#Gandhi Murder and Savarkar गांधी हत्या और सावरकर : मामले की जाँच प्रोफेशनल तरीक़े से नहीं हुई

विजय शंकर सिंह

Gandhi murder and Savarkar गांधी हत्या और सावरकर।सावरकर का नाम, गांधी जी की हत्या के साजिशकर्ताओं मे शामिल था, पर वह अदालत में साबित नहीं हो सका। सावरकर उस समय तो अदालत से छूट गए पर बाद में जब गांधी हत्या में उनकी संलिप्तता के अनेक सबूत मिलने लगे, तो जस्टिस कपूर की अध्यक्षता में एक जांच कमीशन बना, जिसने गांधी हत्या में सावरकर की साज़िश के बारे में स्पष्ट प्रमाण दिए और गांधी हत्या की जाँच और अभियोजन के दौरान की गयी अनेक जबर्दस्त खामियों की ओर इंगित किया। 

द मर्डर, द मोनार्क एंड द फकीर इस साल सावरकर पर आने वाली तीसरी महत्वपूर्ण किताब है। इसके पहले दो और किताबे आयीं, जिनकी बहुत चर्चा हुई, पर इस किताब की उतनी चर्चा नहीं हुई। उदय माहुरकर की किताब, “वीर सावरकर; द मैन हू कैन हैव  प्रिवेंटेड पार्टिशन” और विक्रम संपत की किताब, “सावरकर-ए कंटेस्टेड लिगेसी” पर खूब चर्चाएं हुई और सावरकर को बेहतर तरीके से दिखाने की कोशिश की गयी।

यह तीसरी किताब, गांधी हत्या में दर्ज मुक़दमे की विवेचना और अभियोजन पर केंद्रित है तथा एक महत्वपूर्ण सवाल उठाती है कि क्या सावरकर के खिलाफ पर्याप्त रूप से सुबूत न मिलना कहीं दोषपूर्ण पुलिस तफतीश का परिणाम तो नहीं है? उदय माहुरकर और विक्रम संपत की किताब सावरकर की तथाकथित ‘वीरता’ पर केंद्रित है, जबकि यह किताब गांधी हत्या की साज़िश में सावरकर की संलिप्तता पर है। 

गांधी हत्या और सावरकर पर नयी बहस

इस साल सितंबर-अक्टूबर में आयी यह नई किताब एक नयी बहस को शुरू करती है। पत्रकार अप्पू एस्थोस सुरेश और प्रियंका कोटमराजू द्वारा संयुक्त रूप से लिखी गयी यह किताब, हार्पर कॉलिन्स, इंडिया द्वारा प्रकाशित की गयी है, और प्रिंट तथा किंडल, दोनों ही रूपों में उपलब्ध है। 234 पृष्ठों की इस किताब के लेखक,  अंतर्राष्ट्रीय असमानता संस्थान, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस में सीनियर अटलांटिक फेलो हैं। किताब पढ़ने से लगता है कि लेखकों ने गहनता से शोध करके सामग्री इकट्ठा की और उनकी तार्किक विवेचना की है। उन्होंने पुलिस विवेचना जैसे नीरस विषय को अत्यंत सुगमता से प्रस्तुत किया है। 

गांधी हत्या पर सभी घटनाओं और राजनीतिक परिस्थितियों का तथ्यात्मक विश्लेषण करती हुई एक और किताब पिछले साल अशोक कुमार पांडेय की ‘उसने गांधी को क्यों मारा’ आयी थी।

इस किताब का अनुवाद, अन्य भारतीय भाषाओं में भी हुआ है और यह प्रकाशित होते ही लोकप्रिय भी खूब हुई है। यह किताब इस महत्वपूर्ण घटना और तत्कालीन इतिहास के अनावश्यक विस्तार से बचते हुए, घटना के विवरण, षड़यंत्र और उसके राजनीतिक पहलुओं का ईमानदार विश्लेषण करती है। कमोबेश, अंग्रेजी पुस्तक, द मर्डरर, द मोनार्क, एंड द फकीर में साजिश के बारे में जो बातें कही गयी हैं, उनका उल्लेख “उसने गांधी को क्यों मारा’ किताब में पहले ही लिखा जा चुका है। ‘उसने गांधी को क्यों मारा’ में कपूर आयोग की रिपोर्ट के महत्वपूर्ण संदर्भ दिए गए  हैं, जिनसे पता चलता है कि गांधी हत्या में सावरकर की भूमिका साज़िश में थी, पर यह सारे सुबूत अदालत में अभियोजन ने प्रस्तुत नही किये।

यह पुस्तक उस दौर में, जब पुलिस तफ्तीश में वैज्ञानिक तकनीक का अभाव था और विवेचना में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रति कोई उत्सुकता भी नहीं थी, की गयी ढीली ढाली विवेचना की तरफ ध्यान खींचती है। किताब इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि  उस दौर की यह विवेचना,  हमारी आपराधिक जांच पद्धति में व्याप्त गंभीर दोषों को उजागर करती है।

तब आज की तरह सीबीआई, एनआईए जैसी देशव्यापी अधिकार क्षेत्र वाली विशिष्ट जांच एजेंसियां उपलब्ध नहीं थीं, जो  अलग अलग स्थानों पर रची गयी किसी साजिश की सूक्ष्मता से जांच कर पातीं। अतः प्रत्यक्षदर्शियों के आधार पर जो साक्ष्य एकत्रित किये जा सके, किये गए, किन्तु  साज़िश की परतें प्रोफेशनल तरीके से नहीं खोली जा सकीं, जिनके आधार पर सदी की सबसे जघन्य हत्या को उसके अंजाम तक पहुंचाया जा सकता।

गांधी हत्या में सावरकर की भूमिका के सबूत अदालत में नहीं दिए

किताब में यह सवाल भी उठाया गया है कि अभियोजन ने किन कानूनी विन्दुओं और साक्ष्यों की कमी के कारण  वीडी सावरकर के खिलाफ उनके ही अंगरक्षक अप्पा रामचंद्र कसार और सचिव गजानन विष्णु दामले द्वारा 4 मार्च 1948 को बॉम्बे पुलिस को दी गई साजिश में शामिल होने के सबूत को अदालत में पेश नहीं किया? लेखकों के अनुसार, “यदि वे बयान और साक्ष्य परीक्षण के दौरान प्रस्तुत किये गए होते, तो मुक़दमे का परिणाम भिन्न हो सकता था”। किताब के पृष्ठ 88 पर, लेखकद्वय दिवंगत जेडी नागरवाला, पुलिस उपायुक्त (विशेष शाखा), बॉम्बे की केस डायरी का हवाला देते हैं, जिसमें उल्लेख किया गया है कि  ” आरोपी एनवी गोडसे ने पूछताछ के दौरान उल्लेख किया था कि उसने बैठक के बाद दादर में कॉलोनी रेस्तरां में भोजन किया था।” क्राइम रिपोर्ट नंबर 25  के 29 फरवरी 1948 के विवरण के अनुसार, कॉलोनी रेस्तरां के मालिक सीताराम अनंतराव शटे का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि  सावरकर के पास आने वाले लोग उनके रेस्तरां में भोजन करते थे और कभी-कभी उनके पैसे दामले द्वारा भुगतान किए जाते थे।”  

रेस्तरां मालिक ने कहा कि ” 23 और 25 जनवरी, 1948 के बीच “नाथूराम भोजन के लिए उनके होटल में आया था और उस समय वह विशेष रूप से भ्रमित अवस्था में पाया गया था”। लेखकों का कहना है कि “1 फरवरी 1948 की केस डायरी में गजानन विष्णु दामले और अप्पा रामचंद्र कसार ने पूछताछ के दौरान जो बताया था, वे महत्वपूर्ण सबूत सावरकर की मृत्यु के बाद 1960 के दशक के अंत तक दबे ही रहे और उन्हें तब तक, कभी भी सामने नहीं लाया गया।” किताब में, 1 फरवरी 1948 को नागरवाला को उद्धृत करते हुए लिखा गया हैं कि, “इन दो व्यक्तियों द्वारा जो कहानी और बातें बतायी गयी हैं, उनसे ऐसा प्रतीत होता है कि इन दो व्यक्तियों के साथ सावरकर की इन बैठकों मेंमहात्माजी को खत्म करने की योजना को अंतिम रूप दिया गया था।”

“नागरवाला के नेतृत्व में  बॉम्बे पुलिस द्वारा की गई जांच ने गांधी हत्या में सावरकर के साजिश में शामिल होने को निर्णायक रूप से साबित कर दिया था।  यह तथ्य कि गोडसे और आप्टे गांधी जी की हत्या के पूर्व के प्रयासों और वास्तविक हत्या से भी पहले से सावरकर के संपर्क में थे, संदेह से परे साबित हुआ था।” 

लेकिन कपूर आयोग की रिपोर्ट सामने आने तक, ये तथ्य देश के सामने नहीं आ पाए थे। उनका कहना है कि मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष ने कभी भी दामले और अप्पाराव के बयानों के साथ सावरकर का सामना नहीं कराया और न ही इनके बयानों के आलोक में सावरकर का क्रॉस एग्जामिनेशन, यानी  जिरह ही कराई गयी।

गांधी हत्या की जाँच में प्रशासनिक विफलता

 लेखकद्वय गांधीजी को बचाने में एक और प्रशासनिक विफलता का उल्लेख करते हैं। किताब के पृष्ठ 84 पर वे कहते हैं कि  ” मदनलाल पाहवा ने प्रोफेसर जेसी जैन से संपर्क किया था, जिन्होंने पहले शरणार्थी के रूप में उसकी मदद की थी और सावरकर तथा अन्य द्वारा गांधीजी के खिलाफ की जा रही हिंसक गतिविधियों के बारे में भी संकेत दिया था। जैसी जैन ने उन्हें तब तक गंभीरता से नहीं लिया था, जब तक उन्होंने 20 जनवरी, 1948 को गांधी जी की हत्या के असफल प्रयास के बारे में अखबारों में नहीं पढ़ा था। इसके बाद वे बॉम्बे के गृह मंत्री मोरारजी देसाई के पास पहुंचे, जिन्होंने डिप्टी कमिश्नर बॉम्बे पुलिस, नागरवाला को  यह निर्देश दिया था कि वे करकरे को गिरफ्तार करें और सावरकर पर कड़ी नजर रखें। लेकिन यह काम जिस गम्भीरता से किया जाना चाहिए था, नहीं किया गया।” 

गांधी हत्या की जाँच के लिए कपूर आयोग

जीवन लाल कपूर आयोग की नियुक्ति, ‘केसरी’ (पुणे) के संपादक गजानन विश्वनाथ केतकर के एक दावे पर हंगामा मचने के बाद की गयी थी। केतकर ने कहा था कि “उन्हें गांधी जी की हत्या की संभावना का पूर्व ज्ञान था।” प्रकरण इस प्रकार है। 12 नवंबर 1964 को पुणे में गोपाल गोडसे, मदनलाल पाहवा और विष्णु करकरे को सजा की अवधि पूरी होने के बाद, उन्हें सम्मानित करने के लिए एक समारोह आयोजित किया गया था।  केतकर ने उस समारोह में यह बात कही थी।  उन्होंने यह भी दावा किया कि उन्होंने यह बात बालूकाका कानितकर को बता दी थी, जिन्होंने बॉम्बे राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री बीजी खेर को यह बात बता दी थी।

उस आयोजन में कही गयी गजानन विश्वनाथ केतकर की इस बात के बाद संसद में काफी हंगामा हुआ।  तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री गुरजारीलाल नंदा ने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और सांसद गोपाल स्वरूप पाठक के नेतृत्व में  इस संदर्भ की जांच के लिए एक जांच दल का गठन किया। समस्त रिकॉर्ड की जांच के बाद उन्हें अपनी रिपोर्ट देने  के लिए 3 महीने का समय दिया गया था, क्योंकि बालूकाका कानितकर और बीजी खेर दोनों ही तब तक जीवित नहीं थे।

इस बीच गोपाल स्वरूप पाठक  केंद्रीय मंत्री बना दिये गए और वे जांच का काम पूरा नहीं कर सके।  लेकिन केंद्र सरकार ने जांच कार्य जारी रखने के लिए 21 नवंबर 1966 को न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) जीवन लाल कपूर को एक सदस्यीय जांच आयोग के रूप में नियुक्त किया। जांच के जो संदर्भ तय किये गए थे, वे ये थे कि  क्या किसी को महात्मा गांधी की हत्या के बारे में पूर्व जानकारी थी? और हत्या को रोकने के लिए बॉम्बे सरकार द्वारा क्या कदम उठाए गए थे? कपूर आयोग ने 162 बैठकों के दौरान 101 गवाहों से पूछताछ की और 30 सितंबर 1969 को अपना काम पूरा कर लिया। अपनी रिपोर्ट के पृष्ठ 305 पर आयोग ने कहा है, ” केएम मुंशी ने महात्मा गांधी के प्रति वैमनस्य और दुश्मनी का संकेत दिया है और उनकी नीतियों और नेतृत्व को सावरकर के नेतृत्व वाले समूह की तरफ़ झुकाव के लिए जाना जाता था।” 

अदालत ने बॉम्बे पुलिस की इस त्रुटिपूर्ण विवेचना के लिये भर्त्सना की

अदालत ने बॉम्बे पुलिस की इस त्रुटिपूर्ण विवेचना के लिये भर्त्सना भी की थी, जो पृष्ठ 322-323 पर अंकित है।  ” करकरे और आप्टे का पता लगाने और महात्मा की रक्षा करने में समन्वय की कमी के लिए बॉम्बे राज्य पुलिस के खिलाफ वे सख्त थे।” हत्या के बाद पुलिस सक्रियता पर तंज करते हुए कपूर कमीशन ने जो कहा है वह एक तीखी टिप्पणी है। ” हत्या के बाद वह पुलिस अचानक सक्रिय हो गयी और उंसकी गतिविधियां अचानक देश भर में बढ़ गयीं, जिसको हत्या के पहले इस साजिश का कुछ पता ही नहीं था।’ ( पृष्ठ 323 ) पहले की अनदेखी खुफिया रिपोर्टों और पुलिस रिकॉर्ड के आधार पर यह पुस्तक महात्मा गांधी की हत्या की परिस्थितियों, उससे जुड़ी घटनाओं और उसके बाद की जांच को विस्तार से बताती है। ऐसा करके यह किताब एक ऐसी साजिश को बताती है, जो इस जघन्य अपराध से कहीं अधिक गहरी है।

द मर्डरर, मोनार्क और फकीर

द मर्डरर, मोनार्क और फकीर इस उथल-पुथल भरी घटना के महत्व को उजागर करने के लिए एक खोजी पत्रकारिता करती है और नए सबूतों पर आधारित है। यह किताब न तो राजनीतिक घटनाओं का विश्लेषण करती है और न ही तत्कालीन परिस्थितियों का विवेचन।

किताब खुद को गांधी हत्या के मुकदमे की तफ्तीश और अदालत में उसके अभियोजन की पड़ताल तक ही सीमित रखती है। हत्या, यदि क्षणिक आवेश में नहीं की गयी है तो निश्चित ही उस अपराध के पीछे कोई न कोई साज़िश होती है। गांधी जी की हत्या की साज़िश रचना न तो किसी एक व्यक्ति के बस में था और न ही  इसके तारों की उलझन इतनी सरल थी कि उन्हें आसानी से सुलझाया जा सके।

हत्यारे और साजिशकर्ता यह बात बहुत ही अच्छी तरह से जानते थे कि  जो जघन्य कृत्य वे करने जा रहे हैं, उसका असर दुनिया भर में पड़ने वाला है और भारत मे तो वह कृत्य भूचाल ही ला देगा।

Gandhi murder and Savarkar गांधी हत्या और सावरकर

हत्यारे तो मौके पर पकड़ लिये गए, पर इस हत्या की साज़िश की तफ्तीश उतने प्रोफेशनल तरह से नहीं की गई, जिस तरह से उसे किया जाना चाहिए था। साज़िश के सारे सुबूत हालांकि वीडी सावरकर की तरफ इंगित करते हैं और कपूर कमीशन इस निष्कर्ष पर पहुंच भी चुका था, पर उसे अदालत में साबित नहीं किया जा सका और कुछ सबूतों को तो अदालत में अत्यंत लापरवाही से रखा गया. जितनी कुशलता से जिरह की जानी चाहिए थी, उतनी दक्षता  न्यायालय में अभियोजन ने नहीं दिखाई।

साज़िश को साबित कर पाना कठिन तो होता है, पर अभियोजन का काम भी तो उसी कठिन कार्य को सम्पन्न करना है। 

लेखक विजय शंकर सिंह एक रिटायर्ड पुलिस अधिकारी हैं।

Painting and Artists Bio

The Painting ‘Death of Gandhi’ By Artist Tom VattaKuzhy.

I am grateful to Artist Tom Vattakuzhy of Kerala, for gifting me his painting ‘Death of Gandhi’ The painting depicts, quite realistically the last moments of Gandhi’s life after Nathuram Godse shot him. Tom’s painting appropriately embellishes my book. Thank you very much Tom. Post the printing of the book I intend to gift the painting to the National Gandhi Museum for them to display it in the museum dedicated to Bapu’s death. It is a befitting place to display ‘Death of Gandhi’ painted by Tom Vattakuzhy. 

About TOM VATTAKUZHY

Born in 1967, Kerala, India

“If one asks me what I paint, I would shrink away as I do not have a straight answer. I do not work to befit myself in any political or ideological tag. And also do not consciously align myself with any ‘isms’ or trendy fashions in art. For me, art is a meditative solitary journey.  I am concerned with exploring the psychological moods and feelings that I experience. I do not have any words to describe it. At best, what I can say at this moment is that I am a painter of interiors – interiors of lives I see around, lives of the silenced, the marginalized and the alienated.”

Education: 1999 U.G.C. Net, 1998 M.F.A.(First Class) Faculty of Fine Arts, M.S. University of Baroda , Gujarat. 1996 B.F.A. (First Class) Kala Bhavan, Viswa – Bharati University, Santiniketan, West Bengal. 

Awards: 1998 AIFACS (All India Fine Arts and Crafts Society) Award, New Delhi. 1997 AIFACS (All India Fine Arts and Crafts Society) Award, New Delhi. 1997 Kerala Lalita Kala Academy Award, Govt. of Kerala. 1996 Highly Commended Certificate, Kerala Lalita Kala Academy, Govt. of Kerala.1996 National Scholarship, Ministry of Human Resource Development, New Delhi. 1995  Haren Das Award, Academy of Fine Arts, Calcutta 1992 – 1996 Merit Scholarship, Kala Bhavan, Vishwa-Bharati University, Santiniketan.  

Lives and works in Kerala, India.

tomvattakhuzy8809@gmail.com

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