महान वैज्ञानिक आइंस्टाइन की कहानियां
—- पंकज प्रसून
बीसवीं सदी के सबसे महान वैज्ञानिक डॉ अल्बर्ट आइंस्टाइन के व्यक्तिगत जीवन से जुड़ी बातें भी मशहूर हैं. पाठकों के लिये पेश हैं कुछ चुनिंदा किस्से.
उनकी भुलक्कड़ी के किस्से
घर का पता ही भूल गये
जब वे प्रिन्सटन विश्वविद्यालय में काम कर रहे थे तो एक दिन घर जाते वक्त अपने घर का पता ही भूल गये थे .टैक्सी ड्राइवर उन्हें नही पहचानता था.
तो उन्होंने उससे पूछा,”क्या तुम आइंस्टाइन की घर का पता जानते हो ?”
उसने कहा ,” आइंस्टाइन का पता पूरे प्रिन्सटन में कौन नहीं जानता है ? क्या आपको उनसे मिलना है ?”
आइंस्टाइन बोले,”मैं ही आइंस्टाइन हूँ .मैं अपने घर का पता भूल गया हूँ. क्या मुझे वहां तक पहुंचा दोगे ?”
ड्राइवर ने उन्हें सकुशल उनके घर तक छोड़ दिया और उनके बहुत कहने पर भी टैक्सी का किराया नहीं लिया .
कहां जाना है पता नहीं
एक बार आइंस्टाइन प्रिन्सटन से ट्रेन में आ रहे थे .
कंडक्टर हर यात्री का टिकट पंच करता चल रहा था . जब आइंस्टाइन की बारी आयी तो वे अपनी बनियान में टिकट ढूंढने लगे . वहां भी नहीं मिला तो पैंट की जेब में, फिर अपने ब्रीफ़केस को खोल कर ढूंढने लगे .सीट के नीचे भी देखा .
उन्हें इतना परेशान देख कर कंडक्टर बोला,”डॉक्टर आइंस्टाइन,मैं जानता हूँ कि आप कौन हैं .और यहाँ पर मौजूद सभी लोग आपको जानते हैं. मुझे पता है कि आपने टिकट लिया है. आप बेफिक्र रहें. ”
इतना कह कर वह आगे बढ़ गया .
जब वह दूसरी बोगी में जाने को हुआ तो उसने पीछे मुड़ कर देखा कि महान वैज्ञानिक अभी तक टिकट ढूंढ रहे हैं.उसने कहा ,” डॉक्टर आइंस्टाइन,आप कतई परेशान नहीं हों. मुझे मालूम है कि आपने टिकट लिया है.”
आइंस्टाइन बोले,” यंग मैन, यह तो मुझे भी मालूम है कि मैं कौन हूं? सिर्फ मुझे यही नहीं मालूम है कि मुझे जाना
कहां है? इसीलिये टिकट का मिलना बेहद ज़रूरी है.’
चार्ली चैपलिन से मुलाकात
आइंस्टाइन ने कहा ,”मैं सचमुच आपकी कला में निहित सार्वभौमिकता की प्रशंसा करता हूँ.आप एक शब्द भी नहीं बोलते हैं और सारा संसार आपकी बातों को समझ लेता है .’
इस पर चार्ली ने कहा ,” आपकी प्रसिद्धि के सामने यह कुछ भी नहीं है.सारी दुनिया आपकी प्रशंसा करती है जब कि कोई भी आपको नहीं समझता है.”
वहां कोई भी मुझे नहीं जानता
आइंस्टाइन की पत्नी उनसे बराबर कहती थीं कि काम पर जरा सलीके से जाओ .आइंस्टाइन बोले ,” इसकी कोई ज़रूरत नहीं है . वहां सभी मुझे पहचानते हैं.”
एक बार की बात है . आइंस्टाइन किसी मीटिंग में जा रहे थे ..हस्बमामूल बेतरतीब लिबास पहन कर जाने लगे तो उनकी पत्नी बोलीं,” वहां तो सलीके से जाओ.’
आइंस्टाइन ने बड़े भोलेपन से जवाब दिया ,” क्यों? वहां तो कोई भी मुझे नहीं पहचानता है.’
एक डालर दो ,चेक लो
आइंस्टाइन ने जब देखा कि लोग उनके ओटोग्राफ लेने के लिये भीड़ लगाने लगे हैं तो उन्होंने एक युक्ति लगायी-एक डॉलर कैश दो,एक डॉलर का चेक ले जाओ जिसपर मेरा दस्तख़त रहेगा.
लोग चेक ले तो जाते थे मगर कैश नहीं कराते थे.
क्या आइंस्टाइन ईश्वर पर यकीन करते थे
आइंस्टाइन से अमूमन मीटिंग में छात्रों का सवाल होता था ,” क्या आप ईश्वर को मानते हैं ?”
उनका जवाब होता था ,‘ मैं स्पिनोज़ा के ईश्वर पर विश्वास करता हूँ.”
बारूक दी स्पिनोज़ा पुर्तगाली मूल के डच यहूदी दार्शनिक थे .वे 17 वीं शताब्दी के महान दार्शनिक थे .उनका कहना था कि ईश्वर का कहना है कि “प्रार्थना करना और छाती पीटना बंद करो .उन मनहूस ,उदास और ठंडे मन्दिरों में जाना बंद कर दो .
मुझसे डरना बंद कर दो .मैंने कभी नहीं कहा कि तुम पापी हो .मैं दंड नहीं देता. मैं शुद्ध प्रेम हूं.मैंने कोई कमांडमेंट नहीं दिया है . अपनी ज़िंदगी पर ध्यान दो मुझ पर यकीन मत करो .मैं चाहता हूँ कि मुझे बाहर मत ढूंढो .मुझे अपने अंदर ढूंढो. मैं तुम्हारे अंदर धड़क रहा हूँ.”