गांधी एक नयी सभ्यता की खोज में थे

प्रमोद कुमार श्रीवास्तव

गांधी दुनिया के लिए एक नयी सभ्यता की खोज कर रहे थे. गाँधी न पूरी तरह पूर्वी सभ्यता के साथ थे, न पूरी तरह पाश्चात्य सभ्यता के साथ । उनकी सोच एक वैकल्पिक सभ्यता के निर्माण तक विस्तृत थी।

वह परलोक में नहीं इसी लोक में एक ऐसी मानव सभ्यता निर्मित करने की तरफ़ अग्रसरित थे, जिसमें अन्तिम मानव भी पूरी तरह स्वावलंबी, सक्षम व स्वतंत्र होता।

यही सपना दुनिया के तमाम दार्शनिकों व क्रांतिकारियों ने भी देखा था। लेकिन अपने पूरे जीवनकाल में वह अपने अविश्वसनीय विचारों के साथ अकेले खड़े रहे। उनके आस-पास चारों तरफ़ ऐसे ही लोग खड़े थे, जिन्हें किसी न किसी प्रकार की सत्ता की चाहत थी। न उनके “सत्य” को किसी ने समझा न उनकी “अहिंसा” की अवधारणा को। आज अगर पूरी दुनिया उनको जानने व समझने के लिये प्रयासरत है, तो उनका अपना समाज अपने-अपने व्यक्तिगत स्वार्थो के अनुरूप उनके विचारों के पक्ष व विपक्ष में विभाजित है। या तो लोग उनके साथ हैं , या उनके ख़िलाफ़ हैं।

उनका कोई शत्रु नहीं था, लेकिन सभी उनको अपना शत्रु घोषित करने में ही अपना स्वार्थ सिद्ध होना आवश्यक मानते हैं ।७९ वर्ष का एक बूढ़ा, जिसके पास न किसी प्रकार की सत्ता थी, न किसी प्रकार का हथियार, उसका केवल ज़िन्दा रहना ही स्वार्थ सिद्धी में कितना बाधक हो चुका था।

केवल उनके जन्मदिन पर चरखा चलाने और खद्दर पहनने से बेहतर है कि हम केवल एक दिन अपनी आत्मा से झूठ बोलने , नफ़रत करने, सत्ता धारी होने , समृद्ध होने की भावनाओं का , विचार का त्याग कर देखें कि यह कितना कठिन है। सच्चे विचार न कभी मरते हैं, न शहीद होते हैं। उनके बारे में अल्बर्ट आईंनसटीन की भविष्यवाणी “ आने वाली पीढ़ियाँ यह विश्वास नहीं कर पाएँगी कि हाड़ मांस का एक ऐसा मानव हमारे मध्य विचरण करता था”, बिलकुल ठीक थी।केवल साल में एक दिन उनको याद करने से बेहतर है कि साल में केवल एक दिन ही सही गाँधी को जिया जाए।

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