आज क्यों प्रासंगिक हैं गांधी और क्यों व्यक्त की जा रही है उनसे असहमति?
गांधी से क्यों व्यक्त की जा रही असहमति
डा अमिताभ शुक्ला, अर्थशास्त्री
विचार कभी समाप्त नहीं होते हैं. विशेषकर जन नायकों द्वारा समाज को प्रभावित और उद्वेलित करने वाले परिवर्तनवादी विचार सदैव प्रासंगिक होते हैं. समाज में ये विचार, मंथन एवम् व्यवस्था में सुधार का मार्ग प्रशस्त करते रहते हैं. यही कारण है कि जन्म के 150 वर्ष एवम् अवसान के 74 वर्षों पश्चात भी महात्मा गांधी के विचार अमर, शाश्वत, प्रेरक हो कर विश्व में प्रेरणा एवम् परिवर्तन के संवाहक बने हुए हैं. तथापि, विगत वर्षों में एकाएक महात्मा गांधी के देश में ही उनके विचारों का खंडन और उनका विरोध क्यों शुरू हो गया? इसे समझने के लिए यह समझना आवश्यक है कि बापू के विचारों में समाज और अर्थव्यवस्था को बदलने की शक्ति ही उनकी प्रतिष्ठा को खंडित करने के असफल और कुत्सित प्रयासों का कारण है.
गांधी जी के आर्थिक विचार :
गांधी जी ने ब्रिटिश राज के समय एवम् भारतीय समाज एवम् अर्थव्यवस्था के संदर्भ में स्वदेशी, कुटीर उद्योगों, स्वदेशी कच्चे माल एवम् स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग पर बल दिया था. दरअसल, यह उनके आर्थिक विचारों की नींव है. इसके द्वारा स्वदेशी संसाधनों का सदुपयोग, मितव्ययिता, कम कीमत, रोजगार संभव है. पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से भी यह उपयोगी है. गांधी जी के अहिंसा के मूलभूत सिद्धांत को भी आजकल एक वर्ग “अहिंसात्मक अर्थशास्त्र” (नॉन वॉयलेंट इकोनॉमी) के रूप में व्याख्यायित कर रहा है. यह दरअसल उपरोक्त वर्णित सिद्धांत की ही आधुनिक रूप में व्याख्या है.
दूसरे शब्दों में प्रकृति एवम् मनुष्यों के साथ हिंसा किए बिना उत्पादन किया जाना. जैसे पूंजीवादी उत्पादन प्रक्रिया में पर्यावरण को क्षति और मनुष्यों का विस्थापन होता है, उससे बचाव भी संभव है. गांधी जी के “न्यास धारिता” (ट्रस्टीशिप) जैसे अत्यंत शक्तिशाली आर्थिक विचार का जितना अधिक दुरुपयोग भारत में हुआ और हो रहा है, संभवतः विश्व में कहीं नहीं हुआ. यह समाज के संसाधनों के विकेंद्रित उपयोग एवम् कल्याण हेतु उनके समान वितरण का बहुत उपयोगी औजार था. लेकिन, इसके विपरीत इसका उपयोग संसाधनों पर नियंत्रण और व्यक्तिगत लाभ के लिए किया जा रहा है.
गांधी जी के सामाजिक विचार :
सर्व धर्म समभाव और अहिंसा, सत्य, आचरण की शुचिता इत्यादि को बापू के सामाजिक विचार के रूप में स्वीकार किया जा सकता है. धर्म के नाम पर शोषण, समाज को बांटने और विकृति और कुरीतियों को बढ़ाने वाले इस दौर में “सर्व धर्म समभाव” उपयोगी और आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य हो गया है. हिंसा का बढ़ना बापू की अहिंसा को नकारने का ही परिणाम है.
धर्म का दुरुपयोग और हिंसा का प्रयोग चाहे विश्व में कहीं हो रहा है, अथवा हमारे अपने देश में. उसके दुष्परिणाम तमाम समस्याओं समेत मानसिक और व्यवहार गत दुष्परिणामों के रूप में हमारे सामने हैं.
” निशस्त्रीकरण” अभियान को दबाया जाना शस्त्र निर्माता कंपनियों द्वारा सत्ताओं को लाभ दिए जाने के कारण हुआ है. इस प्रकार, समाज जिस स्थिति में पहुंच गया है, उसमें सत्य और आचरण की शुचिता का स्थान नहीं रह गया है. जबकि, यह तो अत्यंत सरल पद्धति है, लेकिन सामाजिक स्वीकृति झूठ और आडम्बर को प्राप्त हो गई है. कारण- स्वार्थ लिप्सा और कुकृत्यों को झूठ में लपेट कर सुंदर बने रहने की प्रवृति है.
गांधी के राम और राम-राज्य:
महात्मा गांधी के हृदय में राम बसते थे. इस से अधिक आश्चर्यजनक क्या होगा कि, 30 जनवरी 1948 को अचानक गोली लगने पर बापू के मुख से ‘हे राम’ प्रस्फुटित हुआ था!!! (हालांकि, अब इस पर भी प्रश्न खड़े किए जा रहे हैं).
गांधी जी के राम और राम राज्य की धारणा शासन की मर्यादित शैली, पवित्रता, शोषणविहीन और न्यायप्रिय शासन से संबंधित है, न कि मंदिर, मूर्ति, जुलूस, रंग विशेष, आतंक, शास्त्रों और लाठियों-भालों के प्रदर्शन और प्रयोग एवम् भय और आतंक के शासन से.
क्यों प्रारंभ हुआ है गांधी और गांधी जी के विचारों का सुनियोजित विरोध?:
एक विशेष वर्ग द्वारा जो शस्त्रों, पूंजीवादी उत्पादन पद्धति और अन्याय और शोषण पूर्ण सामाजिक एवम् आर्थिक व्यवस्था के पिट्ठू और समर्थक हैं, जिनके आर्थिक हित स्वदेशी और विदेशी पूंजीपतियों के आर्थिक हितों से जुड़े हैं, उन्होंने विचित्र ढंग से गांधी जी की छवि का खंडन और उन्हें आरोपित करना शुरू किया है. गांधी जी के विचारों का विरोध करना उनकी हैसियत के बाहर है. अतः भोंडे ढंग से महात्मा पर लांछन और तथ्यों को तोड-मरोड़ कर नई पीढ़ी को गांधी जी के विचारों से दूर करने के प्रयास किए जा रहे हैं.
समाज में अहिंसा समाप्त हो जाए, न्याय, शांति के पक्ष में और शोषण के विरुद्ध खड़े होने वाले शेष न रहें, ऐसा वातावरण निर्मित किया गया है.
विश्व-शांति और शोषण मुक्त समाज गांधी विचार पर ही आधारित होगा:
आज के हालातों के संदर्भ में
एक अहिंसक, शांति पूर्ण, न्याय पूर्ण एवम् शोषण रहित समाज अंततः गांधी जी के शाश्वत विचारों पर ही आधारित होगा. यह वर्तमान संसार में हो अथवा एक नई सृष्टि एवम् मनुष्य के जन्म लेने के पश्चात. मानव जाति का भविष्य एवम् उसकी नई सुबह बापू के विचारों की पूर्ण स्वीकृति से ही संभव होगी.
Dr Amitabh Shukla is an Economist have experience of last four decades & wrote 10 Books & 100 Research Articles .
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