ोतरी है.
उनका कहना है कि कानून हाशिए के समुदायों पर बुरा प्रभाव डालेगा और अनुसूचित-जाति, अनुसूचित-जनजाति इस कानून को तोड़ने के लिए बाध्य होंगे. सोशल मीडिया पर भी कुछ लोग इस पक्ष में नहीं हैं कि लड़कियों के शादी की उम्र बढ़ाई जाए.
आईपीएस एम नागेश्वर राव ने ट्विटर पर लिखा, ‘एक 18 साल की महिला वोट कर देश चलाने के लिए सरकार चुन सकती है लेकिन अपने ही जिंदगी के बारे में फैसला नहीं ले सकती कि उसे कब शादी करना है. तो फिर हम मतदान की उम्र को 18 से बढ़ाकर 21 क्यों नहीं कर देते जिसे राजीव गांधी ने कम किया था?’
एक यूजर ने ट्वीट किया, ‘शादी की उम्र बढ़ाकर 21 कर देना पेपर पर देखने में अच्छा लग रहा है लेकिन हमें बाल-विवाह रोकने के लिए बड़े कदम उठाने होंगे क्योंकि भारत में अभी भी 23 प्रतिशत विवाह बाल्यावस्था में ही हो जाते हैं.’
बिहार जैसे राज्य में क्या कहते हैं हालात?
केंद्रीय कैबिनेट ने आज भले ही लड़कियों की शादी की आयु सीमा 21 साल करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है, लेकिन बिहार जैसे राज्य में जहां अभी भी बाल विवाह के मामले सामने आते रहते हैं, वहां जमीन पर इसे उतारने के लिये काफी मशक्कत करनी होगी. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS)-4 यानी वर्ष 2015-16 में जहां बिहार की 42.5 प्रतिशत बेटियों की शादी 18 साल से कम उम्र में हुई, वहीं NHFS-5 यानी साल 2019-20 में बिहार की बेटियों की नाबालिग उम्र में शादी करने का प्रतिशत घटकर 40.8 पर आ गया. कम उम्र में शादी का संबंध कम उम्र में मां बनने से भी है.
वर्ष 2015-16 में हुए सर्वे के दौरान 15 से 19 साल की 12.2 प्रतिशत महिलाएं गर्भवती मिली थीं. वहीं वर्ष 2019-20 में हुए सर्वे में इस उम्र की 11 प्रतिशत महिलाएं गर्भवती पाई गईं. इसमें और अधिक सुधार की जरूरत है.
बिहार जैसे राज्य में क्या कहती हैं महिला नेत्री
शादी की उम्र 18 साल से 21 साल करने पर क्या स्थिति में सुधार होगा? यह सवाल पूछने पर बिहार जैसे राज्य, जहां सबसे ज्यादा बाल विवाह के मामले सामने आते हैं, में अलग अलग पार्टियों से जुड़ी महिला नेत्रियों ने क्या कहा, आइए जानते हैं…
RJD ने शादी की उम्र बढ़ाने को अच्छा कहा
RJD की प्रवक्ता रितु जायसवाल कहती हैं कि यह अच्छा फैसला है. मेच्योर उम्र में शादी से कई बातों की समझदारी लड़कियों में आएगी. वे ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर पाएंगीं. लेकिन रितु यह भी कहती हैं कि पॉलिसी तो सरकार बना देती है पर उसे लागू कराने में फेल्योर है. पहले शादी की उम्र 18 साल थी. लेकिन, बाल विवाह पर पूर्ण रोक नहीं लग पाई. पिता की संपत्ति में बेटियों को हिस्सा देने की बात हुई पर वह भी जमीन पर नहीं है.
सरकार ने शराबबंदी लागू किया पर वह फेल्योर है. सरकार को कानून को लागू करने पर ईमानदारी से फोकस करना चाहिए. RJD की महिला प्रकोष्ठ की अध्यक्ष उर्मिला ठाकुर कहती हैं कि शादी की उम्र सरकार ने बढ़ाई है लेकिन, सरकार लड़कियों की सुरक्षा ही सुनिश्चित नहीं कर पा रही है. घर में घुस कर गैंगरेप हो रहा है.
कांग्रेस ने कहा- लड़कियां सुरक्षित रहेंगी तभी न शादी करेंगी
कांग्रेस महिला प्रकोष्ठ की अध्यक्ष अमिता भूषण कहती हैं कि लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाकर 21 कर सरकार मूल मुद्दे से भटका रही है. महिलाओं की सुरक्षा का सवाल अभी भी सबसे बड़ा सवाल है. हर लड़की आज अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती है. सरकार किसी भी योजना का कार्यान्वयन ठीक से नहीं करवा पा रही है.
बिहार में महिलाओं को 35 फीसदी आरक्षण नौकरियों में है पर यह ठीक से लागू नहीं हो पा रहा है. कहती हैं कि बच्चियां सुरक्षित ही नहीं रहेंगी तो शादी कैसे करेंगी. अब परिवार फैसला लेने के लिए सक्षम है इसलिए सरकार को लड़कियों की सुरक्षा, उनकी पढ़ाई, स्वास्थ्य पर फोकस करना चाहिए.
BJP ने कहा- महिला सुरक्षा में काफी सुधार, अब मातृ मृत्यु दर में भी कमी आएगी
BJP में महिला प्रकोष्ठ की अध्यक्ष लाजवंती झा कहती हैं कि लड़कियों की शादी की उम्र को 21 साल करना बड़ा कदम है. महिला सुरक्षा की स्थिति भी पहले से काफी बदली है. पहले 1000 पुरुष पर 940 महिलाएं थीं, अब 1000 पुरुष पर 1020 महिलाएं हैं. यह इस बात का संकेत है कि बच्चियों के प्रति समाज-परिवार की सोच बदल गई है. लड़कियों की शादी की उम्र 21 साल करने से उनकी पढ़ाई-लिखाई ठीक से हो सकेगी. उनके स्वास्थ्य पर भी अच्छा असर पड़ेगा. मातृ मृत्यु दर घटेगी.
JDU ने कहा- विपक्ष का जब राज था तब FIR भी नहीं होती थी, अब महिला सशक्तिकरण तेज होगा
JDU की प्रवक्ता सुहेली मेहता कहती हैं कि लड़कियों की उम्र 21 साल करने से कई तरह की स्थितियां बदलेंगी. इससे उन्हें शिक्षा और ज्यादा मिल सकेगा. सरकार ने भी महिलाओं की शिक्षा पर काफी फोकस किया और नौकरियों में भी उन्हें आगे बढ़ने के अवसर हैं.
21 साल में शादी होगी तो लड़कियां शारीरिक रूप से मजबूत हो सकेंगी. बच्चे भी सही समय पर होंगे. महिलाओं का सशक्तिकरण होगा. उन्होंने विपक्ष के आरोप पर कहा कि जब विपक्ष का शासन था, उस समय तो महिला उत्पीड़न से जुड़ा एफआईआर भी नहीं हो पाता था. अब तो महिलाएं खुल कर बोल रही हैं.
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