गांधी युग : इतिहास की गवाही देती एक डायरी: हस्ताक्षर और संदेश

-अखिलेश झा

भारत के कई हिस्सों में नव वर्ष का आरम्भ दीपावली से होता है। कार्तिक माह को पुण्यतम माह कहा जाता है और साल उसी से शुरू होता है। विशेषकर पश्चिमी भारत में। पारम्परिक व्यवसायी समाज में भी दीपावली पर पुराना हिसाब बराबर कर, हिसाब की नई किताब शुरू की जाती थी। कई घरानों में यह सिलसिला अब भी जारी है। 

नए साल में नए युग की शुरुआत भी हो जाए, तो इससे बेहतर क्या हो सकता है! साल 1929 में लाहौर काँग्रेस में भारत पूर्ण स्वराज की घोषणा करेगा, यह गाँधीजी की सहमति से तय हो गया था। दीपावली के आसपास ही। इसकी घोषणा अवश्य दिसम्बर में हुई। यह एक युगान्तकारी घटना थी और नए युग के उन्मेष की घोषणा भी। इस नए युग का नाम क्या हो? संभवतः अधिकांश लोगों के मन में यह प्रश्न या विचार भी न आया हो। परन्तु, कुछ लोगों ने इसे गाँधी-युग के आरम्भ के रूप में देखा। साल 1930 की दीपावली को -21 अक्टूबर को गाँधी-युग के पहले साल का अन्त हुआ और दूसरे साल की शुरुआत हुई। 

कार्तिक महीने से -22 अक्टूबर, 1930 से गाँधी युग के दूसरे साल का आरम्भ हो रहा था। इस नए साल पर बम्बई से एक बड़ी कलात्मक, विचारपूर्ण और गाँधीजी के सुभाषित वचनों से परिपूर्ण डायरी निकली। पॉकेट साइज से थोड़ी बड़ी। डायरी का शीर्षक था- Mahatma Gandhi Era Diary. उसपर गाँधी-युग का दूसरा साल मुद्रित था। सजिल्द डायरी की जिल्द खादी से बनी थी और उसपर भारत का उस समय का चरखे वाला तिरंगा था, जिसमें सफेद पट्टी सबसे ऊपर थी, उसके बाद हरी पट्टी और नीचे लाल पट्टी। चरखा, सूत और कपास का रेखाचित्र तीनों पट्टियों के क्षेत्र में फैला हुआ था। डायरी के आवरण पर ऊपर ‘सत्य’ और ‘प्रेम’ लिखा था और झंडे के नीचे ‘विजय’। गाँधीजी के विचारों के अनुरूप डायरी में सरलता-सादगी थी और वह बहुत काम की भी थी। डायरी के हर पन्ने पर गाँधीजी के वचन उद्धृत थे। इस डायरी में तिथियाँ विक्रम और शक संवत् के साथ-साथ हिजरी संवत्, पारसी संवत् के साथ-साथ रोमन संवत् की तिथियाँ भी दी गई थीं।

इस डायरी की संकल्पना की और उसे मुद्रित करवाया था बम्बई के मशहूर वकील श्री नयन एच. पाण्ड्या ने। इस डायरी का मूल्य रखा गया था एक रुपया। मुझे जो उस डायरी की प्रति मिली, उसमें तत्कालीन कई स्वतंत्रता-सेनानियों के हस्ताक्षर थे, उनके संदेश थे, जिनमें खान अब्दुल ग़फ्फार खान, सरोजिनी नायडू, सुभाष चन्द्र बोस और आसफ अली के नाम प्रमुख हैं। डायरी के अधिकांश पन्ने खाली हैं, परन्तु उनमें इतिहास भरा पड़ा है, समय की छाप पड़ी हुई है।

1. गाँधी-युग की औपचारिक शुरुआत: दीपावली और पूर्ण स्वराज की घोषणा

2. 1930 की दीपावली: गाँधी-युग के दूसरे वर्ष का आरम्भ

3. ‘गाँधी युग डायरी’: खादी, चरखा और सत्य-प्रेम-विजय का प्रतीक

4. नयन एच. पाण्ड्या और डायरी की ऐतिहासिक महत्ता

5. डायरी में गांधीजी के वचन और बहुधर्मी संवतों का समावेश

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